अस्थमा और उसका नेचुरोपैथी इलाज – प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव

Update: 2020-05-07 03:42 GMT


(विश्व अस्थमा दिवस पर विशेष )

यह श्वसन संबंधी बीमारी है। इस रोग से ग्रसित बच्चों / महिलाओं / पुरुषों की सांस फूलने लगती है। घबराहट होती है। पसीना आने लगता है। ऐसा लगता है कि ऊपर की सांस ऊपर और नीचे की सांस नीचे टंगी रह जाएगी। क्रानिक स्थिति में कई बार इलाज न मिल पाने के कारण रोगी की मौत भी हो जाती है । ऐसा माना जाता है कि इस बीमारी का संबंध एलर्जी से है । बदलते मौसम के समय यह काफी खतरनाक साबित होती है । धूल-धुआँ इस रोग की तीव्रता को बढ़ा देता है । इससे इसके कीटाणुओं के विकसित होने का अवसर मिल जाता है। और रोगी को काफी तकलीफ होने लगती है । मनुष्य की जीवन शैली पर अंग्रेज़ियत का प्रभाव और बढ़ते प्रदूषण के कारण इसके मरीजों की संख्या में काफी इजाफा हो रहा है । यह बीमारी नवजात शिशुओं में अधिक होती है । लेकिन बदली हुई जीवन शैली, घटते हुए श्रम संस्कार और पर्यावरण प्रदूषण की वजह से इस बीमारी का भी मिजाज परिवर्तित हो गया है। अब यह सिर्फ बच्चों और बूढ़ों को ही नहीं, सभी को अपना शिकार बना रही है । इस रोग में सांस लेने वाली नालियों में सूजन आ जाती है। चिपचिपा बलगम दोनों नथुनों सहित नलियों में भर जाता है। सूख जाने के कारण रंध्र संकरा हो जाता है । जिससे सांस लेने में काफी तकलीफ होने लगती है ।

इस बीमारी के लक्षण : अस्थमा या जिसे आम आदमी दमा के नाम से सब्मोधित करता है। इसके निम्नलिखित लक्षण होते हैं –

1. बार-बार होने वाली खांसी : जिस व्यक्ति को बार खांसी होती है या जिसको अस्थमा की बीमारी होती है। जरा सा इन्फेकशन होने पर उसे खांसी आने लगती है। जिस व्यक्ति को खांसी होती है, और अस्थमा की बीमारी हो जाती है। खाँसते-खाँसते उसकी सांस उखड़ने लगती है । और रोगी का चेहरा पूरा लाल हो जाता है। वह निढाल पड़ जाता है। उसे ऐसा महसूस होता है कि उसकी जान ही निकल जाएगी।

2. सांस लेते समय सीटी की आवाज : अस्थमा के रोगी की श्वसन नली से लेकर नासा ग्रंथ मल जम जाने की वजह से संकरी हो जाती है। जिसकी वजह से सांस लेने में कठिनाई होती है, और जब वह सांस लेता है, तो उससे सीटी जैसी आवाज निकलती है। सोते समय यह सांस आसानी से सुनी जा सकती है ।

3. छाती में जकड़न : अस्थमा के रोगी की छाती में जकड़न महसूस होती है। जिसकी वजह से उसे बेचैनी महसूस होती है। छाती भारी – भारी लगती है । ऐसा नासाग्रन्थों में बहने वाले मल की वजह से होता है । यही सूख कर कड़ा हो जाता है। और खाँसने या नाक साफ करने के बावजूद भी नहीं निकलता ।

4. दम फूलना : इस बीमारी का प्रमुख लक्षण है दम फूलना । इस बीमारी से ग्रसित रोगी को सांस लेने में अत्यंत कठिनाई अनुभव होती है। जरा सा चल देने या दौड़ लगा देने के बाद तो उसकी स्थिति बेहद खराब हो जाती है। उसे बहुत बेचैनी होने लगती है। उसे चक्कर आने लगते हैं। ऐसा लगता है, जैसे वह अभी गिर जाएगा।

5. खांसी के साथ कफ न निकल पाना : इस बीमारी के समय सूखी खांसी आती है। कफ रहने के बावजूद वह निकल नहीं पाता है। उसका कारण है कि वह श्वसन नली में ही सूख जाता है। जिसकी वझ से रोगी को बहुत बेचैनी अनुभव होती है ।

6. बेचैनी होना : अस्थमा के रोगी को सांस लेने में अत्यंत तकलीफ होती है। वह आसानी से न तो सांस ले पाता है, और न आसानी से सांस छोड़ पाता है, जिसकी वजह से उसे बेचैनी होने लगती है। और वह बेचैन हो अधीर हो जाता है ।

