गङ्गा दशहरा (भाग ५):- (निरंजन मनमाडकर)

Update: 2020-05-29 11:21 GMT


"भगीरथ चरित्र"

अथ विष्णतनुं प्राप्तां गङ्गां द्रवमयीं क्षितौ |

आनेतुं गुरूणादिष्टः पितॄञ्छापप्रभावतः ||

भस्मीभूतान्मुनीन्द्रस्य कपिलस्यातितेजसः |

उद्दिधीर्षुमहात्मा स राजा सगरवंशजः ||

भगीरथः परात्मानं विष्णुंलोकेश्वरेश्वरम् |

चिरमाराधयामास यतात्मा मुनिसत्तम ||

नारद! अतितेजस्वी भगवान कपिल मुनी के शापसे भस्मीभूत अपने पितरोंका उद्धार हेतु, गुरू वसिष्ठ की आज्ञानुसार! महाराज सगरके वंशज जितेन्द्रिय राजा भगीरथने विष्णुपद को प्राप्त भगवती गङ्गाजी को पृथ्वीपर लाने केलिए लोकनाथाधिपती परमात्मा भगवान विष्णुजी की चिरकाल तक तपस्या की, आराधना की!

ततः प्रसन्नो भगवान्परात्मा पुरूषोत्तमः |

प्रत्यक्षं समभूत्तस्य राज्ञः पुण्यतमात्मनः ||

तब भगवान परमात्मा पुरूषोत्तम विष्णु प्रसन्न हो कर पुण्यात्मा राजा भगीरथ के सामने प्रकट हुए.

गरूडाऽरूढ, वनमालाविभूषित, पीताम्बर धारी, शङ्ख चक्र गदा धारणकिये हुए जगन्नाथ नारायण को देखकर भगीरथ महाराज ने उनकी स्तुती करना आरंभ किया.

भगीरथ उवाच

त्रैलोक्यपावन जगत्परिवन्द्यपाद्य

विश्वेश विश्वप महापुरूषप्रधान |

नारायणाच्युत हरे मधुकैटभारे

विष्णो प्रसीद परमेश्वर ते नमोऽस्तु ||

तीनों लोकोंको पवित्र करने वाले जगत् वन्दित चरण जिनके है तथा जो विश्व के पालनहार है, महापुरूषोमें श्रेष्ठ है, विश्वेश, नारायण, अच्युत, हरि, मधुकैटभ के शत्रु विष्णो! आप हम पर प्रसन्न हो! हे परमेश्वर आपको नमन है!

विश्वैककारण पुराण जगन्निधान

श्रीवत्सलाञ्छन विभो मधुसूदनाख्य |

गोविन्द वामन जनार्दन विश्वमूर्ते

विष्णो प्रसीद परमेश्वर ते नमोऽस्तु ||

हे विश्व के एकमात्र कारण, सनातन, जगदाधार, श्रीवत्सकेचिन्हसे सुशोभित, विभो, मधुसूदन, गोविन्द, वामन, जनार्दन, विश्वमूर्ते, विष्णो! आप हमपर प्रसन्न हो! परमेश्वर आपको नमस्कार है!

अत्यन्तविक्रम जगन्मय वासुदेव

दैत्यान्तकान्तक भयान्तक कान्त पूर्ण |

वैकुण्ठ माधव धराधर चारूरूप

विष्णो प्रसीद परमेश्वर ते नमोऽस्तु ||

हे वासुदेव! आप अत्यन्त पराक्रमी, विश्वरूप, दैत्योंका नाश करने वाले, यमस्वरूप भयका नाश करने वाले कान्तिमय पूर्णस्वरूप वैकुण्ठ माधव धराधर सुन्दररूप विष्णो आप हमपर प्रसन्न हो! परमेश्वर आपको नमस्कार है!

लक्ष्मीपतेऽमरपते जगदेकनाथ

मायाश्रयैक करूणामय केशवेश |

आनन्दसान्द्र कमलेक्षण शुद्धबोध

वाणीपतेऽखिलपते सततं नतोऽस्मि ||

लक्ष्मीपती, देवोंके अधिपती, जगत् के एकमात्र नाथ, मायाजिनका आश्रय लेती है वह मायापती, करूणामय, केशव, ईश्वर, कमलसदृश नेत्र वाले, घनानन्द तथा शुद्ध ज्ञान के स्वरूप, वाणीपती, अखिलविश्वके स्वामी आपको मैं वारबार प्रणाम करता हूँ!

नमस्ते विश्वरूपाय विष्णवेऽमिततेजसे |

सच्चिदानंदरूपाय शुद्धज्ञानात्मने नमः ||

अत्यन्त तेजस्वी तथा विश्वरूप विष्णु को नमस्कार है शुद्ध ज्ञानात्मा सच्चिदानंदरूपको नमस्कार है!

