लॉक डाउन : प्रकृति और प्रशासन की मार से आहत अन्नदाता को भी है राहत पैकेज की जरूरत – प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव

Update: 2020-04-21 10:48 GMT


प्रकृति और प्रशासन की मार से सबसे अधिक प्रभावित अन्नदाता ही होता है । चाहे बारिश हो, चाहे तूफान आए, चाहे ओलावृष्टि हो, चाहे सूखा पड़े, मरता इस देश का किसान ही है। इस साल तो कोई ऐसा महिना नहीं गया, जब देश के किसी न किसी क्षेत्र में आंधी, तूफान, ओलावृष्टि, अतिवृष्टि और सूखा न पड़ा हो । जैसे ही किसान पर अपने ऊपर पड़ी आफत से थोड़ा सा बरी होता, वैसे ही दूसरी कोई न कोई आफत फिर आ जाती और किसान के चेहरे पर लौटी मुस्कान को छीन लेती । इस वर्ष जब बुवाई का समय हुआ। तो उसके आगे और पीछे बारिश हो गई। जिसकी वजह से जो किसान फसल बो चुके थे, उनकी बोई फसल नष्ट हो गई, और जो लोग नहीं बोये थे, उन्हें फसल बोने में देरी हो गई। इस कारण दोनों किसान, जिसने फसल बोई थी, वह भी बर्बाद हो गया, और जिसने फसल नहीं बोई थी, देर से फसल बोने की वजह से उसकी उपज कम हो गई । इसके बावजूद किसान की फसल इस साल बहुत अच्छी थी। हर किसान यह देख कर बहुत ही खुश था कि चलो ! इस बार फसल अच्छी हुई है। बैंक से लिया हुआ अपना ऋण भर देगा। अपनी बेटी के हाथ पीले कर देगा, अपने बेटे के लिए एक सायकिल खरीद देगा । अपने बेरोजगार बेटे के लिए थोड़े और पैसे का इंतजाम करके कहीं दूकान करवा देगा। बच्चो सहित परिवार के अन्य सदस्यों के लिए नए कपड़े सिलवा देगा। इसी तरह की तमाम कल्पनाए वह खेत के चारो ओर घूमते हुए करता था। लेकिन उसकी खुशी जन्मदाता से देखी नहीं गई। फसल पूरी तरह से पक कर तैयार होने में एक ही पखवाड़ा बचा था। सारसो सहित तममा दलहन और तिलहन की फसलें काटने का इंतजार कर रही थी, तभी रात के समय आँधी-पानी और ओलावृष्टि ने उसके सपनों को उजाड़ दिया। पानी तो बरसा ही, इतने बड़े –बड़े ओले गिरे कि पूरी पकी फसलों का एक भी दाना पेड़ पर लगा नहीं रह गया । सब का सब झर गया। तिलहन और दलहन की फसलों के साथ यही हुआ। बचा गेहूं, पानी और ओलावृष्टि के साथ इतनी तेज हवाएँ चली कि पूरी तरह से गदराया गेहूं भी उसकी मार नहीं झेल सका और धरती पर सो गया। जिस खेत का गेहूं धरती पर गिर जाता है, उसकी उपज कम हो जाती है। दाने पतले हो जाते हैं और उसकी चमक भी चली जाती है । जब दूसरी सुबह किसान अपने खेत पर पहुंचा तो सर पकड़ कर खेत की मेड़ पर ही बैठ गया। उसके सारे सपने चकनाचूर हो गए। जो चेहरा कल तक खुशी के मारे दमक रहा था, उस चेहरे पर मुरदानगी छा गई । वह आकाश की ओर एकटक देख कर अन्नदाता जन्मदाता से पूछने लगा कि उसने क्या अपराध किया है। किस अपराध की आपने उसे सजा दी है। देर तक खेतो पर बैठा किसान रुवासे मन से अपने घर लौटा और घर की बनी रोटी भी उसके गले से नीचे नहीं उतर रही थी। लेकिन कितने दिन भूखे रहता ? हार – थक कर वह खेत पर पहुंचा और जो दलहन तिलहन जी जो भी फसले जिस भी हालत में थी, उसे काट कर घर ले आया ।