उपचार :

अस्थमा रोगी को उपचार से अधिक परहेज या सावधान रहने की जरूरत होती है। किसी योग्य चिकित्सक से उपचार लेने के साथ-साथ अगर वह परहेज भी करता है, तो उसे तुरंत आराम मिल जाता है। इसलिए यहाँ सबसे पहले मैं परहेज या सावधानियों की बात कर रहा हूँ -

अस्थमा रोगी को धूल, मिट्टी, धुआं, प्रदूषण आदि से बचने के लिए जब बाहर निकले तो उसे अपने मुंह को ढक लेना चाहिए । अगर कोई बीड़ी या सिगरेट पी रहा हो, तो वहाँ से हट जाना चाहिए। अगर हटने की गुंजाइश न हो तो उससे न धूम्रपान न करने का निवेदन करना चाहिए ।

खूशबूदार जैसे ताजा पेंट, कीटनाशक, स्प्रे, अगरबत्ती, मच्छर भगाने की क्वाइल का धुआं, खुशबूदार इत्र आदि के संपर्क में आने से बचना चाहिए। या ऐसी जगहों से खुद को दूर रखना चाहिए ।

उसे बाहर की रंगीन, फ्लेवरयुक्त और फ्रीज़ में रखे खाद्य पदार्थ खाने और कोल्ड ड्रिंक्स, बहुत ठंडा पानी पीने से परहेज करना चाहिए ।

अस्थमा मरीजों का नेचरोंपैथी इलाज

अस्थमा और एलर्जी पीड़ितों के लिए बदलता मौसम बड़ा खतरनाक होता है। क्योंकि मौसम बदलने के बाद जो धूल उड़ती है उससे कीटाणुओं को फैलने-पनपने का मौका मिल जाता है। यूं भी वातावरणीय कारकों से फैल रही एलर्जी के कारण अस्थमा के मरीज तेजी से बढ़ रहे हैं। इसके साथ बदलती जीवनशैली और प्रदूषण के कारण भी अस्थमा और एलर्जी के मरीज बढ़ रहे हैं। इस कारण अस्थमा मरीज के लिए नेचरोपथी का इलाज बेहद कारगर होता है। जिसके लिये निम्नलिखित विधियाँ काम मे लाई जाती हैं। लेकिन यह ध्यान रहे कि इस लेख को पढ़ने और जानकारी प्राप्त कर लेने के बाद अपना इलाज किसी अनुभवी और पारंगत नेचरोंपैथ की देख रेख में ही करना चाहिए ।

1. सरसों या नीलगिरी का तेल – अस्थमा पीड़ित मरीजों के लिए नेचरोंपैथ में सरसो या नीलगिरी तेल का उपयोग किया जाता है । इसे छाती और पीठ पर लगा कर वाटर बैग से तीन – तीन मिनट के अंतराल पर सिकाई की जाती है। जिससे श्वसन नली में लचीलापन आता है और उसमें जमा हुआ गाढ़ा पदार्थ तरल होकर आगे की तरफ गतिमान हो जाता है। जो नासा ग्रन्थों या खांसी के समय बाहर निकाल जाता है ।

2. चेस्ट पैक – अस्थमा रोगी के लिए अनुभवी नेचरोंपैथ द्वारा चेस्ट पैक का भी उपयोग किया जाता है। इस विधि से इलाज करते समय नेचरोंपैथ सूती कपड़े को अच्छी तरह से गरम पानी में भिगो कर उसे निचोड़ लेता है और इसके बाद उसे छाती के चारो ओर लपेट देता है। और अंत में शाल से उस शरीर के उस भाग को अच्छी तरह से ढक देता है। इस विधि से श्वसन नली में जमा हुआ गाढ़ा और चिपचिपा पदार्थ पिघल कर बाहर निकल जाता है, श्वसन नली लचीली हो जाती है, जिसकी वजह से रोगी को धीरे-धीरे आराम हो जाता है ।

3. प्याज और अदरक का पेस्ट : कई बार नेचरोंपैथ प्याज और अदरक का पेस्ट बना कर अस्थमा रोग ठीक करने के लिए उपयोग में लाता है । वह प्याज और अदरक की बराबर बराबर मात्रा में लेकर उसका पेस्ट बनाता है,फिर उसे छाती पर लगा कर उसके चारो पर गरम पानी में भीगे हुए कपड़े को खूब अच्छी तरह निचोड़ कर लपेट देता है । इससे भी श्वसन नली में लचीलापन आता है, और उसमें जमा मल बाहर निकलने लगता है ।