देवदुर्लभ आपके दर्शन पाकर मेरा जन्म सफल हुआ

मेरा तप सफल हुआ!

महादेव कहते है!

राजा भगीरथ के इन स्तुती वाक्योंको सुनकर भगवान विष्णुजी ने भगीरथ से कहा

राजन्! आपका अभीष्ट क्या है उसे माँग लिजिए, आपकी भक्तिसे मैं प्रसन्न हूँ!

भगीरथ जी ने कहा मेरे पूर्वज ब्रह्मशापसे भस्मीभूत होकर अधोगती को प्राप्त हुएं है! उनका उद्धार केवल गङ्गाजलसे ही संभव है! अतः माँ भगवती गङ्गा को पृथ्वीपर ले जाना चाहता हूँ!

ब्रह्माजी के कमण्डलुमें रहने वाली गङ्गा आपके विग्रह में स्थित हो गयी है!

यदि आप उन भगवती गङ्गा को प्रदान करेंगे तो मेरे सभी पूर्वज परमपद को प्राप्त हो जाएंगे!

भक्तोंपर कृपा करनेवाले जगन्नाथ! आपसे यही अभिलाषा है!

भगवान विष्णु ने कहा., वत्स! ये द्रवमयी गङ्गा मेरे चरणोंमे से निकलकर स्वयं पृथ्वीपर जा कर आपके पूर्वजोंका उद्धार करेंगी!

राजन्! आप उन परमाराध्या भगवती गङ्गा एवं विश्वनाथ की प्रार्थना करें तभी आपका अभीष्ट सिद्ध हो जाएगा!

इस प्रकार भगीरथ को दर्शन देकर भगवान विष्णु अंतर्धान हुए!

तब जितेन्द्रिय महाराज भगीरथ हिमालय की उत्तरी शिखरपर जाकर गङ्गाजी की आराधना करने लगे..

उनके हजारों वर्षों की तपस्या से भगवती गङ्गा प्रसन्न हो गयी! वे जगत्पावनी गंगाजी राजा भगीरथ के समक्ष प्रकट हुई! और कहाँ राजन् आपका अभीष्ट वर माँगो!

भगीरथ ने कहा, माता शिवसुन्दरी! अगर आप मुझपर प्रसन्न है तब आप मेरे साथ पृथ्वीलोक पधारें, मुनीशापसे भस्मसात मेरे पूर्वजोंका उद्धार करें!

सभी देवताओंकी वन्दनीय जगन्माते! यदि आप मेरे पूर्वजोंका उद्धार करेंगी तो मैं कृतार्थ हो जाऊंगा!

गङ्गाजी ने कहा महाराज ऐसा ही होगा! मैं भगवान विष्णुके चरणकमलों से निकलकर पृथ्वी पर अवतरित होऊंगी इसलिए जगत् में आपकी कन्या कहलाऊंगी और इस संसार में भागिरथी के नाम से विख्यात हो जाऊंगी!

राजन्! आप भगवान विश्वनाथ को प्रसन्न किजिए वे मेरे पती भी है तथा मैं उनकी वशवर्तिनी हूँ! अतः उनकी आज्ञा के बिना मैं नही प्रवाहित हो सकती!

हे भूपते! आप भगवान शिव के प्रसन्न जाने से मेरू शिखर पर मेघगर्जना समान शङ्खध्वनि करेंगे तब मैं विष्णुजी के चरणोंसे निकलकर ब्रह्माण्डको अत्यन्त वेगपूर्ण विदीर्ण करके जलरूप में आपके पीछे पीछे आऊंगी! विवर में प्रविष्ट होकर आपके पितरोंका उद्धार करूंगी! और आगे पाताललोक में चली जाऊंगी!

ऐसा कहकर वे भगवती गङ्गा देखते ही देखते क्षणभर में अंतर्धान हुई

तत्पश्चात् भगवती गङ्गा के आज्ञानुसार भगीरथ जी ने जितेन्द्रिय तथा निराहार रहते हुएं शतवर्ष तक भगवान शिव की आराधना की!

तब देवदेवेश्वर अविनाशी पञ्चानन वृषभध्वज भगवान शंकरने उन्हे प्रत्यक्ष दर्शन दिएं!

रजतकी तरह कान्तिसमान, पञ्चानन, शूलधारी, व्याघ्रचर्मपरिधान किए हुए, नीलकण्ठ, भुजङ्गभूषण, स्मितवदन, भालचंद्र भगवान महेश्वर को देखकर राजा भगीरथ ने उन्हे साष्टाङ्ग प्रणिपात किया तथा उन्हे १००८ नामोंसे तुष्ट किया!

