कोरेना संक्रमण, मास्क, पीपीई किट आदि का डिस्पोजल और पर्यावरण संरक्षण – प्रोफेसर (डॉ.) योगेन्द्र यादव

Update: 2020-06-05 06:41 GMT


(अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण दिवस पर विशेष )

इस समय पूरा विश्व पर्यावरण संकट से गुजर रहा है। इससे बचने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन और भारत सरकार से ऐडवायजरी जारी की गई है। जिसके अनुसार देश का कोई भी नागरिक जब अपने घर से बाहर निकले, अपने कार्यालय जाए, कल – कारखाने में काम करे। बाजार खरीददारी के लिए जाए, मंदिर में पूजा के लिए जाये, या अन्य किसी कार्य से बाहर निकले, हर किसी को मास्क का उपयोग करना जरूरी है । ऐसा नहीं है कि एक ही मास्क वह जीवन भर या महीने भर उपयोग में ला सकता है। दो या तीन में ही या दो तीन बार उपयोग में लाने के बाद यह मास्क अनुपयोगी हो जाता है। हानिकारक हो जाता है। ऐसे में उसको फेकना पड़ता है । इस प्रकार मास्क रूपी कचरे का निस्तारण एक बड़ी समस्या है । अगर इसे वैज्ञानिक तरीके से निस्तारित नहीं किया गया, तो यह मास्क ही पर्यावरण के लिए एक बड़ी समस्या बन जाएगा । अगर यह सड़ेगा, तो जल, वायु और पृथ्वी तीनों को प्रदूषित करेगा। अगर इसे जलाया जाएगा, तो भी यह पर्यावरण को प्रदूषित करेगा। इसके निस्तारण की सही विधि है कि इसे जमीन खोद कर गाड़ दिया जाए, जिससे यह सड़ कर खाद में परिवर्तित हो जाए । लेकिन अभी तक जैसा देखने को मिल रहा है, लोग मास्क उपयोग करने के बाद कचरे में फेक देते हैं। और कचरा ढोने वाली गाडियाँ उसे शहर से बाहर डाल आती हैं, इस कारण जगह-जगह मास्क फैले हुए, उड़ते हुए दिखाई पड़ते हैं । इस प्रकार के मास्क से कोरेना का संक्रमण भी फैलने का भय रहता है । कचरा बीनने वाले अगर मास्क को भी बीन कर लाते हैं, तो वे कचरे के साथ अपने-अपने घरों में कोरेना वायरस भी लाएँगे और पूरे समाज को संक्रमित करने का काम करेंगे । इसलिए ऐसे लोगों पर भी प्रशासन को सख्ती बरतना चाहिए ।

इसके अलावा को पीपीई किट तैयार की जा रही है, उसके निर्माण से लेकर उसका डिस्पोजल एक बड़ी समस्या है । इसलिए कोरेना संकट के समय उपयोग में आने वाली पीपीई किट ऐसे पदार्थ की बनी होना चाहिए, जो पूरी तरह से डिस्पोज़ हो सके । पर्यावरण संरक्षण के लिए ऐसी तमाम संस्थाएं और संगठन हैं, जो प्लास्टिक के खिलाफ मूहीम चला रहे हैं। जनता को जागरूक कर रहे हैं । समय-समय पर आदेश जारी कर केंद्र और प्रांतीय सरकारें भी नियम बनाती हैं और उसे लागू करती हैं। पिछले दिनों एक आदेश उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जारी किया गया था, जिसके कारण प्लास्टिक की थैलियों को निषिद्ध कर दिया गया और लोग प्लास्टिक की थैलियों का उपयोग न के बराबर करने लगे थे। इस पर मेरे द्वारा भी लखनऊ से लेकर अपनी पर्यावरण जागरूकता अभियान और शहीद सम्मान यात्रा के दौरान प्लास्टिक का उपयोग सोच विचार करने की दिशा में लोगों को जागरूक किया जा रहा है ।

