समाजवाद को न मानने वाले संविधान नहीं जानते : नंदा

Update: 2020-05-19 03:41 GMT


समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री किरणमय नंदा बीते करीब छह दशक से सक्रिय राजनीति में हैं। मूल रूप से पश्चिम बंगाल से ताल्लुक रखनेवाले श्री नंदा वहां तीन दशक से भी ज्यादा समय तक वाम मोर्चा सरकार में मंत्री रहे। समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक श्री नंदा उत्तर प्रदेश की सियासत की भी गहरी समझ रखते हैं। पेश हैं मौजूदा राजनीतिक माहौल पर वरिष्ठ पत्रकार रंजीव से उनकी बातचीत:

आनेवाले समय में समाजवादी आंदोलन की क्या भूमिका देखते हैं?

मैं 1967 से समाजवादी राजनीति में हूं। डा. राम मनोहर लोहिया जब पश्चिम बंगाल में आए थे तब झाड़ग्राम में वनवासी पंचायत में उनका भाषण सुना। उनसे प्रभावित होकर संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी में शामिल हो गया। 1992 में नेताजी मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी बनाई तब से सपा में हूं। आज जो भारत के हालात हैं उसमें डा. लोहिया के रास्ते पर ही चलना होगा। इसलए सपा की अहम भूमिका है। जब नेताजी अध्यक्ष थे तब लगातार कहते थे, लोकसभा के भाषणों में भी कहा, कि चीन से ज्यादा खतरा है। आज कोरोना का अनुभव यही साबित भी करता है कि कैसे चीन बड़ा खतरा है। आज भारत में लोकतंत्र के नाम पर देश में तानाशाही चल रही है। सरकारी कामकाज में समाजवादी मूल्यों का और गरीब का कोई स्थान नहीं। ऐसे में समाजवादी आंदोलन की आज पहले से कहीं ज्यादा भूमिका है।

राष्ट्रीय स्तर पर समाजवादी पार्टी के प्रसार की क्या रणनीति है?

देखिए किसी भी राजनीतिक पार्टी में नेतृत्व बहुत अहमियत रखता है। यह सही है कि आज समाजवादी पार्टी की राष्ट्रीय उपस्थिति नहीं है। भविष्य को देखेगें तो सपा का बहुत उज्जवल भविष्य है। हमारे पास समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अखिलेश यादव जी के रूप में शानदार नेतृत्व है। उनकी जो सोच है, उनकी जो छवि है और जनता पर उनका जो प्रभाव है, उनपर जनता ता जो भरोसा है वह साबित करता है कि उनकी उम्र का किसी भी पार्टी में कोई नेता नहीं है जिनका इतना प्रभाव और सम्मान है। लिहाजा मेरा विश्वास है कि आनेवाले दिनों में समाजवादी पार्टी पूरे भारत में एक मजबूत पार्टी के रूप में उभरेगी।

हाल के दिनों में कुछ राजनीतिक दल व उससे जुड़े राजनीतिक नेता समाजवाद शब्द पर सवाल उठा रहे हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी इनमें शामिल हैं। क्या कहेंगे इसपर?

ऐसे लोगों को देश के संविधान की ही जानकारी नहीं है। योगी आदित्यनाथ जी मुख्यमंत्री जैसे संवैधानिक पद पर बैठे हैं लेकिन समाजवाद को ही खारिज कर रहे। क्या उन्हें संविधान की जानकारी नहीं या उसकी परवाह नहीं? भारत के संविधान की प्रस्तावना में ही समाजवाद शब्द है। ऐसे में जो यह कहतें हैं कि समाजवाद की प्रासंगिकता नहीं उन्हें संविधान की कोई जानकारी ही नहीं है। कोई तानाशाह ही कह सकता है कि समाजवाद का कोई अस्तित्व ही नहीं है। बिना समाजवाद के कोई लोकतंत्र स्थापित नहीं हो सकता है। जो समाजवाद को नकारेंगे, उनकी लोकतंत्र में कोई आस्था नहीं हो सकती। उत्तर प्रदेश में क्या हो रहा है? जब से योगी जी मुख्यमंत्री बनें हैं, विकास का कोई काम तो हो नहीं रहा। जब 2012 में अखिलेश जी मुख्यमंत्री बने थे तो उत्तर प्रदेश विकास की राह पर चल पड़ा था। पांच साल में जो विकास कार्य हुए वैसा पहले कभी नहीं हुआ। उत्तर प्रदेश के विकास से भारत का विकास होता है। यूपी पीछे रह जाएगा तो भारत पीछे रह जाएगा। उत्तर प्रदेश का जीडीपी बढ़ेगा तो देश का भी बढ़ेगा। भारत की जीडीपी दर इसलिए घटी हुई है क्योंकि यूपी का जीडीपी कम है। दुर्भाग्य की बात है कि 2017 के बाद यूपी का विकास ठप हो गया है। सपा की सरकार में हुए विकास कार्यों के दम पर ही मौजूदा सरकार चल रही है।

कोरोना से उपजे हालातों के मद्देनजर आनेवाले समय में राजनीतिक परिदृश्य में क्या बदलाव देखते हैं?

बेहद अफसोस की बात है कि आज कोरोना को लेकर भी राजनीति चल रही है। कोरोना को भी सांप्रदायिक रूप देने की कोशिश की जा रही है। भारत में जब अहमदाबाद में नमस्ते ट्रंप कार्यक्रम में भीड़ जुटाई जा रही थी तब तक अमेरिका में कोरोना फैल चुका था। भारत में केवल केरल में इक्का-दुक्का मामले आए थे। ट्रंप के साथ अमेरिका से उतने सारे जो लोग आए थे उनकी कोई जांच तो हुई नहीं थी कि कहीं वे कोरोना से संक्रमित तो नहीं थे। उसकी बात तो नहीं की जा रही है? सिर्फ दिल्ली में निजामुद्दीन के वाकए से जो कोरोना के मामले बढ़े उसकी तरफ ही उंगली उठाई जा रही है। निजामुद्दीन में हुए कार्यक्रम में बड़ी संख्या में विदेशी भी शामिल थे। उन्हें भारत में आने का वीजा किसने दिया था? केन्द्र सरकार ही वीजा देती है न। तो उसकी कोई जिम्मेदारी नहीं? आज कोरोना से अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो गई है। प्रवासी मजदूरों को किस हाल में अपने घरों को लौटना पड़ा रहा है वह हम रोजाना देख रहे हैं। इन विषम हालातों को ठीक करने का दायित्व केन्द्र सरकार का है लेकिन उसके पास भाषणों के अलावा कोई रोड मैप ही नहीं है। लोगों के लिए रोटी-कपड़ा-मकान का बंदोबस्त से उसे करना है लेकिन गरीबों का कल्याण कैसे करना है इसकी कोई कार्ययोजना उसके पास नहीं है। यह बेहद चिंताजनक बात है।

कोरोना से निपटने के सरकारी तौर-तरीकों पर क्या कहेंगे?

इतनी बड़ी महामारी फैली है पर सरकार कुछ ठोस करने की जगह सिर्फ प्रयोग कर रही है। भारत में कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या एक लाख पार कर चुकी है। इसकी रोकथाम कैसे करेंगे इसपर शुरू में ही गंभीरता दिखाने के बजाए सरकार ने थाली-घंटा बजवाने और उसके बाद दीया जलवाने पर ही सारा जोर लगाया था। उस सबसे कोरोना का संक्रमण थमा तो नहीं? एक तरफ सरकार सोशल डिस्टेंसिंग की बात कर रही थी वहीं दूसरी तरफ शराब की दुकाने भी खोल दी गईं। परस्परविरोधी तरीकों से सरकार कोरोना पर काबू पाना चाहती है। जो टेस्टिंग किट चीन से मंगवाई गई वे घटिया निकलीं। उनके जांच के नतीजे ही गलत आ रहे थे। जिस कंपनी के जरिए ये किट मंगवाए गए थे क्या उसपर कोई कार्रवाई हुई?

आप समाजवादी पार्टी से शुरू से ही जुड़े हैं, अखिलेश यादव जी को करीब से देखा है। उनके बारे में क्या कहेंगे?

मैंने तो पश्चिम बंगाल में 1982 में ही पश्चिम बंगाल सोशलिस्ट पार्टी बना ली थी, जब 1992 में नेताजी मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी बनाई तो पश्चिम बंगाल सोशलिस्ट पार्टी का उसमें विलय हो गया। नेताजी हम सबके नेता पहले भी थे और आज भी हैं। समाजवादी पार्टी को कुछ लोग नुकसान पहुंचाना चाह रहे थे तब हम सबने अखिलेश जी को अपना नेता बनाते हुए अध्यक्ष पद संभालने का आग्रह किया। वे अध्यक्ष बने। डा. लोहिया ने सोशलिस्ट पार्टी बनाई थी लेकिन कभी अध्यक्ष-महासचिव नहीं रहे। जयप्रकाश नारायण ने जनता पार्टी बनाई थी लेकिन कभी अध्यक्ष या महासचिव नहीं रहे। ऐसे ही समाजवादी पार्टी को नेताजी ने बनाया तो वही सबसे बड़े नेता हैं। दलों के अध्यक्ष तो बदलते रह सकते हैं लेकिन नेता कभी नहीं बदलता। तो नेता तो नेताजी हैं लेकिन अखिलेश जी गुणों की खान हैं। भारत के बड़े-बड़े नेताओं से मेरे संबंध हैं लेकिन अखिलेश जी जैसा शिष्टाचारी, इतना सहनशील, इतना अच्छा स्वभाव, सबका सम्मान करना जैसे गुण मैंने किसी और नेता में नहीं देखा। मेरी कई ऐसे लोगों से मुलाकात हुई है जो समाजवादी पार्टी का विरोध भले करते हों लेकिन अखिलेश जी के प्रशंसक हैं। एक समाजवादी नेता में जो गुण होने चाहिए वे सारे गुण अखिलेश जी में हैं। मैंने डा. लोहिया को भी देखा है, नेताजी को भी देखा है। जो उन दोनों में गुण थे वे सब अखिलेश जी में भी हैं।

