दूर संचार क्रान्ति और गरीब, मजदूर की आर्थिक बदहाली – प्रोफेसर (डॉ.) योगेन्द्र यादव

Update: 2020-05-18 02:44 GMT


(विश्व दूरसंचार क्रान्ति दिवस पर विशेष)

जब हम पढ़ते थे, तब 9वीं से लेकर 12वीं तक की परीक्षाओं में एक निबंध लिखने के लिए आता था । विषय होता था - विज्ञान वरदान है या अभिशाप । बहुत महत्त्वपूर्ण विषय होने के कारण भाषा भास्कर से इस निबंध को हम सभी रट लेते थे, और अगर परीक्षाओं मे आता तो लिख देते थे। मूल्यांकन में अच्छे अंक भी मिल जाते। लेकिन विज्ञान वरदान है या अभिशाप इसकी समझ, जब बड़े हुए तब आई। इस गूढ़ विषय की समझ और गहरी तब हुई, जब हमने गावों में मोबाइल और दूरसंचार क्रान्ति के संबंध में अपना शोध करना शुरू किया । जब हम गावों में भटक रहे थे। इसके प्रसार और प्रभाव का अध्ययन कर रहे थे। उस समय समझ में आया कि अशिक्षितों/ कम शिक्षितों के लिए विज्ञान अभिशाप है और पढ़े लिखे, बुद्धिमान और शिक्षित लोगों के लिए विज्ञान वरदान है ।

सबसे पहले विज्ञान वरदान कैसे है, हम इस पर चर्चा कर लेते हैं। हमने देखा और पाया कि दूरसंचार के क्षेत्र में आई क्रान्ति के कारण जो वर्ग शिक्षित और बुद्धिमान है, उसने असीमित प्रगति की । दूरसंचार क्रान्ति से प्रदत्त सुविधाओं का लाभ उठा कर लोगों ने अकूत संपत्ति कमाया । वहीं दूसरी ओर इंटरनेट का उपयोग करके बौद्धिक रूप से भी अपने आपको काफी समृद्ध कर लिया । इससे उनकी प्रगति की गति असीमित हो गई । जैसे दूर-संचार के क्षेत्र में क्रान्ति आती गई। वह स्टेप बाई स्टेप प्रगति करता गया। एंडरायड फोन का प्रसार शहर से गावों तक फैलने लगा। शुरुआती दिनों में एंडरायड फोन की कीमत बहुत अधिक होने के कारण शहर के मध्यम वर्ग और गाँव के लोगों ने साधारण फोन लिया। और उसका उपयोग केवल बात करने के लिए करते रहे। अपने प्रारम्भिक समय में काल वैल्यू अधिक होने के कारण इंटरनेट खरीदने का साहस वही लोग जुटा पाते, जिसकी माली स्थिति अच्छी होती और उसे रिचार्ज कराने के लिए जिसके पास नियमित रूप से कोई न कोई आय का साधन होता है। यानि प्रथम चरण में वही लोग मोबाइल फोन और इंटरनेट का उपयोग करते, जो किसी न किसी रूप से कोई न कोई व्यवसाय कर रहे होते ।

लेकिन इसी समय चीन ने बहुत ही सस्ते दर पर एंडरायड फोन उपलब्ध करा दिया। जिससे एंडरायड फोन के क्षेत्र में एक तरह से क्रान्ति आ गई। जो पाँच हजार रुपये महीने कमाता था, या जिसके पास एक कट्ठा जमीन थी, उस घर के लोग भी एंडरायड फोन लेने लगे । देखते – देखते हर घर में एंडरायड फोन पहुँच गया। इस समय तक इंटरनेट की तीव्रता बढ़ी । इंटरनेट टू जी से थ्री जी होते 4 जी में पहुँच गया । अब तो आलम यह हो गया कि अगर किसी घर में चार लड़के और दो माँ-बाप हैं, दो बहुए हैं, तो हर हाथ में एक-एक एंडरायड फोन आ गया । यानि दबाव डाल कर सभी ने अपने-अपने लिए मोबाइल फोन खरीद लिए । जबकि एक –एक घर में आठ – आठ फोन की जरूरत थी ही नहीं।

