मधु लिमये के जीवन-दर्शन से समाजवादी दलों को मिल सकती है संजीवनी – प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव

Update: 2020-05-01 10:41 GMT

 

(समाजवादी पुरोधा व पूर्व सांसद मधु लिमये की जयंती पर विशेष)

आज जब समाजवादी दर्शन के आधार पर राजनीति करने वाले राजनीतिक दल अपनी अंदरूनी अंतर्कलह से जूझ रहें हैं । ऐसे में आज ही एक दिन 1 मई, 1922 को जन्में मधु लिमये के राजनीतिक जीवन –दर्शन उन्हें संजीवनी दे सकता है । जरूरत है उनके द्वारा जो राजनीतिक और पारिवारिक आदर्श स्थापित किए गए हैं, उसे अपनाने की । मधु लिमये आजीवन योद्धा रहे । 14-15 साल की उम्र में वे आज़ादी के आंदोलन में जेल चले गए और 1944 में जब युद्ध ख़त्म हुआ, तब वे छूटे । गोवा मुक्ति सत्याग्रह उन्हें बारह साल की सजा हुई । मधु लिमये देश की तीसरी, चौथी, पांचवी व छठी लोकसभा के सदस्य रहे । तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा अनैतिक तरीक़े से पांचवी लोकसभा का कार्यकाल बढ़ाए जाने के विरोध में उन्होंने अपनी सदस्यता से इस्तीफ़ा दे दिया था ।

आज मजदूर दिवस भी है और प्रमुख समाजवादी नेता मधु लिमये का जन्म दिवस भी है । आज ही एक दिन 1 मई, 1922 को पुणे में उनका जन्म हुआ था। मजदूरों और मधु लिमये दोनों एक दूसरे पर्याय प्रतीत होते हैं। श्रम आधारित जीवन जीने वाले मधु लिमये भले ही समाजवादी राजनीति के नभ स्थल के चमकते हुए सितारे रहे हों, लेकिन उनका पूरा जीवन मजदूरों से किसी तरह विलग नहीं था। अच्छी शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी उन्होने कभी भी जनता के बीच और सदन में भाषाई रौब नहीं झाड़ा । उनके जीवन में जरा सा भी बनावटीपन नहीं था। वे जो भी कुछ कहते, उसका अनुपालन अपने निजी जीवन में भी करते रहे । मज़दूरो की भांति जीवन यापन करने के कारण ही मुंबई से दो बार चुनाव हारने के बाद जब वे मुंगेर से 1964 में उपचुनाव लड़े, तो जीत गए । इसके बाद मूल रूप से महाराष्ट्र के रहने के बावजूद बिहार में उनकी लोकप्रियता खूब रही । जब वे बांका से चुनाव लड़ रहे थे। तब तत्कालीन मुख्यमंत्री दारोगा राय ने क्षेत्रवाद का मुद्दा उठा कर बाहरी बनाम स्थानीय करके चुनाव में उन्हें हराना चाहा। ऐसे में उनके राजनीतिक मित्र जार्ज फर्नांडीज़ को मोर्चा संभालना पड़ा। तब जाकर वे चुनाव जीते। एक बार नहीं, दो बार इस संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया ।

