सम्पूर्ण विश्व इस समय कोरेना संकट से गुजर रहा है । पूरा विश्व उसे रोकने के लिए प्रभावी कदम उठा रहा है। भारत की सामाजिक संरचना विषम है। इस कारण पश्चिमी देशों की अपेक्षा उसे रोकने में दूसरे तरह की कठिनाइयाँ है। यहाँ की करीब 40 प्रतिशत जनता ऐसी है, जो रोज कमाती और रोज खाती है। अगर एक दिन भी उसे काम न मिले, तो घर में राशन लाने के लिए किसी दूसरे से उधार लेना पड़ता है। इसके बाद करीब 40 प्रतिशत ऐसे लोग हैं, जो हफ्ते-15 दिन का राशन घर में रखते हैं। इसी में से कुछ संख्या उन लोगों की भी है, जो करीब एक महीने का राशन की व्यवस्था कर लेते हैं। लेकिन सब्जी तो उन्हें हर दूसरे – तीसरे दिन खरीदनी पड़ती है। इसके बाद जो शेष जनसंख्या बचती है,उसमें से करीब पंद्रह प्रतिशत जनसंख्या इतनी सम्पन्न है, कि तीन से छ महीने तक कोई कमाई न हो, तो भी अपना जीवन यापन कर लेंगे । इसी गणित के आधार पर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले फेज में 21 दिन का लॉक आउट घोषित किया। गरीबों के भोजन और राशन की व्यवस्था भी की। लेकिन लेटेस्ट प्राप्त आकड़ों के अनुसार सरकार और स्वयंसेवी संस्थाएं, दोनों मिल कर करीब 30 प्रतिशत लोगों तक ही भोजन पैकेट पहुंचा सकी । राशन का वितरण तो करीब 4 प्रतिशत लोगों तक ही पहुँच पाया। हाँ यह जरूर रहा कि जो रुपये खाते में डालने की व्यवस्था केंद्र सरकार ने की थी, उसकी पहली किस्त जरूर पहुँच गई । इस समय लॉक डाउन का दूसरा चरण चल रहा है। पहले फेज में करीब 80 करोड़ लोगों के सामने भोजन का संकट उत्पन्न हो गया। सरकार के प्रकार तमाम एजेंसियां होती हैं, इस कारण सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास वस्तु स्थिति की पुख्ता जानकारी है। दूसरे फेज के एक सप्ताह बाद प्रधानमंत्री ने गरीबों विशेषकर मजदूरों के लिए करने का आश्वासन भी दिया है। वे इस बात को बहुत अच्छी तरह जानते हैं, कि भारत जैसे देश में बहुत दिनों तक लॉक आउट नहीं चलाया जा सकता है। प्रधानमंत्री के सामने जो संकट था, वह यह था कि उसे तुरंत कैसे रोका जाये । इसलिए उन्होने बिना किसी पूर्व तैयारी के इतना बड़ा कदम उठाया । करीब 70-80 प्रतिशत जनता ने भी उनका सहयोग किया । लोग स्वेच्छा से अपने घरों में रहने लगे। अगर जरूरी न हो, तो कोई भी घर के बाहर नहीं निकल रहा है। कारण साफ है कि इस दौरान तो सब कुछ बंद है। फिर वह केवल तहरीफ़ के लिए तो नहीं निकल सकता है ।
देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के नेता राहुल गांधी ने आज वीडियो कान्फ्रेंसिंग करके अपना पक्ष जनता के सामने रखा । पत्रकारों द्वारा पूछे गए सवालों के उत्तर दिये । उन्होने सबसे बड़ी बात यही कही कि इस समय देश संकट से दौर से गुजर रहा है। एक ऐसी महामारी जिसका किसी के पास इलाज नहीं है। बचाव ही इलाज है। यह लड़ाई हम तभी जीत सकते हैं, जब हम सभी मिल कर एकजुट होकर इसके खिलाफ लड़ेंगे । राहुल गांधी का यह विचार बहुत सकारात्मक है। निश्चित रूप से उनके इस विचार की जितनी प्रशंसा की जाये, उतनी कम है ।