इस तरह से दूरसंचार क्रान्ति गावों तक पहुँच गई। सभी के साथ में एंडरायड मोबाइल आ गया। सभी लोगों ने इंटरनेट सेवाओं का उपयोग करना शुरू कर दिया । यही से गावों की बरबादी की कहानी शुरू हुई । जिस पर आज हम विचार करने वाले हैं। जिन घरों में कोई कमाने वाला था या जिसका कोई न कोई व्यवसाय था, वे तो हर महीने इंटरनेट की सेवाएँ खरीदने लगे। उनकी माली हालत पर कोई असर भी नहीं पड़ा । लेकिन जिसके यहाँ कोई कमाने वाला नहीं था। जो मूलत: खेती के ऊपर ही निर्भर थे। वे लोग अनाज बेच कर इंटरनेट सेवाओं का उपभोग करने लगे । अगर हम बहुत सस्ते प्लान को ही ले लें। तो एक फोन को महीने भर के लिए इंटरनेट सेवा लेने के लिए कम से कम दो सौ रूपये की जरूरत पड़ती थी। अगर एक छोटे परिवार की ही कल्पना कर लें, जिसमें केवल माता-पिता और उनके दो बच्चे ही हों, तो उस घर में चार एंडरायड मोबाइल खरीदे गए और दो सौ के हिसाब से हर महीने करीब आठ सौ रुपए खर्च होने लगे । यानि एक साल में करीब पाँच हजार रुपये । और दस साल में करीब पचास हजार रुपये । पहले जो गरीब अपनी इसी छोटी बचत से कोई न कोई उन्नति का काम कर लेता था, अब नहीं कर पा रहा है । जिस घर में कमाई का एक रूपये न आता हो, उस घर में हर महीने आठ सौ रूपए की व्यवस्था कैसे होती होगी, इसकी केवल कल्पना ही की जा सकती है। अपने शोध के समय मैंने पाया कि अधिकांश घरों में इसकी वजह से न तो दाल बनती थी, न बाजार से सब्जी आती थी। क्योंकि हर महीने आठ और रूपये खर्च होने जाने के बाद उनके पास इतना पैसा बचता ही नहीं था कि वे दाल और सब्जी खरीद सकें । शुरुआती दौर में यह पाया गया कि जो घर की जमा पूंजी थी, वह मोबाइल खरीदने और उसके लिए इंटरनेट सेवाएँ खरीदने के लिए खर्च होने लगा । छोटे और गरीब परिवारों की कोई भारी भरकम बचत नहीं होती है, जो सालों साल चलती रहे ।

अपने शोध में मैंने यह भी पाया कि मोबाइल और इंटरनेट सेवाये खरीदने के लिए रिश्तों में तनाव आने लगा । पुत्र और घर के अन्य सदस्य घर के मालिक के ऊपर नेट खरीदने के लिए दबाव डालने लगे । घर की आर्थिक स्थिति खस्ता होने के कारण और जरूरतों को देखते हुए घर के मालिक पर दबाव धीरे-धीरे बढ़ता गया। इंटरनेट भरवाने के लिए पुत्रों और पिता के बीच में झगड़े होने लगे। इंटरनेट भरवाने के लिए घर मे जो खाने के लिए अनाज रखा था, वह भी बेचा जाने लगा । जिससे ग्रामीण और गरीब परिवार भुखमरी की कगार पर आ गया । ग्रामीण परिवेश में रहने वालों की जो साल में दस बीस हजार की बचत होती थी, वह अब मोबाईल और इंटरनेट पर खर्च होने लगी ।