यहापर आगे के अध्याय में शिवसहस्रनाम तथा उसके पाठ का महात्म्य आता है! १२५ श्लोकों में सहस्रनाम स्तोत्रम् आता है आगे भगीरथ एवं महादेव का संवाद आता है!

देवताओंके स्वामी भुजङ्गभूषण वृषभारूढ भगवान विश्वनाथ को देखकर महाराज भगीरथ नाँचने लगे और कहा के परमेश्वर मेरा जनम सफल हुआ आज मुझे आपके दर्शन हुए! पूरे ब्रह्माण्डमें आपके जैसा कोई भी नही है! आप परात्पर पूर्ण निर्विकार अविनाशी है!

तदनन्तर शरणागतोंकी पीडा हरण करने वाले महादेव ने कहा..

पुत्र! मैं तुम्हारी भक्तिसे प्रसन्न हूँ! वरदान माँगो!

तब भगीरथजी ने कहा पूर्वकालमें महाराज सगर कें पुत्र कपिलमुनी के शापसे भस्मीभूत हो गयें है! उनकी गती के हेतु गङ्गा को पृथ्वीपर लाना चाहता हूँ! वे तो आप की परमशक्ति है अतः बिना आपके इच्छा के यह कतई संभव नही है! अतः मै चाहता हूँ की वे परमपावनी भगवती गङ्गा पृथ्वीलोकपर आकर मेरे पूर्वजोंका उद्धार करें!

भगवान आशुतोष महादेव ने कहा!

वत्स तुम्हारी कामना अविलम्ब पूर्ण होगी!

और वे अन्तर्धान हुएं.

श्रीमहादेव ने कहा

अथ राजा स पुण्यात्मा ज्येष्ठे मासे शुभेऽहनि |

हस्तायां मङ्गलदिने शुक्लपक्षे महामुने ||

आरूरोह रथं दिव्यं ध्मायन्शङ्खं महास्वनम् |

हे मुने! इस प्रकार राजाभगीरथ जेष्ठमास के शुक्लपक्ष में हस्त नक्षत्रयुक्त मङ्गलवार के दिन उच्च ध्वनिमें शङ्ख बजाते हुएं रथपर आरूढ हुएं!

वे सूर्यवंशी राजा भगीरथ रथपर मध्यान्ह कालीन सूर्य की भाँति अपरिमित तेज से सुशोभित हो रहे थें!

रथारूढ राजा भगीरथ महाराज अब गङ्गा अवतरण हेतु स्वर्ग की तरफ प्रस्थान करते हुए जानकर भगवती पृथ्वी देवी उनके सामने प्रकट हुई!

पृथ्वीजी ने कहा!

धर्मात्मा महाराज! आप त्रैलोक्य जननी साक्षात् गङ्गा जी को इसधरा पर लाने हेतु जा रहे है, आप कुछ ऐसा करें की वे विष्णुपदी चारों दिशाओं में प्रवाहित हो कर मुझे पावन करें!

तब भगीरथ ने कहा.

देवी! पुण्यसलीला त्रैलोक्यपावनी भगवती गङ्गा जब विष्णुपदसे निकलकर मेरूशिखर पर अवतरित होंगी तब आप भी उनकी आराधना कर अपना अभीष्ट कहिए, मै भी आपके लिए विशेष प्रार्थना करूंगा, तब वे आपके लिए मनोवाञ्छित फल देने वाली होगी! आप भी उन श्रेष्ठ भगवती की प्रार्थना हेतू मेरे साथ आईएं!

महादेव जी ने कहा

तब कमलवक्त्रा भगवती पृथ्वी देवी महाराज भगीरथ के साथ स्वर्गलोक जाने केलिए सिद्ध हुई!

राजा भगीरथ का रथ वायुवेगसे मेरूश्रृङ्गपर पहुंच गया! तब मेघ गर्जना के समान शङ्ख ध्वनिकें घोष कर उन्होने भगवती गङ्गा का आवाहन किया तब नीररूपिणी पराप्रकृति भगवती गङ्गा द्रवरूप हो कर भगवान विष्णुके चरणोंसे निकलकर कलकल ध्वनि करती हुई मेरू श्रृङ्गपर गिरी!

तब अतिप्रसन्न राजा भगीरथ जलधारा रूपी गङ्गा को देखकर नाचने लगे! शङ्खध्वनिकों शांत देखकर भगवती गङ्गा भी अपने वेग को छोडकर शांत हुई तथा मेरूश्रृङ्गपर कुछ समय विश्राम किया.

क्रमशः...

ॐ श्री मात्रे नमः

लेखन व प्रस्तुती

©️निरंजन मनमाडकर पुणे महाराष्ट्र

हर हर गङ्गे भागिरथी

२९/०५/२०२० 

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