मधु लिमये का जीवन आडंबरहीन था। वे अत्यंत सादगीपूर्ण जीवन जीते थे। और वैसा ही जीवन अपने परिवारिजनों को जीने के लिए प्रेरित करते थे। अपनी पत्नी को हमेशा दूसरे और तीसरे दर्जे में ट्रेन यात्रा करने के लिए प्रोत्साहित करते। उनके घर में न तो एसी था, न फ्रिज था, न कूलर था। बस एक पंखा था। जिसके सहारे ही वे गर्मी का मौसम काट लेते थे । घर पर सादा भोजन करते। और सत्र के दौरान कैंटीन का खाना खाते थे । आज के सांसदों की तरह नहीं कि कार्यकाल समाप्त होने के बावजूद लोग सरकारी आवास नहीं खाली करते, जैसे ही उनका कार्यकाल समाप्त होता। बिना एक दिन देर किए वे तुरंत सरकारी आवास खाली कर देते थे । आजकल जब समाजवादी नेताओं की ईमानदारी पर कोई भी ऊगली उठा देता है। उन्हें मधु लिमये के आचरण से सीखना चाहिए । समाजवादी नेता मधु लिमये ईमानदारी की पराकाष्ठा थे। उनकी ईमानदारी का एक दिलचस्प वाकया उनके मित्र रहे डॉ वेद प्रताप वैदिक बताते हैं कि एक बार मैं उनके घर में अकेला था। 1000 रुपए का मनीऑर्डर आया, तो मैंने दस्तख़त करके ले लिये । शाम को जब वे आए तो वह रुपये उन्हें दे दिये। वे पूछने लगे कि यह रुपये कहाँ से आया है। मैंने उन्हें मनीऑर्डर की रसीद दिखा दी । पता चला कि संसद में मधु लिमये ने चावल के आयात के सिलसिले में जो सवाल किया था उससे एक बड़े भ्रष्टाचार का भंडाफोड़ हुआ था और उसके कारण एक व्यापारी को बहुत लाभ हुआ था और उसने ही कृतज्ञतावश वे रुपए मधुजी को भिजवाए थे । इस पर वे कहने लगे कि हम क्या किसी व्यापारी के दलाल हैं? तुरंत ये पैसे उसे वापस भिजवाओ । दूसरे ही दिन मैं खुद पोस्ट ऑफ़िस गया और वह राशि उन सज्जन को वापस भिजवाई । आज जब भारत के सांसद अपना वेतन, अपनी पेंशन, अपनी सुविधाएं, अपनी निधि सर्वसम्मति से पास कर लिया करते हैं। ऐसे में मधु लिमये की याद सहज आ जाती थी। उन्होने सांसदों को मिलने वाली पेंशन का उन्होने विरोध किया । उन्होंने पेंशन नहीं ली। और अपनी पत्नी को भी कहा कि उनकी मृत्यु के बाद उसे पेंशन नहीं लेना है ।

एक समय था, जब समाजवादी मधु लिमये जब शून्य काल और प्रश्न काल के समय संसद में बोलने के लिए खड़े होते थे, तो पूरा सदन स्तब्ध होकर उनकी बहस सुनता था। मशहूर पत्रकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक कहते हैं की मधुजी ग़ज़ब के इंसान थे । ज़बरदस्त प्रश्न पूछना और मंत्री के उत्तर पर पूरक सवालों की मशीनगन से सरकार को ढेर कर देना मधु लिमये के लिए बाएं हाथ का खेल था । डॉ. लोहिया के प्रधान मल्ल की तरह खम ठोंकते और सारे समाजवादी भूखे शेर की तरह सत्ता पक्ष पर टूट पड़ते और सिर्फ़ आधा दर्जन सांसद बाकी पाँच सौ सदस्यों की बोलती बंद कर देते ।

मशहूर समाजवादी नेता लाडली मोहन निगम ने अपने एक लेख में कहा है कि एक बार इंदिरा गांधी ने लोकसभा में आर्थिक लेखानुदान पेश किया। भाषण समाप्त होते ही मधु लिमये ने व्यवस्था का प्रश्न उठाना चाहा, लेकिन स्पीकर ने सदन स्थगित कर दिया । मधु लिमये झल्लाते हुए उनके चैंबर में गए और बोले कि आज बहुत बड़ा गुनाह हो गया है । आप सारे रिकॉर्ड्स मंगवा कर देखिए । धन विधेयक तो पेश ही नहीं किया गया । अगर ऐसा हुआ है तो आज 12 बजे के बाद सरकार का सारा काम रुक जाएगा और सरकार का कोई भी महकमा एक भी पैसा नहीं ख़र्च कर पाएगा । जब स्पीकर ने सारी प्रोसीडिंग्स मंगवा कर देखी तो पता चला कि धन विधेयक तो वाकई पेश ही नहीं हुआ था । वो घबरा गए क्योंकि सदन तो स्थगित हो चुका था । तब मधु लिमये ने कहा कि यह अब भी पेश हो सकता है । आप तत्काल विरोधी पक्ष के नेताओं को बुलवाएं । उसी समय रेडियो पर घोषणा करवाई गई कि संसद की तुरंत एक बैठक बुलवाई गई है । जो जहां भी है तुरंत संसद पहुंच जाए । संसद रात में बैठी और इस तरह धन विधेयक पास हुआ ।

मधु लिमये एक ऐसे समाजवादी नेता थे, जिनकी प्रशंसा उनके धुर विरोधी भी करते थे। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने 13 फरवरी, 1995 को लोकसभा में उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि मधु लिमये के साथ मुझे इस सदन में, सदन के बाहर राजनैतिक क्षेत्र में काम करने का बहुत मौका मिला था। वह दोनों साम्राज्यवादों से लड़े। अंग्रेज़ी साम्राज्यवाद से भी और पुर्तगाली साम्राज्यवाद से भी। जेल की लंबी यातना सही। उसी में उन्होंने अध्ययन करने का और विश्लेषण करने का गुण अर्जित किया। कुछ आदर्शों के प्रति उनकी आस्था थी। कुछ विचारों के लिए वह प्रतिबद्ध थे। प्रखर चिंतक थे। कठोर स्पष्टवादी थे। ऐसे स्पष्टवादी, कि कभी-कभी उनकी स्पष्टवादिता विवादों को खड़ा कर देती थी। मगर जो बात वे कहना चाहते थे, वह कह देते थे। मुझे याद है कि संसद में कोई संविधान की पेचीदा समस्या हो, कोई नियमों से उलझा हुआ सवाल हो, मधु लिमये जब उधर से प्रवेश करते थे, तो अपने साथ संदर्भ-ग्रंथों का एक पूरा पहाड़ ले कर आते थे, जिस पहाड़ को देखने मात्र से लगता था कि आज दो-दो हाथ होने वाले है और सदन को तो, कठिनाई होती ही थी, कभी-कभी अध्यक्ष महोदय भी अपने लिए मुश्किल पाते थे। लेकिन वह अध्ययन करके आते थे। अपने पक्ष को तर्कसम्मत ढंग से प्रस्तुत करते थे। अब तो इस तरह का अध्ययन दुर्लभ हो गया है। लेकिन उन्होंने चिंतन और आचरण दोनों का मेल कर के दिखाया।

इंडियन एक्सप्रैस एवं हिंदुस्तान टाइम्स के पूर्व संपादक तथा प्रधानमंत्री के सूचना सलाहकार रहे एच. के. दुआ कहते हैं कि मधु लिमये में अनेक विशिष्ट गुण थे। मैंने उनको पार्लियामेंट में काम करते देखा है। हालाँकि उनकी पार्टी के सदस्यों की संख्या ज़्यादा नहीं थी, फिर भी तत्कालीन सरकार को वे नियंत्रण में रखते थे। सदन में मंत्री सबसे ज़्यादा मधु लिमये से ही सतर्क रहते थे। वे राष्ट्रीय मुद्दों के प्रति सजग, सतर्क रहते हुए अपने भाषणों के लिऐ लाइब्रेरी में बेहद मेहनत करते थे। वे जब भी कोई विषय चुनते थे, तो उस पर इतनी रिसर्च करके आते थे कि वे अकेले ही पूरी पार्लियामेंट को झकझोर देते थे। वे अपनी तीक्षण बुद्धि और विलक्षण प्रतिभा के सहारे सदन में जो सफलता पाते थे, वह दुनिया के किसी भी सांसद के लिए ईर्ष्याऔ की बात होती थी।

आज जब जरा सी शिक्षा ग्रहण लेने के बाद समाजवादी नेता और कार्यकर्ता जन भाषण में बात करने, भाषण देने में अपनी तौहीन समझते हैं। उन्हें यह भी नहीं पता कि आम जनता की भाषा में बात न करके वे अपने राजनीतिक जीवन का कितना बड़ा नुकसान कर रहे हैं। उन्हें मधु लिमये के जीवन और समाजवादी दर्शन से सीखना चाहिए । मधु लिमये की अपनी भाषा पर गज़ब की पकड़ थी। जब बोलते थे तो मजाल है कि एक भी शब्द अङ्ग्रेज़ी का आ आ जाए । जबकि अङ्ग्रेज़ी पर भी उनकी उतनी ही अच्छी पकड़ थी । एक सच्चे समाजवादी की तरह वे उसी जुबान का उपयोग करते थे। जिसे देश की जनता समझ सकती थी। उनका संस्कृत भाषा और बोलियों पर भी समान अधिकार था ।

मजदूर दिवस के दिन जन्में समाजवादी दर्शन के आधार पर राजनीति करने वाले राजनीतिक दलों के नेताओं और कार्यकर्ताओं को खूब अध्ययन करना चाहिए। जिन समाजवादी नेताओं ने एक आदर्श समाजवादी – राजनीतिक जीवन यापन करते हुए अपना सर्वस्व देश और जनता कल्याण के लिए होम कर दिया, उनका अध्ययन करके अपने विचार को उच्च और जीवन को सामान्य बनाना चाहिए । उनके जीवन और दर्शन पर चिंतन मनन करना चाहिए । तभी उनकी उखड़ती हुई जड़ें फिर से मजबूती पकड़ सकेंगी ।

प्रोफेसर डॉ योगेन्द्र यादव

पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट

Similar News