लाचार मजदूरों का क्या दोष ???

Update: 2020-05-16 09:33 GMT


डॉ प्रमोद कुमार शुक्ला

आज उत्तरप्रदेश में सड़क दुर्घटना में 24 निर्दोष प्रवासी मजदूर की दुःखद मौत से पूरा देश स्तब्ध है। ये निरपराध भारतीय कठिन आर्थिक दुष्वारियों से ग्रसित हो, अपने घर को लौट रहे थे। कल ही माननीय उच्चतम न्यायालय ने ऐसी ही दुर्घटनाओं से पीड़ित मजदूरों के हितों एवं भविष्य में उनकी आवाजाही को निर्बाध, एव सुरक्षित करने से संबंधित याचिका में अपना निर्णय देते हुए, कहा कि कोई रात में खुद ही पटरी पर सो जाय तो हम कैसे रोक सकते हैं।

अब इस प्रकार की अनेक दुःखद घटनाएं दृष्टिगोचर हो रहीं हैं, जिससे पूरा भारत दुःखित है । यक्ष प्रश्न यह है, कि इसे कैसे रोका जाए, समाधान तलाशा जाय। माननीय उच्चतम न्यायालय का संवेदनशील हस्तक्षेप के बाद निगाहे अब सरकार पर टिकी है, पर यदि इस पीड़ादायक समस्या के मूल को तलाशा जाए तो, यही दिखता है कि सरकारों की संवेदनशीलता तो कहीं दिखी ही नहीं ????

संवेदना तो सिर्फ मानव मन मे ही दिख रही है, बिना किसी मुल्लमा के मानव हृदय में ???

कल के ही हिंदुस्तान अखबार के संपादकीय पृष्ठ पर कुछ गंभीर विचार दिखे कि घर लौटते मजदूरों के साथ हो रहे सड़क हादसे सिर्फ शर्मनाक ही नहीं, बल्कि अमानवीय भी हैं। ऐसे हादसे लोगों के दुख को पहले से ज्यादा गंभीर और गाढ़ा कर जाते हैं। बुधवार-गुरुवार को 24 घंटे से भी कम समय में अनेक दुर्घटनाएं हुई हैं, जिनमें से तीन दुर्घटनाओं में 100 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं और 16 से ज्यादा लोगों की जान चली गई। सबसे दुखद हादसा उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर-सहारनपुर रोड पर हुआ, जब रात के अंधेरे में चल रहे छह मजदूरों को एक बस ने कुचल दिया। पंजाब से बिहार के अपने गांव जा रहे इन मजदूरों का दोष क्या था? गरमी के इन दिनों में तपती दोपहरी में सड़क पर पैदल यात्रा से बचते हुए वे रात में ही ज्यादा से ज्यादा दूरी तय कर रहे हैं, तो यह सही और स्वाभाविक है, लेकिन ऐसे बेबस लोगों को कुचलने वाले कौन लोग हैं? कौन है, जिसे देश की हकीकत नहीं पता? कौन है, जिसे ऐसे बुरे वक्त में भी सड़क पर चल रहे लाचार मजदूरों की चिंता नहीं है? राजमार्गों पर चल रहे छोटे और भारी वाहनों को इस वक्त अतिरिक्त सतर्कता के साथ यात्रा करनी चाहिए। जो प्रशासन मजदूरों के पलायन को नहीं रोक सकता, वह कम से कम इन मार्गों पर वाहन चला रहे ड्राइवरों को सजग रहने के लिए पाबंद तो कर ही सकता है।

उधर, मध्य प्रदेश के गुना में 60 से अधिक मजदूरों को लेकर जा रहे एक ट्रक से विपरीत दिशा से आ रही बस टकरा गई। इनमें सवार आठ मजदूर कभी घर नहीं लौट सकेंगे, इसके लिए कौन जिम्मेदार है? ये दुर्घटनाएं प्रमाण हैं कि ऐसे समय में भी परिवहन नियमों की पालना नहीं हो रही है। राजमार्गों पर गाड़ियां अंधाधुंध दौड़ने लगी हैं। ठीक इसी प्रकार बिहार में मुजफ्फरपुर से कटिहार जा रही बस से ट्रक भिड़ गया। करीब 30 मजदूर घायल हुए और दो की मौके पर ही मौत हो गई। तीन राज्यों में हुए ये तीन हादसे एक ही तरह की लापरवाही के दुष्परिणाम हैं। जाहिर है, इन मजदूरों के आश्रितों को पूरा मुआवजा मिलना चाहिए। ध्यान रहे, ये मजदूर अपनी वापसी के लिए स्वयं जिम्मेदार नहीं हैं। उनकी वापसी व्यवस्था का एक विफल पहलू है, व्यवस्था को इन दुर्घटनाओं की भरपाई करने के साथ ही, यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसे हादसे दोहराए न जाएं।

उत्तर प्रदेश सरकार ने मृतकों के परिजनों को दो-दो लाख रुपये और गंभीर रूप से घायलों को 50-50 हजार रुपये की आर्थिक मदद देकर सराहनीय कार्य किया है। इसके साथ ही उसने दुर्घटना के कारणों की जांच तथा दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाने के निर्देश भी दिए हैं। यह जरूरी है कि इस आपदा की आड़ में नियम-कायदों से कोई खिलवाड़ न हो। अंधाधुंध दौड़ रहे वाहनों की जांच और पैदल चलते मजदूरों के मद्देनजर गति सीमा निर्धारित और लागू करने की जरूरत है। रात में चल रहे मजदूरों और उनके परिवारों को हाथ में कुछ रोशनी या संकेतक लेकर चलना चाहिए, इसमें समाजसेवी संस्थाएं व सरकारें उनकी मदद कर सकती हैं। हमें सावधानी को अपने स्वभाव में ढाल लेना चाहिए। ध्यान रहे, लॉकडाउन से पहले देश में रोज 1,200 से ज्यादा सड़क दुर्घटनाएं होती थीं, जिनमें 1,200 से भी ज्यादा लोग घायल होते थे और 400 से ज्यादा जान गंवाते थे। इसलिए संकल्प लेना चाहिए, हमें दुर्घटनाओं के उस दौर में नहीं लौटना है। इसके लिए लोगों और सरकारों को कमर कस लेनी चाहिए।

स्पष्ट है, कि सभी जिम्मेदारों में संवेदना और मानवीयता ही , गंभीर समाधान है।

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