इस समय पूरा देश कोरेना संक्रमण की वजह से लॉक डाउन की पाबंदियों के बीच जीवन यापन करने को विवश है । इस समय लॉक डाउन का चौथा चरण चल रहा है। प्रवासी मजदूरों के अपने जन्म स्थान के प्रति मोह के कारण केंद्र और राज्य सरकारें बैक फुट पर आ गई हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब लॉक डाउन की घोषणा की थी, उस समय बड़ी सख्ती के साथ जो जहां है, वहीं रहने की अपील की गई थी। उनके रहने और भोजन की व्यवस्था भी सरकार और सामाजिक संस्थाओं द्वारा की गई थी। लेकिन प्रवासी मजदूरों की जिद के सख्ती भी काम नहीं आई। मनुष्य एक संवेदनशील प्राणी होता है। उसी संवेदशीलता के कारण पहले तो मजदूरों के साथ कुछ सख्ती की गई, लेकिन बाद में उसमे भी ढील दे गई । इस ढील का नतीजा यह हुआ कि जिस कोरेना संक्रमण पर विराम लगता दिख रहा था, उसमें एकाएक इजाफा होना शुरू हुआ। कई ऐसे जिले प्रकाश में आए, जहां तीसरे चरण तक एक भी पेशेंट नहीं था। प्रवासी मजदूरों के आने से वहाँ एक-एक दिन मे सैकड़ों संक्रमित प्रकाश में आए और सरकार को उसे रेड जोन में डालना पड़ा ।
हालांकि सभी प्रदेश सरकारों की तरह उत्तर प्रदेश सरकार ने आने वाले सभी प्रवासी मजदूरों के लिए कोरेंटाइन सेंटर की व्यवस्था कर रखी है। उन्होने सभी जिलाधिकारियों को सख्त आदेश निर्गत कर रखे हैं कि वे अपने यहाँ आने वाले मजदूरों को पहले 14 दिन तक क्वारंटाइन सेंटर पर रखें, इसके बाद उन्हें अपने – अपने घरों को जाने दें । संबन्धित जिला अधिकारियों ने भी अपने मातहत अधिकारियों को आदेश निर्गत कर इस पर तामील कराया । लेकिन जल्दी-जल्दी में की गई तैयारियों में कई कमियाँ रह गई। जिसकी वजह से क्वारंटाइन सेंटर में रखे मजदूरों ने आपत्ति दर्ज कराई । दूसरी ओर यह भी देखा गया कि क्वारंटाइन किए गए मजदूरों को लगा कि इन केन्द्रों पर उनके लिए फर्स्ट क्लास की सारी व्यवस्था होगी। उन्हें मनचाहा खाना खाने को मिलेगा, और रहने और सोने के लिए भी फर्स्ट क्लास की व्यवस्था होगी। जबकि ऐसा नहीं था ।
बुलंदशहर में क्वारंटाइन शिविरों में समय से भोजन न मिलने से परेशान 16 क्वारंटाइन मजदूर खिड़की तोड़कर भाग गए । इनके खिलाफ एफआई आर भी दर्ज कराई गई । और उनकी धरपकड़ के लिए छापेमारी भी की गई। जिसमें से 11 लोगों को गिरफ्तार कर फिर से क्वारंटाइन कर दिया गया । देश के विभिन्न शहरों से अपने गांव पहुंचे प्रवासी मज़दूरों को गांव के स्कूलों, बारातघरों और बागों, जंगलों या निर्जन स्थान में बनाए गए क्वारंटाइन सेंटरों में रखा गया है । इसमें बिजली, पानी, शौचालय आदि की कोई व्यवस्था नहीं की गई । इन क्वारंटाइन सेंटरों पर प्रवासी मजदूरों को अपने घर से आए भोजन और पानी पर निर्भर रहना पड़ा। इस संबंध में अधिकारियों का कहना है कि क्वारंटाइन सेंटरों में रहने वाले लोगों ने घर के खाना खाने की इच्छा व्यक्त की, इसलिए इस प्रकार की छूट दी गई । इन सेंटरों पर शौचालय की व्यवस्था न होने की वजह से इन्हें खुले मैदान में जाना होता है । इन्हें घर नहीं जाने दिया जा रहा है। ये लोग मोबाइल फोन से ही अपने परिवारिजनों, रिशतेदारों और मित्रगणों से संपर्क कर पा रहे हैं ।