राहुल गांधी ने एक बात बड़ी ही संजीदगी से की कि लॉक डाउन से केरोना संक्रमण से तुरंत तो रोका जा सकता है। लेकिन इससे कोरेना समाप्त नहीं होगा, जैसे ही लॉक डाउन खुलेगा, कोरेना फिर अपना काम शुरू कर देगा । इसलिए कोरेना संक्रमण है कि नहीं ? इसकी जांच होनी चाहिए। जो संक्रमित हों, उनका इलाज किया जाए, और जो संक्रमित न हो, कुछ हिदायतों के साथ उन्हें अपना काम करने दिया जाए । निश्चित रूप से राहुल गांधी की इस बात में दम है । लेकिन नरेंद्र मोदी ही नहीं, कोई भी देश का प्रधानमंत्री होता, शायद वह भी लॉक डाउन का ही कदम उठाता । क्योंकि कोरेना संक्रमण से होने वाली बीमारी पहले से मौजूद नहीं थी। जब बीमारी ही नहीं थी, तो उसके इलाज की व्यवस्था कैसे होती। विश्व स्वास्थ्य संगठन की गाइड लाइन के बाद जब सभी लोगों को यह पता चल गया कि संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने के बाद ही यह दूसरे स्वस्थ व्यक्ति में फैलेगा । इसलिए लॉक डाउन जरूरी था। सबसे पहले इसको फैलने से रोक्नना था। केंद्र सरकार ने भी वही किया। लेकिन वह हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठी रही। वह भी उसी दिशा में काम कर रही है, जिसकी बात राहुल गांधी कर रहे हैं । लोगों का चेकअप किया जा रहा है। टेस्टिंग लैब की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ाई जा रही है। लोगों से जांच की अपील की जा रही है। जिन-जिन जगहों पर कोरेना संक्रमित मिल रहे हैं, उस क्षेत्र या बिल्डिंग को हॉट स्पॉट घोषित कर दिया जा रहा है। हॉट स्पॉट में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति की जांच की जा रही है। इस प्रकार जो कोरेना टेस्टिंग बढ़ाने की बात राहुल गांधी ने की, उस दिशा में सरकार पहले से ही काम कर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बात को खुद ही स्वीकार किया। कि जब कोरेना प्रकाश में आया, उस समय देश में केवल एक लैब थी, अब करीब 259 लैब हैं। उनकी संख्या और बढ़ाई जा रही है ।
राहुल गांधी की यह बात सही है कि देश में आपातकाल के हालत पैदा हो गए हैं। उन्होने प्रदेश सरकारों और कलेक्टर को इम्प्लीमेंट करने की ज़िम्मेदारी देने को कहा। वह तो अब भी है, प्रदेश सरकारें और कलेक्टर ही अपने-अपने राज्य और जिले में कोरेना संक्रमण से लड़ने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। हाँ यह बात सही है कि उन्हें और स्वायत्त बनाने की जरूरत है। उनकी जरूरत के अनुसार संसाधन और धन उपलब्ध कराने की जरूरत है ।
जो सबसे बड़ी कमी है, वह राशन वितरण के क्षेत्र में दिखाई पड़ रही है। अन्य राज्यों में क्या व्यवस्था है, इसकी मुझे मुकम्मल जानकारी नहीं है, लेकिन उत्तर प्रदेश में बिना कार्ड धारकों को राशन देने की प्रक्रिया तो 15 अप्रैल से शुरू हुई है। यानि लॉक डाउन के पहले फेज में राशन कार्ड जिनके पास नहीं हैं, ऐसे गरीबों को एक दाना भी अनाज नहीं मिला । इस दिशा में केंद्र सरकार, प्रदेश सरकार और सभी जिला कलेक्टरों को मिल कर रणनीति बनाना चाहिए, जिससे सभी गरीबों को राशन मिल सके। राहुल गांधी की एक बात और