उत्तर प्रदेश में 2022 में विधानसभा चुनाव होने हैं। अपने लंबे राजनीतिक अनुभव के आधार पर चुनावों को लेकर आपका क्या आकलन है? यह भी बताइए कि चुनाव को लेकर समाजवादी पार्टी की क्या तैयारियां हैं?

समाजवादी पार्टी का लक्ष्य है 2022। जब 2019 के लोकसभा चुनाव हो रहे थे तभी हमलोगों के सामने यह स्पष्ट था कि हमारा लक्ष्य 2019 नहीं, लेकिन चुनाव हमलोगों ने पूरी गंभीरता से लड़ा। हमलोगों का लक्ष्य है 2022 में सपा की फिर से सरकार बनाना। उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा सूबा है और यहां सबसे मजबूत पार्टी है सपा। हमारा संगठन बहुत मजबूत है। यूपी में सपा की सरकारें बनीं, नेताजी तीन बार मुख्यमंत्री रहे लेकिन हम सबका एक सपना था कि एकबार सपा की अपने दम की सरकार बने। साल 2012 में प्रदेश की जनता ने सपा को वह अवसर दिया था। अखिलेश जी देश के सबसे युवा मुख्यमंत्री बने और शानदार सरकार भी चलाई। देश व प्रदेश की जनता ने देखा कि कैसे विकास को अपनी एकमात्र प्राथमकिता बनाकर अखिलेश जी ने वैसे-वैसे काम किए जो पहले उत्तर प्रदेश में कभी नहीं हुए। यह अलग बात रही कि कुछ वजहों के कारण व धर्म के नाम पर लोगों को भरमाकर भाजपा ने सरकार बना ली लेकिन लोग अखिलेश जी के काम को आज भी याद करते हैं। जनता 2012 से 2017 तक अखिलेश जी और उसके बाद की सरकार के काम-काज की तुलना कर रही है। जनता यह भी देख रही है कैसे 2017 से चल रही सरकार असंवैधानिक है क्योंकि धर्मनिरपेक्षता पर उसका यकीन नहीं। इस सरकार ने भाईचारे को खत्म किया है। 2022 में हमारे लिए जनता का यही भरोसा सबसे बड़ी ताकत है। हमनें संगठन के स्तर पर भी तैयारियों को लगातार जारी रखा है। हर पोलिंग बूथ तक मजबूत तैयारियां हैं। मुझे यकीन है कि 2022 में यूपी की जनता अखिलेश जी को फिर से मुख्यमंत्री बनाएगी।

आप पश्चिम बंगाल से हैं। वहां अगले साल विधानसभा के चुनाव भी हैं। वहां समाजवादी पार्टी के विस्तार की कोई योजना है क्या?

पश्चिम बंगाल की राजनीति बाकी जगहों से थोड़ी भिन्न रही है। वहां जाति या धर्म के नाम पर राजनीति का बोलबाला नहीं। 1977 में जब जनता पार्टी का दौर था तब भी पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव में वाम मोर्चा की सरकार बनी थी। पश्चिम बंगाल सोशलिस्ट पार्टी भी उस सरकार में शामिल थी। पश्चिम बंगाल में अभी जो राजनीति है वह दो विचारधाराओं में बंटी है। एक भाजपा विरोधी विचारधारा दूसरी तृणमूल कांग्रेस विरोधी विचारधारा। इन दोनों धाराओं के बीच हमें समाजवादी पार्टी को पश्चिम बंगाल में विस्तार देना है और मजबूत करना है। लोकसभा चुनाव में हमनें तृणमूल कांग्रेस का समर्थन किया था। विधानसभा चुनाव के बारे में क्या रणनीति होगी उसपर बैठक कर हम उसे अंतिम रूप देंगे। 

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