सरकार ने भी इस प्राकृतिक आपदा का संज्ञान लिया । उसने संबन्धित क्षेत्रों के लेखपालों को 48 घंटे के अंदर नुकसान के अकड़े भेजने को कहा । सरकारी अकड़ों के अनुसार 68 लोगों की मौत हुई। 379 पशुओं की भी जान गई । 11642 घर धराशायी हो गए। इस संबंध में उत्तर प्रदेश सरकार ने जो केंद्र को रिपोर्ट रिपोर्ट भेजी है । उसके अनुसार 60 जिलों में 92.91 लाख हेक्टेयर में फसल बोई गई थी, जिसमें से 12.96 लाख हेक्टेयर फसल नष्ट हो गई है । मिर्जापुर में 15,0515 किसानों की 67367.63 हेक्टेयर फसल, मथुरा में 1891 किसानों की 33757.00 हेक्टेयर फसल, सीतापुर 87,584 किसानों की 25145.87 हेक्येटर और चित्रकूट में 52073 किसानों की 36711.19 हेक्टेयर फसल पूरी तरह से चौपट हो गई । उत्तर प्रदेश के इन 60 जिलों में अनाज, सब्जी का कुल रकबा 5291064.61 हेक्टेयर है । जिसमें से 289363.19 हेक्टेयर में 33 फीसदी से ज्यादा नुकसान हुआ । जहां-जहां ओलावृष्टि से सब कुछ तबाब हो गया । उन 60 जिलों में 4083842.23 हेक्टेयर में गेहूं बोया गया था, जिसमें 963245.19 हेक्टेयर में बोया गया हेहून पूरी तरह नष्ट हो गया । जबकि 187077.62 हेक्टेयर में 33 फीसदी से ज्यादा का नुकसान हुआ।

भारतीय मौसम विभाग के अनुसार 75 में से 74 जिलों में अतिवृष्टि हुई । जिससे गेहूं, आलू, सरसों, सब्जियों, आम, तरबूज, खरबूज समेत रबी की समस्त फसलों का नुकसान हुआ । उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्राकृतिक आपदा में मारे गए लोगों के परिजनों को 4 लाख रुपए और पीड़ित किसानों को 48 घंटे के अंदर मुआवजा दिए जाने का निर्देश दिया था। राज्य आपदा मोचक निधि से 19 मार्च को 249.02 करोड़ रुपए स्वीकृत कर 24.49 करोड़ रुपए तुरंत जारी कर दिये।

उत्तर प्रदेश सरकार ने केंद्र सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय को 19 मार्च को को भेजे पत्र में बताया कि एक मार्च से 15 तक यूपी में हुई बारिश, ओलावृष्टि और आकाशीय बिजली गिरने से 35142.72 लाख रुपए की फसलें, 54.96 लाख रुपए के पशुधन और 384.30 लाख रुपए का नुकसान हुए । केंद्र सरकार से 358.57 करोड़ रुपए की मांग की ।

लेकिन जब सरकार द्वारा दी जाने वाली मदद और सर्वे के व्यावहारिक पहलू पर विचार करते हैं, तो वह ठीक प्रतीत नहीं होता है। ओलावृष्टि या प्राकृतिक आपदाओं के नुकसान के आकलन की जवाबदेही हर क्षेत्र में पदस्थ लेखपालों को दी जाती है। वैसे ही उत्तर प्रदेशों मे लेखपालों की संख्या जरूरत से बहुत कम है। दूसरे लेखपालों के काम करने की शैली अलग है। उनकी भी अपनी विवशता है। 24 घंटे में अपने हलके में आने वाले सभी प्रभावित क्षेत्रों का आकलन किसी भी रूप में संभव नहीं है। इस कारण लेखपाल भी एक-दो खेतों का आकलन करने के बाद ग्राम प्रधान से यह कह देते हैं कि जिन-जिन लोगों का नुकसान हुआ है, उनसे फोटो मंगा कर मेरे पास भेजो । जबकि असलियत यह है कि गाँव के अधिकांश किसानो के एंडरायड फोन होता ही नहीं, जिससे वे फोटो खीच सकें। आज भी गावों में एंडरायड फोनों का प्रतिशत 20 से अधिक नहीं है। इसलिए ग्राम प्रधान के कहने पर भी शत-प्रतिशत किसान अपने-अपने नुकसान हुए खेतों की फोटो नहीं भेज पाते । सीधे-सादे, गरीब, मजलूम किसान छूट ही जाते हैं। ऐसे गरीब किसान को ग्राम प्रधान और लेखपाल दोनों डपट कर चुप करा देते हैं । जिन लोगों के फोटो लेखपाल को प्राप्त नहीं होते हैं। ऐसे सभी खेतों को वह 35 प्रतिशत से कम नुकसान की सूची में डाल देता है ।