ज्यादा व्यावहारिक लगी। जो राशन दिये जा रहे हैं, वे एक महीने के लिए हैं, अपर्याप्त हैं। उन्हें हर हफ्ते उतना राशन दिया जाना चाहिए, जिससे सभी लोग कम से कम पेट भर रूखा-सूखा खाकर पेट भर सकें । उन्होने जो गरीबों के खातों में पैसे भेजने की बात की, वह भी ठीक है, क्योंकि सारे काम धंधे बंद होने के कारण गेहूं या चावल और एक किलो दाल से ही पूरा परिवार महीने भर तो नहीं खा लेगा। उसके लिए सब्जी, नमक चटनी जैसे कुछ अन्य वस्तुओं की जरूरत होती है, जो पैसे होने पर ही खरीदी जा सकती है । राहुल गांधी ने कहा कि गोदामों में अन्न भरा पड़ा है लेकिन गरीबों को खाने को नहीं मिल रहा है। सरकार ने प्रवासी मजदूरों को लेकर कई गलतियां की। यदि रणनीति बनाई गई होती तो इस तरह की स्थिति पैदा नहीं होती। राज्यों को सभी प्रवासी मजदूरों का ध्यान रखना चाहिए।
राहुल गांधी ने जो सबसे बड़ी बात कही, वह रोजगार सृजन की। सब कुछ बंद होने की वजह से देश की गाड़ी हो या घर की गाड़ी उसे पटरी पर लाने में कम से कम 6 महीने लगेंगे। वह भी तब जब सभी हाथों के लिए काम होगा । ऐसे में केंद्र सरकार जिन विभागों से देश की जनता को 40 प्रतिशत रोजगार उपलब्ध कराती है, उसे और चुस्त-दुरुस्त करना चाहिए । राहुल गांधी ने साफ-साफ शब्दों में कहा कि कोरोना संकट से सदेश पर वित्तीय दबाव बढ़ने वाला है।
इस समय पूरा देश संकट में है। ऐसे समय में सभी राजनीतिक दलों, संगठनों को एक होकर केंद्र, राज्य सरकार और प्रशासन का सहयोग करना चाहिए । पक्ष विपक्ष की भावना का त्याग करना चाहिए । सभी विपक्षी दलों को अपने कार्यकर्ताओं को उनकी योग्यता और क्षमता के अनुसार वालेंटियर के रूप में तैयार करके उसकी सूची सरकार को उपलब्ध कराना चाहिए । यह समय सेवा कार्यों का श्रेय लेने का नहीं है। बल्कि देश को इस अनचाहे संकट से मुक्त कराने का है । इस बात को सभी जानते हैं कि अगर एक भी राजनीतिक दल ने सहयोग नही किया, तो कोरेना संक्रमण से निजात नहीं पाई जा सकती है। राहुल गांधी ने कई पत्रकारों के सवालों का जवाब देते हुए कहा कि मैं आलोचना के लिए नहीं, रचनात्मक सहयोग के लिए टिप्पणी कर रहा हूं। सभी राजनीतिक दलों और जनता को इस संकट को मिलकर काम करना होगा। उन्होने प्रधानमंत्री से बार – बार आग्रह किया कि आक्रामक ढंग से जांच कराएं। व्यापक स्तर पर जांच कराएं और विशेष रणनीति बना कर जांच कराएं, जिससे देश इस संकट से उबर सके ।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी इस संकट की घड़ी में राजनीति से ऊपर उठ कर सभी को साथ लेकर, सभी से विचार-विमर्श करके, सभी का सहयोग लेकर लॉक आउट और कोरेना संक्रमण के खिलाफ युद्ध छेड़ देना चाहिए । जब पूरा देश, पूरे विपक्ष उनके साथ खड़े हैं, सहयोग के लिए तैयार बैठे हैं, तो देर किस बात की है। अविलंब इसमें जुट जाना चाहिए और कोरेना को परास्त करके जीत दर्ज करना चाहिए। जिससे पूरा देश एक बार फिर नए जोश के साथ जुट कर भारत को वित्तीय संकट से भी उबार ले ।
प्रोफेसर डॉ योगेन्द्र यादव
पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट