जिस प्रकार राजनेता अपनी पूरी शक्ति लगाकर देश का फटाफट विकास कर रहे हैं, न्यायपालिका दनादन न्याय कर रही है, अफसर सटासट जनता की सेवा कर रहे हैं, उसी प्रकार देश की पत्रकारिता भी धांय धांय सच को सामने लाने के लिए प्रतिबद्ध है।
अभी कल की ही बात है, मेरे एक पत्रकार मित्र एक सत्य का कॉलर पकड़ कर घसीट रहे थे। सत्य गिड़गिड़ा रहा था कि मालिक छोड़ दो, माफ कर दो... मित्र गरज रहे थे कि छोड़ कैसे दें बे? तुमको सब के सामने लाना मेरा धर्म है, हम दुनिया को सच बता कर मानेंगे। अंत मे पाँच हजार पर बात तय हुई तो सत्य की जान बची... लोकतंत्र में सत्य के ऊपर भी हजार खतरे हैं।
कभी कभी जब मुझसे कोई भूल हो जाती है तो मैं प्रायश्चित के लिए किसी समाचार चैनल पर चलने वाला डिबेट सुनने लगता हूँ। महान संत पॉल दिनाकरन ने कहा है डिबेट वही सुनो जिसकी एंकरिंग कोई सुन्दर महिला कर रही हो। मैं वही करता हूँ। सच मानिए, आधे किलो के मुँह में डेढ़ किलो क्रीम पोत कर आई सुन्दर एंकर जब मुस्कुरा कर कहती है कि "बने रहिये हमारे साथ! सबसे पहले हम आपको बताएंगे कि तीसरा विश्वयुद्ध कब होगा..." तो भरोसा हो जाता है कि सौंदर्य में सचमुच बहुत शक्ति होती है। वह जब चाहे विश्वयुद्ध करा सकता है।
मैं खूब डिबेट सुनता हूँ। विश्वास कीजिये, मेरे सारे पाप वैसे ही धूल जाते हैं जैसे भाजपा में आते ही.... खैर छोड़िये!
आजकल पत्रकारिता में भी बड़ा विभाजन हो गया है। राष्ट्रवादी पत्रकारिता, जनवादी पत्रकारिता, आबादीवादी पत्रकारिता, थप्पड़वादी पत्रकारिता, विवादी पत्रकारिता... एक आम दर्शक समझ नहीं पाता कि वह सुधीर चौधरी की राष्ट्रवादी खबरें सुने या बरखा दत्त वाली थप्पड़वादी पत्रकारिता को गुने... मैंने इसका आसान तरीका निकाला है। मैं आइस-पाइस के खेल में चोर चुनने वाला तरीका अपनाता हूँ और "आदी, पादी, नून, सवादी, जे पादी, मरचैया पादी" गिन लेता हूँ। जिसपर पादी आता है, मैं उसे ही सुनता हूँ।
कुछ लोगों को लगता है कि पत्रकारिता आसान काम है। बस माइक लिया और किसी के मुँह में ठूस कर पूछने लगे कि महीने दिन के बाद शराब की दुकान खुलने पर आपको कैसा लग रहा है? और सामने वाले का रोम रोम मुस्कुरा कर उत्तर देने लगा कि मन प्रसन्न है, आत्मा तृप्त है, हृदय दहक रहा है, मिजाज चहक रहा है, गाँव महक रहा है, कदम बहक रहा है...
ऐसा नहीं है। बड़े खतरे हैं इस राह में... अभी कल की ही बात है, एक सुन्दरी रिपोर्टर ने मुंबई से पैदल आ रहे किसी बिहारी युवक के मुंह में माइक ठूस कर पूछा, "आप आठ सौ किलोमीटर से पैदल आ रहे हैं, आपको कैसा लग रहा है?"
युवक मुस्कुरा कर बोला, "अब तक को बहुत बुरा लग रहा था, पर आपको देखते ही सारे दुख दूर हो गए। कसम शरद पवार की आपके होठों की चटक लाल लिपिस्टिक देख कर मन करता है कि वामपन्थी हो जाऊं, बस आपके नीले दुपट्टे को देख कर बसपाई हुआ पड़ा हूँ..."
बिहारी चुप ही नहीं हो रहा था। सुन्दरी ने किसी तरह भाग कर प्रशंसा से पीछा छुड़ाया।
सच पूछिए तो भारत का हर महकमा अपनी पूरी शक्ति के साथ अपने कर्तव्य पथ पर डंटा हुआ है। कोई किसी से कम नहीं। एक उदाहरण देखिये। जिस दिन लॉक डाउन हुआ उसी दिन मेरे जिले के सांसद जो पेशे से डॉक्टर हैं, पत्रकारों को बता कर अपने आप को होम कोरोनटाइन कर लिए। बोले कि हम जनता को प्रेरित करने के लिए स्वयं ही कोरोनटाइन में जा रहे हैं। दो महीने बीत गए, वे अभी तक जनता को प्रेरित कर रहे हैं। मेरा जिला अब महान बनने ही वाला है।
खैर! कल पत्रकारिता दिवस था। मैं अपने मित्र और पत्रकार R j rana को बहुत बहुत बधाई देता हूँ।
सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।