लॉक डाउन में अपने परिवार से दूर वियोग का दंश झेलता प्रवासी मजदूर – प्रोफेसर डॉ योगेन्द्र यादव

Update: 2020-04-18 11:34 GMT

कोविड – 19 वायरस से होने वाली संक्रामक बीमारी के कारण भारत जैसे विकासशील देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा लागू किए गए लॉक डाउन का सबसे अधिक असर मजदूरों पर दिखाई पड़ रहा है। इस समय देश में गरीबों का प्रतिशत करीब 81 के आस-पास है। जिन्हें केंद्र और प्रदेश सरकारें अपने-अपने स्तर पर मदद भी करती हैं। लेकिन इसके बाद भी उसकी और जो आवश्यकताएँ होती हैं, उसके लिए उसे कमाना पड़ता है। माध्यम वर्ग के साथ रहने वाला गरीब व्यक्ति भी चाहता है, कि उसका लड़का भी इंगलिश मीडियम में पढे, उसका बच्चा भी अच्छा खाए और अच्छा पहने, उसकी परवरिश में कोई कमी न रहे, इस कारण उसे अपनी रोजी की तलाश में जहां भी काम मिलता है, वहाँ वह जाता है। अभी तक अधिक लोगों को काम देने वाले शहरों में मुंबई, दिल्ली, बंगलौर, पुणे जयपुर, चेन्नई, कोलकाता जैसे कई महानगर हैं। जहां जाकर वह मजदूरी करता है, उसके खाने-पीने से जो बचता है, उसे अपने घर भेज देता है। जिससे उसके बच्चे की फीस, बूढ़े माँ-बाप की दवा और उसकी पत्नी की जरूरते पूरी होती हैं।

देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी राज्य सरकारों को स्पष्ट निर्देश दिये थे कि लॉक डाउन के दौरान कोई भूखा न सोये। उनके बीच में बांटने के लिए उन्होने खाद्य भंडार के गेट खोल दिये । लेकिन राज्य सरकारों ने भी उसी प्रकार के निर्देश प्रशासनिक अधिकारियों के लिए निर्गत कर दिये गए। जनसंख्या के हिसाब से विश्व में दूसरे नंबर के देश में सारी व्यवस्था पालक झपकते तो नहीं हो सकती थी। इस समय जब लॉक डाउन का दूसरा चरण चल रहा है। 21 दिन का पहला चरण पूरा हो गया है। दूसरे चरण के शुरू होने वाले दिन से सभी को राशन के रूप मे 25 किलो चावल या गेहूं मिल रहा है। जो एक किलो दाल देने की घोषणा सरकार के तरफ से हुई थी, उसका वितरण 1 मई से होगा। यानि वह लॉक डाउन के दूसरे चरण के समाप्त होने से दो दिन पहले ।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब दूसरे चरण की घोषणा की, तो जो मजदूर दूसरे प्रदेशों में फंसे हुए हैं, उनका धैर्य जवाब दे गया। मैं यह नहीं कह रहा हूँ, कि वे भूखे मर रहे हैं। लेकिन उनके परिवारिजनों से जो सूचनाए प्राप्त हो रही हैं, वह चौकाने वाली हैं। सरकार द्वारा इतना इंतजाम करने और स्वयंसेवी संगठनों द्वारा मुक्त हस्त से भोजन के पैकेट और राशन आदि वितरण के बाद भी खाद्यान्न का संकट तो लोगों के यहाँ तो बना हुआ है। गरीब मजदूर वर्ग का पेट तीन या चार पूड़ी में तो भरता नहीं, मेहनतकॅश होने के नाते उसकी खुराक भी अधिक होती है। तीन – चार पूरी का तो वह नाश्ता भी नहीं करता है । नाश्ते में भी वह पाँच से आठ रोटी खा जाता है। ऐसे में जो खाद्यान्न दिया जा रहा है। वह उसके लिए पर्याप्त नहीं है।

