वामपन्थी धूर्तों ने सनातन मठों पर प्रहार करना शुरू किया तो सबसे अधिक प्रहार हमारे शंकराचार्यों पर ही हुआ
ये शंकराचार्य हैं। गोवर्धन मठ पूरी के शंकराचार्य स्वामी श्री निश्चलानंद सरस्वती जी महाभाग! वर्तमान सनातन व्यवस्था के सबसे बड़े ज्ञानपुंज! राजनैतिक चश्मे वाले जो कुछ भी कह लें, पर धर्म का ज्ञान इनसे अधिक किसी को नहीं... केवल वैदिक गणित पर पचास से अधिक पुस्तकें हैं इनकी... सुप्रीम कोर्ट में, इसरो के मुख्यालय में इनके सेमिनार होते रहते हैं।
सोशल मीडिया के प्रारंभिक दौर में जब वामपन्थी धूर्तों ने सनातन मठों पर प्रहार करना शुरू किया तो सबसे अधिक प्रहार हमारे शंकराचार्यों पर ही हुआ। इन्हें चर्बी का गोला कहा गया, इन्हें गालियां दी गईं... यहाँ तक कि सोशल मीडिया से ही धर्म जानने वाले नई पीढ़ी के लोगों के मन मे यह बैठा दिया गया कि शंकराचार्य कुछ नहीं करते... बैठे-बैठे मलाई खाते रहते हैं।
जानते हैं, पूरी पीठ की आर्थिक स्थिति ऐसी है कि पिछले वर्ष तूफान में गोशाले की छत उड़ गई थी तो उसे भी ठीक कराने की व्यस्था नहीं थी। यह है दशा... आप स्वयं याद कीजिये, कभी एक रुपये डोनेशन भेजे हैं?
थोड़ी गहराई में उतरते हैं। आदि शंकराचार्य जी महाराज ने आर्यावर्त के चारो दिशाओं में चार पीठों की स्थापना की थी। पूर्व में गोवर्धन पीठ, पश्चिम में द्वारिका पीठ, उत्तर में ज्योतिष पीठ और दक्षिण में श्रृंगेरी पीठ। आज इन चार पीठों में तीन शंकराचार्य हैं। गोवर्धन मठ में निश्चलानन्द सरस्वती जी, श्रृंगेरी में भारती तीर्थ जी, द्वारिका में स्वरूपानन्द सरस्वती जी... और उत्तर के ज्योतिष पीठ का प्रभार भी स्वरूपानन्द जी के पास ही है।
अब थोड़ी सी राजनीति देख लीजिए! लम्बे समय तक सत्ता में रहने के लिए कांग्रेस को किसी सनातन धर्मगुरु का साथ चाहिए था, सो उसने स्वरूपानन्द जी को पकड़ लिया था। याद रहे, स्वरूपानन्द जी ने कांग्रेस को नहीं पकड़ा बल्कि कांग्रेस ने उनको पकड़ा। स्वरूपानन्द जी भी कभी कभी कांग्रेस का समर्थन कर ही देते हैं, जिसके कारण आज की हिंदुत्ववादी पीढ़ी को लगता है कि शंकराचार्य तो कांग्रेसी हैं...
पर रुकिये! शंकराचार्य केवल स्वरूपानन्द जी महाराज ही नहीं हैं, बल्कि दो लोग और हैं और उनका इस राजनीति से कोई सम्बन्ध नहीं। और इस तथ्य की कोई अवहेलना नहीं कर सकता कि सनातन धर्म ज्ञान के विषय में इनसे ऊपर कोई नहीं।
यह तस्वीर तब की है, जब वे गङ्गा सागर स्नान को जा रहे हैं। दो तीन शिष्यों के साथ, कुछ दूर ट्रेन से, कुछ दूर पैदल ही... आप कल्पना कर सकते हैं कि किसी और धर्म/सम्प्रदाय का सबसे बड़ा गुरु इतनी सहजता से घूमेगा... नहीं!
कल किसकी ने पूछा था, कि हमें किस धर्मगुरु को सुनना चाहिए! क्या उत्तर की अब भी आवश्यकता है?
पिछले दो तीन दिनों से कुछ कथावाचक/वचिकाओं को ले कर विवाद छिड़ा हुआ है। मुझे यह मानने में कोई आपत्ति नहीं कि ब्यासपीठ पर आने के पूर्व मुँह में डेढ़ किलो क्रीम पोत कर सजने वाले ये कथावाचक/वाचिक ज्ञान के मामले में सबसे निम्न स्तर पर हैं, फिर मैं मानता हूँ कि इनका अपमान नहीं होना चाहिए। इस घोर कलियुग में कोई भी पूर्ण नहीं मिलेगा। हम और आप ही असँख्य अपराध रोज करते हैं...
चित्रलेखा जी और जया जी को यदि आप कथावाचिका नहीं मानते तो उन्हें कीर्तन करने वाली गायिका ही मान लीजिए, जगराता में झूम कर नाचने वाली गायिका मान लीजिए, वे तब भी सम्मान के योग्य हैं।
आपकी आपत्ति उनके सर्वधर्म सद्भाव की भावना पर ही है न? चलिये! मैं आपकी आपत्ति के समर्थन में हूँ... पर क्या इसका अर्थ यह हुआ कि हम उनका अपमान करें, उनको अश्लील शब्द कहें? नहीं... यदि हम किसी एक बात पर असहमति के कारण संतों का अपमान करें और उन्हें गाली दें तो फिर कैसे हिन्दू हैं हम?
तुलसी बाबा बहुत पहले कह गए थे, पूजहिं विप्र...
अपने लोगों का सम्मान कीजिये! एक नहीं हजार बार असहमतियां हो सकती हैं, फिर भी... विरोध का भी अच्छा ढंग हो सकता है, पर गाली नहीं। जो अपना है वह अपना है।
और हाँ! कभी इन सुन्दर कथावाचकों से भेंट हो तो धीरे से कह दीजिये, "बाबा क्रीम कम पोतो... देख कर मन भटकता है..."
सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।