सरकार की ओर से ग्राम प्रधान की अध्यक्षता में एक कमेटी बना दी गई है। साथ ही सभी ग्रामवासियों को यह हिदायत दे दी गई है कि जैसे ही कोई शहर से गाँव आए, उसकी सूचना उन्हें दी जाए, और उन्हें रहने के लिए बनाए गए क्वारंटाइन सेंटर भेज दिया जाए । अपने अध्ययन में यह भी पाया कि इस प्रकार की सूचना प्रवासी मजदूरों को नहीं थी। अगर थी भी तो भी वे क्वारंटाइन सेंटर न जाकर पहले अपने घर जाकर अपने परिवार से मिलना चाहते थे। इस कारण बहुत से ऐसे प्रवासी मजदूर पहले अपने घर पहुँच गए, जब उनके आगमन की सूचना किसी माध्यम से ग्राम प्रधान को मिली, तो उन्होने फोन करके उन्हें क्वारंटाइन सेंटर भेजने को कहा। तब जाकर वे आए। शुरुआती दिनों में इन क्वारंटाइन सेंटरों पर उनके रहने की उचित व्यवस्था नहीं की गई थी। गाँव का मसला था, इसलिए ग्राम प्रधान और सचिव दोनों ने मिल कर यह तय किया कि जिस घर का प्रवासी होगा, उसी घर से चारपाई और बिस्तर मंगा कर उसे दे दी जाएगी। तमाम मामलों में ऐसा ही हुआ । जहां पर गाँव बड़ा था। ग्राम प्रधान पढ़े-लिखे थे, उन लोगों ने भागदौड़ करके सरकार की तरफ से आई मदद भी प्राप्त कर ली थी, इसलिए ऐसे ग्राम प्रधानों के गावों में जो क्वारंटाइन सेंटर बने, वहाँ पर सोने के लिए चारपाई और बिस्तर उपलब्ध थे। लेकिन जहां पर क्वारंटाइन सेंटर बनाए गए थे। खेत खलिहान, बाग-बगीचा या गंदगी होने के कारण मच्छर बहुत थे, मच्छरदानी किसी को नहीं दी गई थी। इसलिए पहले दिन सभी क्वारंटाइन मजदूरों को मच्छर काटने की शिकायत रही । लेकिन दूसरे ही दिन अपने घर वालों से उन्होने मच्छरदानी मँगवा ली । प्राय: यह देखा गया कि कस्बों और जिला मुख्यालयों से दूर के गावों में क्वारंटाइन किए गए मजदूरों के खाने और पीने की व्यवस्था उनके घर वालों के द्वारा ही की गई थी। लेकिन जो गाँव कस्बे या जिला मुख्यालय से नजदीक हैं, वहाँ आगमन वाले दिन की बात छोड़ दें, तो उनके खाने और पानी की व्यवस्था ग्राम प्रधान द्वारा ही की गई है । कहीं कहीं प्रवासी मजदूरों ने बवाल भी किया। जिस पर प्रधान द्वारा कड़ा रुख अपनाया गया । पुलिस बुलाने या फिर जिला मुख्यालय स्थित क्वारंटाइन सेंटर भेजने की बात कह कर उन्हें शांत किया गया । कई गावों में यह भी सुनने में आया कि दबंग प्रधानों ने अपने हड़का कर शांत करा दिया । इन क्वारंटाइन सेंटरों पर रोशनी के नाम पर एक या दो बल्ब की व्यवस्था की गई। जिसकी वजह से लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ा। सिर्फ बाग-बगीचों या गाँव से दूर बने क्वारंटाइन सेंटरों पर ही नहीं, गाँव के स्कूलों में भी जो क्वारंटाइन सेंटर बनाए गए। उसमें भी काफी समस्याएँ विद्यमान रहीं । लॉक डाउन और गर्मी की छुट्टी की वजह से खराब पड़े हैंड पाइप एक प्रमुख समस्या पाई गई । अगर किसी स्कूल का हैंड पाइप ठीक रहा, तो उसमें से पीला पानी आने की शिकायत की गई। अगर गाँव कस्बे या जिला मुख्यालय से पास रहा, तो वहाँ इन लोगो के लिए आरओ के पानी की व्यवस्था की गई। नहीं तो घर से ही पानी मंगा कर पीना पड़ा । लेकिन अपना नाम न बताने की शर्त पर लोगों ने कहा कि कुछ प्रभावशाली लोग या ग्राम प्रधान के करीबी लोग रात को अपने घर जाकर सोते और भोर होने के पहले ही क्वारंटाइन सेंटर आ जाते हैं ।
जब मैंने क्वारंटाइन सेंटरों की समस्यायों के पीछे की हकीकत जानना चाहा तो यह पता चला कि इसमें ग्राम प्रधान और जिलाअधिकारी द्वारा नामित कमेटी का दोष नहीं था। किसी भी गाँव में इसकी पूर्व सूचना नहीं थी, कि किस दिन कितने लोग आने वाले हैं। ग्राम प्रधानों ने कहा कि अगर उन्हें इसकी सूचना होती तो वे सरकार द्वारा निर्देशित सारी व्यवस्था करते । इस कारण क्वारंटाइन सेंटर में आने वाले प्रवासी मजदूरों को एकाध दिन तो परेशानी हुई, लेकिन दूसरे दिन उसकी सारी परेशानी दूर कर दी गई । कभी – कभी अधिक संख्या में प्रवासी मजदूरों के आ जाने की वजह से भी अव्यवस्था हुई। कुछ लोगों को व्यवस्था मिली, कुछ लोगों को व्यवस्था देने में एक दो घंटे का समय लगा । ऐसे अवस्था में संबन्धित मजदूर के घर वालों से भी मदद ली गई। गाँव है, गाँव में सारे कार्य एक दूसरे की मदद से ही चलते हैं ।