लेकिन आज मैं चर्चा दूसरे विषय पर करना चाह रहा हूँ। जो गरीब है, वही मजदूर है, जो अशिक्षित है, वही मजदूर है। जिसके पास कोई हुनर नहीं हैं, वही मजदूर है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी हो न हो, लेकिन वह एक पारिवारिक प्राणी है। यह शत-प्रतिशत सत्य है। अधिकांश मजदूर लॉक आउट घोषित होने के पहले अपने – अपने घरों से दूर रहे। जब काम धंधा बंद हो गया, इसलिए पिछले 25 दिनों से खाली बैठे हुए हैं। आज कल सभी के पास मोबाइल है, इसलिए वे दिन पाँच – छ: बार घर वालों से बात करते हैं। उनके माता-पिता हों, पत्नी हो, बच्चे हों, सभी उससे एक ही बात करते हैं कि किसी तरह से घर चले आओ । इसलिए उसका मजबूत मन भी अपने घर गाँव जाने के लिए करने लगता है। मुंबई में जो भीड़ स्टेशन पर इकट्ठा हुई, वह ऐसे ही लोगों की भीड़ थी। अभी उस घटना को तीन दिन भी नहीं बीते कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने नाम कोटा के प्रतियोगी छात्रों के एक ट्वीट के आधार पर उन्हें लेने के लिए बसे भेज दी। इसके बाद यह मामला फिर तूल पकड़ लिया । वहीं दूसरी ओर महाराष्ट्र सरकार ने लॉकडाउन के बीच चीनी मिल के एक लाख से अधिक प्रवासी मजदूरों को अपने-अपने गांव लौटने की इजाजत दे दिया। इसके लिए उन्होने मिल मालिकों को उनकी जांच कराने के लिए अधिकृत कर दिया । सरकार द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि 1.31 लाख चीनी मिल मजदूर राज्य में 38 चीनी मिलों के परिसरों में बने अस्थायी आवास में रह रहे हैं, जबकि कई अन्य मजदूर दूसरे स्थानों पर फंसे हुए हैं। हालांकि, इन प्रवासी मजदूरों को अपने गांव लौटने की इजाजत देने से एक जिले से दूसरे जिले में भारी संख्या में लोगों की आवाजाही होगी। सरकार के इस फैसले से महाराष्ट्र जिले के प्रवासी मजदूरों ने राहत की सांस ली है।

महाराष्ट्र सरकार के इस कदम के बाद उत्तर प्रदेश के प्रवासी मजदूरों की अपने-अपने घर जाने की इच्छाए और बलवती हो गई । कोटा के प्रतियोगी छात्र – छात्राओं को उनके घर वापस लाने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जो कदम उठाया है, उससे मजदूरों के मन में आशा जागी कि शायद उन्हें भी अपने-अपने घर भेजने के लिए सरकार कोई कदम उठाए। मजदूरों की इस दशा से बुद्धिजीवी वर्ग भी संवेदनशील है । कल ही सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई है, जिसमें यह कहा गया है कि प्रवासी मजदूरों को भी उनके घरों भेजा जाए। अगर सरकार कोरेना संक्रमण को लेकर ऐतिहात बरतना चाहती है, तो प्रवासी मजदूरों को भेजने के पहले उनकी जांच करवा ले। जिन मजदूरों की जांच रिपोर्ट निगेटिव आए, उन सभी को उनके घर जाने की व्यवस्था करे । जनहित याचिका में यह भी निवेदन किया गया है कि प्रवासी को घर तक भेजने की सरकार व्यवस्था करे ।

लेकिन सरकार को प्रथम चरण के लॉक डाउन के बाद जिस तरह से मजदूरों को ट्रकों, बसों में ऊपर – नीचे ठूस-ठूस कर भर कर भेजा गया। उस तरह के हालात न उत्पन्न हों। उसी दौरान जिन लोगों को साधन नहीं मिल पाया। आगे मिल जाएगा, तो पकड़ लेंगे, इस आस में वे अपने ठिकानों से पैदल ही चल दिये। और सैकड़ों किलोमीटर पैदल चल कर अपने-अपने घर पहुंचे । जिस महामारी में बचाव से ही बीमारी को समाप्त किया जा सकता है। इसलिए सोशल डिस्टेन्सिंग के नियम का पूरी तरह पालन करना चाहिए ।

सरकार की भी अपनी परेशानियाँ हो सकती है। कोटा के छात्रों की तरह से हजारों मजदूरों को अलग – अलग शहरों से लाना दुष्कर काम है। इसलिए यह कार्य राज्य सरकारों के लिए काफी कठिन है । ऐसे में केंद्र सरकार को अपने मंत्रिमंडल के साथ बैठ कर इस समस्या पर विचार – विमर्श करना चाहिए और मजदूरों को उनके घरों तक पहुँचाने का कोई न कोई रास्ता निकालना चाहिए । जनमत के अनुसार अभी तक तक मोदी और योगी सरकार ने लॉक डाउन के लिए जो भी कदम उठाएँ हैं, वे सराहनीय हैं। लेकिन विभिन्न राज्यों में मजदूरी के लिए गए मजदूर भी अपने परिवार, अपने बच्चों, अपने माँ-बाप के पास पहुँच जाएँ, इसका भी जतन करना चाहिए ।

कोविड – 19 और उसके संक्रमण के बारे में जो रिसर्च सामने आ रहा है। उसके अनुसार इसका प्रभाव जल्द समाप्त होने वाला नहीं है। अमेरिका के कोरोनावायरस टास्क फोर्स के डॉ. एंथनी फाउची ने कहा - इस बात की पूरी संभावना है कि कोरोना सीजनल फ्लू या मौसमी बीमारी बन जाए। उनकी इस आशंका की पुष्टि हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के विज्ञान विभाग की छपी पत्रिका मे भी हो गई । जिसमें लिखा है - जब तक कोरोनावायरस की कोई वैक्सीन नहीं बन जाती, तब तक यह महामारी खत्म नहीं हो सकती । वैक्सीन के अभाव व असरदार इलाज अभाव में यह सीजनल फ्लू मे परिवर्तित हो सकता है । जिसके 2025 तक हर साल इस संक्रमण के फैलने की संभावना है।

इस बीमारी का नाम कोविड-19 है, जो सार्स कोव-2 नामक कोरोनावायरस से फैलता है। जबकि इसकी फैमिली में सार्स और मर्स जैसे वायरस भी होते हैं। सार्स 2002-03 और मर्स 2015 में फैल चुका है। इसी फैमिली में दो ह्यूमन वायरस भी होते हैं। पहला: HCoV-OC43 और दूसरा : HCoV-HKU1। HCoV वायरस हर साल सर्दियों में सर्दी-जुकाम के माध्यम से परेशान करता है।हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के शोध में यह भी बात प्रकाश में आई है कि इस बीमारी को पूरी तरह से खत्म होने में 2025 तक का समय लगेगा। इसके साथ ही एक बार ठीक होने के बाद भी दुबारा से कोरेना वायरस से संक्रमित हो रहे हैं। ऐसा दक्षिण अफ्रीका में देखने को मिला है। 111 लोग वहाँ पूरी तरह स्वस्थ हो गए थे। लेकिन दुबारा संक्रमित हो गए । इस शोध में यह भी बताया गया है कि इस बीमारी से बचने के लिए सोशल डिस्टेन्सिंग के सिवा कोई चारा नहीं है। इस शोध के अनुसार अब लोगों को सोशल डिस्टेन्सिंग की आदत डाल लेना चाहिए । इस आधार पर भी प्रवासी मजदूरों को उनके घरों तक पहुंचाने का प्रबंध करना चाहिए ।

प्रोफेसर डॉ योगेन्द्र यादव

पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट

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