इसके लिए सरकार भी उत्तरदाई है। सिर्फ लेखपाल पर ही दोष मढ़ना ठीक नहीं है। क्योंकि अपने-अपने हलके में हुए नुकसान का आकलन करने के लिए कम से कम 20-25 दिन की जरूरत होती है, और सरकार चाहती है कि सिर्फ एक दिन में ही वह 25 दिनों का काम कर ले। इस कारण ज़्यादातर रिपोर्ट जो भेजी जाती है, वह कयास पर आधारित होती है। यह भी देखा गया कि जिससे प्रधान और लेखापाल के मधुर रिश्ते हैं, उनको भरपूर मुआवजा मिल जाता है और जिनकी ग्राम प्रधान और लेखपाल से नहीं पटती। या उनका संपर्क नहीं होता है, उसे नुकसान से बेहद कम मुआवजा मिलता है । इस तरह अन्नदाता के साथ प्रशासन भी छल करता है।

कोरेना संक्रमण से पूरे देश को बचाने के लिए देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लॉक डाउन घोषित कर रखा है। पहले चरण का लॉक डाउन समाप्त हो चुका है। दूसरे चरण का लॉक डाउन चल रहा है। इस दौरान जब मेरी उत्तर प्रदेश के विभिन्न अंचलों में रहने वाले किसानों से बात हुई, तो उन्होने बताया कि पहले तो प्रकृति ने हमसे हमारी खुशी छीन ली। उससे जो कुछ बचा था। वह लॉक डाउन होने की वजह से गेहूं कटाई की मशीने नहीं आ पा रही हैं, मजदूर मिल नहीं पा रहे हैं। जिस फसल को काटने में एक दिन का समय लगता, अब दस दिन लगेंगे। इससे दस प्रतिशत का और नुकसान हो जाएगा । प्रकृति की मार, प्रशासन की गलत परिपाटी और फिर लॉक डाउन की वजह से परेशान और दिखी अन्नदाता की तकलीफ़ें किसी को दिखती नहीं हैं। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित सभी प्रदेशों के मुख्यमंत्री और कृषि विभाग के सभी अधिकारियों और कर्मचारियों को अन्नदाता की सम्पूर्ण परिस्थितियों पर विचार करके उसके लिए भी एक राहत पैकेज घोषित करना चाहिए। जिससे वह भी राहत महसूस कर सके। वह भी अपनी बेटी के हाथ पीले कर सके। अपने बेटे की फीस जमा कर सके। अपने पशुओं के लिए चोकर – चूनी की व्यवस्था कर सके। अग्रिम फसल की बुवाई के लिए बीज और खाद की व्यवस्था कर सके। जन्मदाता के बाद अन्नदाता का ही स्थान आता है। आज लॉक डाउन की विषम परिस्थिति में अगर लोगों को भोजन मिल रहा है । कोई भूखे नही सो रहा है। तो उसका श्रेय सरकार की वितरण प्रणाली के साथ –साथ उस अन्नदाता को ही जाता है। जिसने अपना खून-पसीना सूखा कर उसकी पैदावार की है । जिसके परिश्रम का कोई मोल नहीं होता है। इसके बावजूद भी वह सरकार द्वारा निर्धारित मूल्य पर अपनी फसलें बेच देता है। जबकि जिस मूल्य में वह अपनी फसलें बेचता है। अगर उसकी लागत और किसान की मेहनत जोड़ दी जाए, तो वह बेहद कम होती है। कहने को तमाम किसान यूनियने भी बनी हुई हैं। उन्हें भी अन्नदाता का जीवन खुशहाल बनाने के लिए इस दिशा मे विचार करना चाहिए । केंद्र और राज्य सरकार दोनों को अन्नदाता को राहत पैकेज देने पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करना चाहिए ।

प्रोफेसर डॉ योगेन्द्र यादव

पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट

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