लॉक डाउन : सीआरपीएफ जवान और कर्नाटक पुलिस की आपसी तकरार – प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव
महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में पिछले तीन सालों से पर्यावरण जागरूकता अभियान शहीद सम्मान यात्रा के नाम से उत्तर प्रदेश सहित पूरे देश के विभिन्न प्रदेशों में यात्राएं कर रहा हूँ । अभी हाल में ही में मेरे द्वारा कश्मीर से कन्याकुमारी तक पर्यावरण जागरूकता अभियान शहीद सम्मान यात्रा के तहत 9452 किलोमीटर की यात्रा की गई। इस दौरान हमें सम्पूर्ण कर्नाटक में भी भ्रमण करने का अवसर मिला। जितने दिन भी कर्नाटक में यात्रा की। किसी न किसी रूप में कर्नाटक पुलिस से मिलने, उनसे चर्चा करने का अवसर मिला। उनकी कार्य शैली और नेक नियत देख कर मन उनसे बिना प्रभावित हुए नहीं रहा। देश में पर्यावरण जागरूकता अभियान शहीद सम्मान सायकिल यात्रा, पदयात्रा और वाहन यात्रा के कारण सेना के भी बहुत जवानो से मित्रता हो गई है। हर दिन किसी न किसी विषय पर कुछ लोगों से चर्चा करने का अवसर भी प्राप्त होता है। उसमें तीनों सेना के जवानों के अलावा बीएसएफ, सीआरपीएफ आदि पैरामिलिट्री फोरसेस भी शामिल हैं। वैसे भी आम जनता उन्हें सेना के जवान के रूप में ही जानती है। उनकी भी देशभक्ति की भावना को देख कर मन भर आता है। तमाम कठिनाइयों को हँसते-हँसते हुए वे सहते हैं और देश की रक्षा के लिए प्राण-प्रण से जुटे रहते हैं। जहां तक मैंने भी देखा है कि आमतौर पर सेना के जवानो और पुलिस के बीच में रिश्ते सामान्य होते हैं। लेकिन कई बार ऐसा भी होता है कि दोनों अपनी-अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना कर एक-दूसरे से भिड़ जाते हैं। जिससे दोनों के रिश्तों मे एक तनाव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
आज का लेख लिखने के पहले सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा एक वीडियो है। जिसमें सीआरपीएफ के जवान के प्रति कर्नाटक पुलिस को अत्यंत असंवेदनशील दिखाते हुए उस जुल्म ढाया जा रहा है । जिस प्रकार से वीडियो फुटेज दिखाया जा रहा है। उससे ऐसा लगता है कि पुलिस जान-बूझ कर उसकी पिटाई कर रही है । इस वीडियो को देखने के बाद हर भारतीय के दिन में कर्नाटक पुलिस के प्रति क्षोभ है। सीआरपीएफ के जवान भी उस वीडियों को देख रहे हैं, उसे देख कर उनके मन में भी कर्नाटक पुलिस के प्रति क्षोभ उत्पन्न हो रहा है। इस मामले को सोशल मीडिया पर देख कर लोग अपने-अपने हिसाब से टिप्पणी कर रहे हैं। लेकिन सबसे पहले उसे देख कर उचित कार्रवाई के लिए कर्नाटक के डीजीपी का ध्यान आकर्षित करने वाले कर्नाटक के एक सांसद राजीव चन्द्रशेखरन ने उस वीडियो को कर्नाटक डीजीपी को टैग करके यह आशा जाहीर की कि वीडियो में दिखाया गया मामला सच न हो। लेकिन जो सूचना प्राप्त हो रही है, उसके अनुसार लॉक डाउन के दौरान मास्क पहनने को लेकर पुलिस और सीआरपीएफ जवान के बीच में बहस हुई, जो जल्द ही हाथापाई में बदल गई। और इसके बाद पुलिस उसे हथकड़ी पहना कर उसे पुलिस थाने लाई और लॉक में बंद कर दिया । इसके बाद उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई। एफआईआर में उस पर भारतीय दंड संहिता की धारा 353 (ड्यूटी करते वक्त सरकारी कर्मचारी को रोकना या उसके अभद्रता करना), धारा 323 (जानबूझकर किसी को स्वेच्छा से चोट पहुंचाना), धारा 504 (शांति भंग करन के लिए जानबूझकर अपमानित करना) और एपिडेमिक डिजीज एक्ट (भारतीय दंड संहिता की धारा 188) की धाराओं का उपयोग किया गया है ।
इस लेख को आगे बढ़ाने के पहले सोशल मीडिया पर वायरल वीडियों और उस की गई टिप्पणियों पर एक निगाह डाल लेते हैं । सबसे पहले यह मामला सौम्या अदीपता के @Soumyadipta ट्विटर हैंडल पर आया। जिसके अनुसार सादे कपड़े में सीआरपीएफ़ जवान सचिन सावंत की बेलगावी पुलिस के दो कॉन्स्टेबलों से झड़प हो गई । घटना के वीडियो यह दिखाया गया कि एक भारी क़द काठी का पुलिस वाला सीआरपीएफ जवान की पैंट पकड़ कर खींच रहा है और दूसरा पुलिसकर्मी उस पर पर लाठियां बरसा रहा है। सौम्या आदिप्ता ने वीडियो को अपने सांसद को टैग करते हुए लिखा - सीआरपीएफ़ कमांडो के साथ अभद्रता का वीडियो । देखिए किस तरह से जब यह कमांडो एक दूसरे पुलिसकर्मी से बात कर रहा है तो दूसरा उनके पैंट को खींच रहा है । वह लगातार उनके पैंट को खींचता रहा है । कब तक कोबरा कमांडो सचिन सावंत अपना संयम रख पाते. फिर उन पर लाठी से हमला किया गया । इसके साथ ही उसने कमांडों सावंत की वह तस्वीर भी टैग किया, जिसमें उनके बाएं हाथ में हथकड़ी लगी है और वे पुलिस स्टेशन के बाहर फ़र्श पर बैठे हैं ।
जब डीजीपी ने इस मामले के संबंध में पड़ताल की तो दूसरा पक्ष भी आया। कर्नाटक की जिला पुलिस ने भी एक वीडियो जारी किया, जिसमें सीआरपीएफ जवान सावंत ने बहस के दौरान एक पुलिस कॉन्स्टेबल का कॉलर पकड़ लिया है । वह कॉन्स्टेबल सावंत को कॉलर छोड़ने के लिए कह रहा है । इसी दौरान भारी शरीर वाला पुलिस कॉन्स्टेबल सावंत के पैंट को खींच रहा है । बाद में वही सावंत को पीटता हुआ दिखाई देता है। बेलगावी ज़िले के पुलिस अधीक्षक लक्ष्मण निमबार्गी ने इस संबंध में मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि सोशल मीडिया पर जो दिखाया जा रहा है, वह आधा सच है । सोशल मीडिया पर कहा जा रहा है कि मास्क न पहनने की वजह से सीआरपीएफ जवान के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। यह झूठ है । उन्होने कहा कि लॉक डाउन के चलते निमबरगी में धारा 144 लगी हुई है। इसी का अनुपालन कराने के लिए पुलिस लगातार गश्त कर रही है। यह भी देखने का प्रयास कर रही है कि लोग मास्क पहने हुए हैं कि नहीं। जो लोग मास्क नहीं पहने हुए हैं, उन्हें मास्क पहनने के लिए भी कह रही है । वीडियो में दिखाये गए दोनों कॉन्स्टेबल राउंड पर निकले हुए थे। जब दोनों एक्सम्बा गांव पहुंचे तो वहाँ एक पेड़ के नीचे छह सात लोगों को बैठकर बातचीत करते देखा । पुलिस को देखते सभी लोग भाग गए, पर एक एक व्यक्ति वहाँ बैठा रहा। कॉन्स्टेबल ने उनसे मास्क पहनने और घर के अंदर रहने के लिए कहा ।
बातचीत में उसने कॉन्स्टेबलों से कहा कि वह भी पुलिसकर्मी है और इस समय सीआरपीएफ में पदस्थ है । धीरे धीरे दोनों में बहस हो गई। सीआरपीएफ़ जवान ने पुलिस कॉन्स्टेबल का कॉलर पकड़ लिया । पहले उसने कलर छोड़ने को कहा । जब उसने कॉलर नहीं छोड़ा, तब दूसरा सिपाही उसकी पैंट को पकड़कर खीचने लगा । इसी दौरान एक महिला आई, उसने भी सीआरपीएफ़ जवान को पुलिस का कॉलर छोड़ने को कहा । लेकिन कलर छोड़ने के बजाय सीआरपीएफ जवान ने पुलिस के पेट पर लात मार दिया । जो मेडिकल रिपोर्ट में भी आया है । लात मारने के बाद ही पुलिस ने उस पर लाठी से प्रहार किया । बेलगावी पुलिस अधीक्षक ने सीआरपीएफ जवान को हथकड़ी लगाने पर अपना सपष्टीकरण देते हुए कहा कि उस वक्त थाने में पुलिस स्टाफ कम था। सभी गश्त पर गए हुए थे। केवल दो महिला कांस्टेबल ही थी। महिला कांस्टेबलो से किसी प्रकार की वह अभद्रता न कर दे। इसी कारण उसे हथकड़ी लगा कर बाहर ही बैठाया गया । खैर एफआईआर दर्ज होने के बाद अब यह मामला कोर्ट में चला गया है। उसे छोड़ने का निर्णय अब दोनों पक्षों के वकीलों के बहस के उपरांत होना है। पुलिस ने भी अपना पक्ष रख दिया है। लेकिन सीआरपीएफ जवान का अभी तक पक्ष नहीं आया है। उससे मीडियाकर्मियों की बात नहीं हो सकी है ।
सही क्या है ? गलत क्या है ? यह तो बाद में पता चलेगा। लेकिन कोरेना महामारी के समय में पुलिस और सीआरपीएफ जवान के बीच के इस वीडियों ने पूरे देश को झकझोर दिया । लॉक डाउन के कारण इस समय सभी लोग फुर्सत में हैं, इसलिए उसे देखने और उस पर गंभीर होकर चर्चा करने की वजह से यह मुद्दा गरमा गया। लेकिन मेरे जेहन में सवाल यह उठता है, जब सभी लोग अपने – अपने स्वार्थों से ऊपर उठ कर पूरी मानवता की भलाई के लिए अपना हर एक कदम उठा रहे हैं। ऐसे में सीआरपीएफ के जवान और पुलिस वाले एक दूसरे के प्रति इतने असंवेदनशील कैसे हो गए ? जो जवान अपनी जान पर खेल कर देश की रक्षा करता हो, वह मास्क के छोटे से मुद्दे को इश्यू बना कर इतनी बात कैसे बढ़ा देगा । ऐसा लगता है कि थोड़ी-थोड़ी गलतियाँ दोनों तरफ से हुई हैं। जिसकी वजह से दोनों के बीच मार-पीट की नौबत आ गई । पुलिस ने भी इसे अपने अहंकार से जोड़ कर उसे गिरफ्तार कर लिया और हथकड़ी पहना कर थाने लाई। और उसे बाहर ही बैठा दिया । उसके खिलाफ गंभीर धाराओं में एफआईआर दर्ज कर ली। जिससे उनका पक्ष मजबूत कर लिया । देश की जनता की संवेदना दोनों के साथ जुड़ी हुई है। इसलिए इस प्रकार की घटनाएँ आगे नहीं हो, इसके लिए पुलिस और सेना सहित सहित उसके सभी आनुषंगिक संगठनों के जवानों को ध्यान रखना चाहिए। यह समय आपस में लड़ने का नहीं है, यह समय एक दूसरे को नीचा देखने का नहीं है। यह समय अपने अहंकार को पुष्ट करने का नहीं है । यह समय देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील के अनुसार कोरेना से लड़ने का है। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा दी गई हिदायतों का अनुपालन करने के लिए हैं ।
प्रोफेसर डॉ योगेन्द्र यादव
पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट