आप लॉकडाउन का मतलब यह न समझें कि जैसे आपकी कलाई अमरीशपुरी ने पकड़ रखी है और आप सिमरन की तरह प्लेटफार्म नम्बर 3 पर नागिन की तरह छटपटा रहें हों. उधर आपका प्रेमी, 'अम्बाला एक्सप्रेस' की डाऊन गाड़ी पर सवार होकर आपको प्लेटफार्म पर रोते, बिलखते, तड़पते हुए अमरीशपुरी के सख्त हाथों में छोड़, छुकछुक ट्रेन से अपने शहर भाग रहा हो.
दूसरा छूट का मतलब यह भी नहीं कि जैसे अमरीश पुरी ने सिमरन की कलाई छोड़ दी हो और कह रहें हों कि "जा सिमरन जा! जी ले अपनी जिन्दगी, नाच ले प्लेटफार्म पर, चढ़ जा जनरल क्लास के किसी कूपे में और भीड़ चीरते हुए भीतर ही भीतर राज की सांसो से लेकर फेफड़े तक कोरोनामय कर आ. जा सिमरन जा! लॉकडाउन की छूट के मौके का लाभ उठा,भीड़ के सीने पर चढ़कर बिना हाथ सेनेटाइज किये राज का हाथ पकड़कर राज के कूपे में चढ़ जा."
वास्तव में लॉकडाउन को समझना है तो इरफ़ान खान की मूवी life of pi से समझना होगा. फिल्म में रिचर्ड पार्कर तथा पाई अपना जीवन बचाने के लिए एक छोटी सी नाव में महीनों यात्रा करते हैं. उस वक्त, रिचर्ड पार्कर पहली बार पिंजरे में बंद नहीं था. उसके पांव में कोई जंजीर नहीं थी. उसके सामने कोई हंटर नहीं था.. बावजूद इसके उसने अपनी पूरी यात्रा उस छोटी सी नाव में काट दी. तमाम मुश्किलों को झेला, भूख से तड़पा, उसका शरीर गलककर आधा हो गया. लेकिन नाव में ही रहा. एक बार उसने समुद्र में छलांग भी लगाई लेकिन खतरे का भांपकर पुनः नाव में शरण लिया. विषम परिस्थितियों ने पार्कर के व्यवहार तक में एक अप्रत्याशित परिवर्तन ला दिया. पार्कर के भीतर जीवन को लेकर भीषण जीजीविषा अचंभित करने वाली थी.
लॉकडाउन में रहना तथा अपना जीवन बचाना आत्मानुशासन से ही संभव है. हमें खुद के, परिवार के,तथा समाज के जीवन के सुरक्षित करने के लिए रिचर्ड पार्कर की तरह समझदारी बरतनी होगी, संभव है कि शुरुआत में कुछ दिन पाई से झड़प भी हो लेकिन लम्बी यात्रा के दौरान जैसे पार्कर समझ गया कि पाई का हर जतन मेरे जीवन बचाने के लिए है इसलिए वक्त के साथ 'पार्कर' का व्यवहार 'पाई' के प्रति मित्रवत् हो गया.
आज जमीन की प्रतीक्षा में सभी की निगाहें रिचर्ड पार्कर तथा पाई की तरह बेचैन हैं. लेकिन तब तक इस लॉकडाउन के सागर में धैर्य बनाकर चलना होगा. एक दूसरे से सामंजस्य बनाकर चलना होगा.. और हां उतनी ही सोशल डिस्टेंसिग बनाकर चलनी होगी जितना उस समुद्री यात्रा के दौरान 'पाई' तथा 'पार्कर' उस नाव में बनाकर चलते थे॥
रिवेश प्रताप सिंह