4. सफेदा के पत्ते : जब किसी रोगी को ज्यादा तकलीफ होती है, तब नेचरोंपैथ उसे सफेदा के कुछ पत्तों को पानी में उबाल कर उसकी भाँप रोगी को देता है। जिससे वह भाँप सांस द्वारा उसकी श्वसन नली में जाती है और वह श्वसन नली में जमे मल को पिघला कर बाहर निकलने में मदद करती है और रोगी आराम महसूस करता है ।

शुद्धि क्रिया : नेचरोंपैथ में रोगी को ठीक करने के लिए शुद्धि क्रिया का भी प्रयोग किया जाता है। अस्थमा के रोगियों के लिए तो शुद्धि क्रिया बहुत उपयोगी है। लेकिन यह ध्यान रहे कि शुद्धि क्रिया किसी योग्य नेचरोंपैथ की देख-रेख में ही करना चाहिए । अस्थमा के रोगियों के इलाज के दौरान चिकित्सक जलनेटी और सूत्र नेति दोनों विधियों का उपयोग करता है । इसके साथ-साथ वह कुंजल क्रिया का भी प्रयोग करता है । जिससे अस्थमा का मरीज पूरी तरह ठीक हो जाता है ।

इसके अलावा आहार चिकित्सा से भी अस्थमा रोगी को आराम मिल सकता है। अगर वह किसी अनुभवी चिकित्सक की देख रेख इसका उपयोग करता है, तो निश्चित रूप से उसे आराम मिलता है । एक चम्मच अदरक का रस दो चम्मच शहद के साथ सुबह नाश्ते के पहले और रात को सोने से पहले लेने से आराम मिलता है । 50-50 ग्राम मुलैठी और अश्वगंधा और 10 ग्राम काली मिर्च के मिश्रण को बारीक पीस कर छान लें और फिर एक-एक चम्मच गुनगुने पानी के साथ रात को सोने से पहले लेने पर आराम होता है । पाँच – साथ तुलसी के पत्ते, मुलैठी, अदरक या सोठ का छोटा सा टुकड़ा और दो-चार दाने काली मिर्च को उबाल कर उसको पीने से जमा कफ निकल जाता है ।

अस्थमा बीमारी में उपयोगी जड़ी-बूटियाँ :

इस बीमारी का संबंध श्वसन नली से होता है। उसमें गाढ़ा पदार्थ जम जाने की वजह से नली सकरी हो जाती है। इसलिए ऐसी सभी जड़ी-बूटियाँ उपयोगी होती है, जो श्वसन नली को और अधिक लचीला बनाने और उसमें जमे मल को पिघला कर निकालने में मदद करती हैं। उपयोग में लाई जाती हैं ।

1. वासा- अस्थमा या दमा के मरीज के लिए यह कारगर जड़ी बूटी है। यह श्वसन नली को लचीला बनाने का काम करती है। इसलिए इसका चूर्ण या काढ़े के रूप में किसी अनुभवी चिकित्सक की देख रेख और सुझाव के अनुसार उपयोग करने पर राहत मिलती है।

2. कंटकारी- अस्थमा रोगी के लिए यह जड़ी बूटी बहुत ही उपयोगी है। इस जड़ी बूटी मे विद्यमान तत्व श्वसन नली मे जमे हुए गाढ़े पदार्थ को तरल बना कर उसे बाहर निकालने में मदद करते हैं। इसलिए किसी योग्य चिकित्सक की देख रेख में इसका उपयोग करने पर मरीज को तुरंत आराम मिलता है ।

3. पुष्करमूल- यह जड़ी बूटी अस्थमा मरीज के रोग में सीधे तो काम नहीं करती है। लेकिन जीवाणु निरोधी गुण के कारण यह अस्थमा जनित जीवाणुओं को समाप्त करने के लिए बहुत उपयोगी मानी जाती है। इसी कारण जब कोई कुशल चिकित्सक अस्थमा रोगी का इलाज करता है, तो इसका भी उपयोग बैक्टीरिया को समाप्त करने के लिए जरूरत के मुताबिक करता है ।

4. यष्टिमधु- यह गले में जमे हुए कफ को साफ करने का काम करती है। इसलिए अस्थमा रोगी के यदि गले में भी कफ चीकट अवस्था में जम जाता है, तो रोगी का इलाज करते समय चिकित्सक यष्टिमधु का भी उपयोग करता है । जिससे रोगी का गला साफ हो जाता है। और वह आराम का अनुभव करता है ।

प्रोफेसर डॉ योगेन्द्र यादव

पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट

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