इसी तरह का कुछ प्रभाव शहर में रहने वाले मजदूरों पर भी पड़ा । किसी तरह से मेहनत मजदूरी करके ये लोग अपना परिवार पालते थे। आमदनी या कमाई पर्याप्त न होने के कारण ये पहले ही अपना जीवन काफी विपन्नता में जीते रहे । न अपने बच्चों को ठीक से पहना पाते, न खिला पाते और न ही उनकी उचित शिक्षा दीक्षा का प्रबंध कर पाते। ऐसी विपन्न जीते हुए मजदूर वर्ग को भी दूरसंचार क्रान्ति इनके लिए संहार क्रान्ति बन गई। इनके बच्चे मोबाइल फोन की चोरी करने लगे। या चोरी का मोबाईल हजार पाँच सौ में खरीदने लगे । और इंटरनेट सेवा खरीदने के लिए पढ़ाई छोड़ कर असमय मजदूरी करने लगे। या फिर चोरी या जेब कतरने लगे। जिससे अपनी मेहनत के लिए जाना जाने वाला मजदूर वर्ग जरायम पेशे में उतर गया। और उसका जीवन और नारकीय बन गया । इसके अलावा शहर मे रहने वाला अति मध्यम वर्ग के लोगों ने मोबाइल और इंटरनेट सेवाएँ खरीदने के लिए अपनी जमा पूंजी तो खर्च कर ही दी। हर महीने की अपनी अल्प आय में से अधिकांश भाग इंटरनेट सेवाएँ खरीदने में खर्च करने लगा । इस वर्ग की पहले जो बचत हो जाया करती थी, अब वह भी खर्च होने लगी । इसकी वजह से वह भी विपन्नता की स्थिति में आ गया ।

आज विश्व संचार दिवस है, अगर कोरेना महामारी न फैली होती तो सरकार और निजी लोगों द्वारा तमाम कार्यक्रम आयोजित किए जाते । ऐसी सेवा जिसकी वजह से हजारो घरों में चूल्हे नहीं जलते हैं, लाखों ऐसे घर जहां इंटरनेट खरीदने के लिए माता-पिता और बच्चो के बीच में कलह होती है । आज के दिन लोग जश्न मनाते । दूर संचार कंपनियाँ अपने लाभांश का वर्णन करते हुए अमीरी का यशगान करती । आज ही के दिन 2005 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने विश्व सूचना समाज दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया था । तबसे हर साल 17 मई को विश्व दूरसंचार और सूचना सोसायटी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। विश्व दूरसंचार दिवस में इस दिवस को मनाने की शुरुआत 1969 से हुई ।

इस समय हम 4 जी इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे हैं। दूरसंचार विभाग ने 2020 में 5 जी लांच करने की पूरी तैयारी कर ली थी, लेकिन कोरेना महामारी की वजह से इस पर विराम लगा हुआ है । 5 जी नेटवर्क इंफ्रास्ट्रक्चर में 4.2 अरबों डॉलर का निवेश हुआ है। आने वाले समय में इस व्यवसाय में और वृद्धि होगी ।

लेकिन चाहे गाँव के गरीब लोग हों या शहरों मे रहने वाले निम्न आय वर्ग के लोगों को मोबाइल और इंटरनेट से हो रहे दुष्प्रभावों पर विचार करना होगा । अपने बच्चो को एंडरायड फोन और इंटरनेट सेवाएँ उपलब्ध करवाने के साथ – साथ उसका सदुपयोग हो, यह सुनिश्चित करना पड़ेगा। क्योंकि कोरेना महामारी में एंडरायड फोन और इंटरनेट की उपयोगिता और बढ़ गई है। अगर इसी तरह कोरेना का प्रभाव बना रहा, तो आने वाले समय में अधिकांश शिक्षा और व्यवहार इंटरनेट के जरिये ही होंगे । इसलिए गरीब और अल्प शिक्षित लोगों को इस पर विचार करके इसके सदुपयोग की दिशा में चिंतन करना होगा । अगर एक वर्ग उसका सदुपयोग करके शिक्षित और सम्पन्न बन सकता है, तो गावों और शहरों के गरीब लोग इसका सीमित प्रयोग करके धनार्जन क्यों नहीं कर सकते हैं ।

प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव

पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट

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