अगर पीपीई शील्ड लकड़ी से निकलने वाले सेल्यूलोज और कागज की मदद से तैयार की जाए, तो उसका निस्तारण आसानी से किया जा सकता है। इस दिशा में कई संस्थाओं ने काम करना शुरू कर दिया है। प्राप्त जानकारी के अनुसार एक पीपीई किट की कीमत 50 रुपये से भी कम पड़ती है । आर्गेनिक उत्पाद से बनी होने की वजह से इसे इस्तेमाल करने के बाद आसानी से डिस्पोज़ किया जा सकता है ।

इससे कोरोना वायरस भी नहीं फैलता है। प्लास्टिक फ्री होने के कारण पीपीई किट तीन दिन के अंदर गल जाती है।

इसे तैयार करने में किसी प्रकार का प्रदूषण भी नहीं होता है । कोरेना संकट के समय में इस्तेमाल हो रहीं पीपीई एक बार पहनने के बाद सदियों तक पर्यावरण में मौजूद रहेंगी। इसलिए केंद्र सरकार और प्रदेश सरकारों को ऐसे संगठनों, संस्थाओं को प्रोत्साहित करना चाहिए, जो आर्गेनिक पीपीई तैयार कर रही हैं । हर नागरिक व्यक्तिगत तौर पर पर्यावरण संरक्षण की दिशा में अपनी – अपनी भूमका का निर्वाह करे ।

प्राय: देखने में आता है कि जहां भी और जब भी पर्यावरण की चर्चा होती है, सभी लोग सरकार की आलोचना करते हैं । इसके लिए पूरी तरह से सरकार को ही उत्तरदायी ठहराते हैं। लेकिन पर्यावरण के संरक्षित रखने के लिए उनका क्या उत्तरदायित्व है, इस पर विचार नहीं करते हैं । आज कल सबसे आसान काम किसी की आलोचना करना ही रह गया है।

यही जरूरी नहीं है कि आप पेड़ काटें, तो ही आप पर्यावरण का नुकसान कर रहे हैं, आप पहाड़ खोद डालें तो ही आप पर्यावरण का नुकसान कर रहे हैं । ऐसे में जब हमारे जीवन में जो कुछ है, वह सब प्रकृति से ही प्राप्त हो रही है, ऐसे में अगर हम उसका अधिक उपयोग कर रहे हैं या अनावश्यक उपयोग कर रहे हैं, तो भी पर्यावरण को ही प्रदूषित कर रहे हैं। अगर हम अपनी भूख से अधिक भोजन ले रहे हैं तो खाना बर्बाद कर रहे हैं। किसी के हिस्से का भोजन बर्बाद कर रहे हैं, और उसे फेकने के बाद जो सदान्ध हो रही है, उससे पर्यावरण भी प्रदूषित हो रहा है। अगर हम घर में बल्ब चलता छोड़ रहे हैं, तो भी हम पर्यावरण प्रदूषित कर रहे हैं, क्योंकि बिना जरूरत के प्रकृति प्रदत्त संसाधनों के अपव्यय करने से उतना ही अधिक प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर फिर से बिजली निर्माण होगा । इसी प्रकार के अनेक उदाहरण दिये जा सकते हैं। ऐसे में हर व्यक्ति को पर्यावरण पर सरकार को कोसने के बजाय अगर हम अपने में ऐसी आदतें विकसित करें, तो जिससे हम बिजली पानी आदि प्रकृति प्रदत्त वस्तुओं का कितना कम से कम उपयोग कर सकते हैं, तो यह भी पर्यावरण की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम होगा ।

आज विश्व्ब में ग्लोबल वार्मिंग की खूब चिंता हो रही है। भविष्य में उससे होने वाले दुष्परिणामों पर भी प्रकाश डाला जा रहा है । लेकिन उसे कम करने की दिशा में कोई सार्थक कदम नहीं उठाए जा रहे हैं । प्रकृति खुद ही पेड़-पौधों को उगाती भी है, और उनको संरक्षित भी करती हैं, हमें केवल एक काम कारण है कि बिना जरूरत के हम हरे पेड़ पौधों को न काटें, न छाटें । ग्लोबल वार्मिंग पर अपने आप नियंत्रण लग जाएगा । जो लोग जमीनी सच्चाईयों से परिचित नहीं होते हैं, वे प्रकृति को बचाने के लिए बहुत लंबी चौड़ी बाते करते हैं। जबकि हमे कुछ नहीं करना है । आज तक जितनी बड़ी-बड़ी योजनाएँ बनाई गई, उनसे अपेक्षित लाभ नही मिला । कारण प्रकृति अपने आप को खुद हरा-भरा बनाती है, नदियों को खुद साफ करती है। हवा में आक्सीजन के लेवल को खुद नियंत्रित करती है। हमें सिर्फ एक ही काम करना है कि हम अपनी क्रियाओं से उसे नुकसान पहुँचाने का काम न करें । सब अपने आप ठीक हो जाएगा ।

अभी विगत 2 अक्तूबर से लेकर 30 जनवरी तक हमने कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक 15 राज्यों की राजधानियों से गुजरने वाली 9452 किलोमीटर लंबी यात्रा की । इस यात्रा के दौरान हमने सभी लोगों से एक ही अनुरोध किया कि जब भी आपके घर में कोई नया बच्चा जन्म ले, तो जिस तरह आप उसके खाने-पीने, कपड़े, शिक्षा आदि की व्यवस्था करते हैं, उसी प्रकार उसके लिए आक्सीजन की भी व्यवस्था करें । अगर इसी एक पहलू को भारत और विश्व के लोग अपना लें, तो पर्यावरण अपने आप संरक्षित हो जाएगा ।

इस विश्व में जितनी भी महामारियाँ आई, उनके पीछे जो मूल कारण था, वह प्रकृति के साथ मनुष्य द्वारा की जा रही छेड़छाड़ ही है। भोग और धन कमाने की लिप्सा की वजह से हम यह भी सोच नहीं पाते कि जो हम कर रहे हैं, उससे तो पूरी मानवता ही समाप्त हो जाएगी । पूरी मानवता पर ही संकट मड़राने लगेगा । धन संग्रह की लिप्सा में सभी पागल हुए हैं। आज जिस कोरेना संकट से पूरा विश्व गुजर रहा है । पर्यावरणविद उसके पीछे भी अतिशय प्रकृति दोहन को ही जिम्मेदार बता रहे हैं। कोविड – 19 एक विषाणु है, वह भी निर्जीव। उसने सम्पूर्ण विश्व को अपने शिकंजे में इस प्रकार जकड़ लिया है कि इसके प्रारम्भ समय में सम्पूर्ण विश्व को लॉक डाउन होना पड़ा। अपनी सारी गतिविधियां बंद करना पड़ा । और पूरी दुनिया अपने अपने घरों में ही सिमट कर रह गई । अभी तक इतने दिनों के बाद भी इसका कोई इलाज नहीं खोजा सका है। ऐसे में तमाम वैज्ञानिकों ने घोषणा कर दी है कि अब पूरी अवाम को कोरेना के साथ ही जीना पड़ेगा । उससे बचने के लिए सिर्फ ऐतिहात की जरूरत है। ऐसे में फिर कोई और संकट उत्पन्न न हो जाए, इस कारण मास्क और पीपीई किट इस प्रकार के उत्पाद से बनाई जानी चाहिए, जो आसानी से डिस्पोज़ हो सके । क्योकि पीपीई किट और मास्क से हजारों टन कचरा रोज निकलेगा, अगर उसे डिस्पोज़ नहीं किया गया और वह आसानी से डिस्पोज़ नहीं हुआ, तो पूरा विश्व कोरेना महामारी में ही समाप्त हो जाएगा । इसलिए आइये इस विश्व पर्यावरण दिवस पर संकल्प लें कि हम सभी मास्क का उपयोग करने के बाद उसे यहाँ न फेक कर उसे डिस्पोज़ करेंगे। यही बात पीपीई किट के लिए भी लागू होती है । तभी पर्यावरण को सुरक्षित रखा जा सकता है ।

प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव

पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट

Similar News