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा बनाए गए इन क्वारंटाइन सेंटरों की अवयवस्था की खबरें समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के पास पहुंची तो उन्होने सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि सरकार ने क्वारंटाइन सेंटरों पर जो व्यवस्थाएं की है, वे नाकाफी हैं। वहाँ काफी अव्यवस्थाएं हैं । इस वजह से क्वारंटाइन किए गए प्रवासी मजदूरों में असंतोष है । योगी सरकार के निर्देश पर प्रशासन द्वारा की जा रही दंडात्मक कार्रवाई का विरोध करते हुए उन्होने ट्वीट किया कि उप्र में कोरोना के संबंध में हज़ारों एफआईआर हो रही हैं जिससे ऐसा लगने लगा है कि ये कोई चिकित्सीय नहीं बल्कि कोई 'आपराधिक समस्या' है. क्वारेंटाइन सेंटर्स की बदहाली व उनके प्रति भाजपा सरकार की भेदभावपूर्ण नीति की वजह से लोग यहाँ जाने से डर रहे हैं । भाजपाई अपना संकीर्ण चश्मा बदलें !
उन्होने अपने ट्वीट में यह साफतौर पर कहा कि यह चिकित्सकीय अव्यवस्था का मामला है, कोई आपराधिक समस्या नहीं है। जो उनके खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की जा रही है। साथ ही उन्होने क्वारंटाइन सेंटर में रखे गए प्रवासी मदूरों से भेदभावपूर्ण रवैया अपनाने का भी जिक्र किया । उन्होने अपने ट्वीट मे लिखा कि भारतीय जनता पार्टी अपनी संकीर्ण मानसिकता त्याग कर खुले मन से काम करे ।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की स्वीकृति के बाद चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक डॉ. केके गुप्ता ने सभी चिकित्सा संस्थानों, राजकीय मेडिकल कॉलेजों के प्रधानाचार्यों को पत्र भेज कर कहा कि एल टू व एल थ्री कोविड अस्पतालों में मरीजों को मोबाइल फोन ले जाने की अनुमति नहीं है, क्योंकि इससे संक्रमण फैलता है। इसलिए भर्ती मरीजों को उनके परिजनों से बात कराने के लिए दो डेडिकेटेड मोबाइल फोन इंफेक्शन प्रिवेंशन कंट्रोल प्रोटोकाल का अनुपालन करते हुए कोविड केयर वार्ड के इंचार्ज के पास रखवाया जाए।
इस आदेश पर अपनी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर एक साथ हमला बोलते हुए कहा कि अस्पतालों में मोबाइल निषेध करने के पीछे सरकार की यह मानसिकता है कि लोग वहाँ की अव्यवस्थाओं को उजागर न कर सकें । उन्होने अपने ट्वीट में लिखा कि अगर मोबाइल से संक्रमण फैलता है तो आइसोलेशन वार्ड के साथ पूरे देश में इसे बैन कर देना चाहिए । यही तो अकेले में मानसिक सहारा बनता है. वस्तुतः अस्पतालों की दुर्व्यवस्था व दुर्दशा का सच जनता तक न पहुँचे, इसीलिए ये पाबंदी है । ज़रूरत मोबाइल की पाबंदी की नहीं बल्कि सैनेटाइज़ करने की है ।
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के इस विरोध को नकारात्मक नहीं लेना चाहिए । वे एक सजग विपक्ष की भूमिका निभा रहे हैं। साथ ही अगर अस्पताओं और कोरंटाइन सेंटरों पर कोई कमी हो, तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनकी सरकार को उसे दूर करना चाहिए ।
प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव
पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट