कोरोना, लॉक डाउन और मानव धर्म – प्रोफेसर डॉ योगेन्द्र यादव

Update: 2020-04-12 06:46 GMT


सम्पूर्ण विश्व इस समय कोरेना नामक महामारी से बचने के लिए हर संभव उपाय कर रहा है । कोरेना संक्रमित मरीज के इलाज के लिए कोई विशेष औषधि की खोज अभी तक नहीं हुई है, इस कारण उससे बचाव ही उसका इलाज है । इस बीमारी की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह संक्रमित रोगी के संपर्क मात्र से हो जाता है । इसी कारण विश्व के तमाम देशों की भांति भारत ने भी लोगों के बीच दूरी बनी रहे, इसके लिए लॉक डाउन करने का निर्णय लिया । देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मीडिया के माध्यम से देश की जनता के सामने आते हैं, और पूरे देश में लॉक डाउन घोषित कर देते हैं । साथ ही अपील भी करते हैं कि लोग अपने घरों से बाहर न निकले, अगर निकलना जरूरी हो, तो मास्क पहन कर निकले और दूसरे लोगों से पर्याप्त दूरी बनाए रखें । पूरे देश को बचाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपील के साथ सभी प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों को भी निर्देशित किया कि इस दिशा में अगर सख्त कदम उठाना पड़े, तो वे उठा सकते हैं। इसलिए सभी राज्य सरकारों ने अपने यहाँ के पुलिस, पैरा मिलिटरी बलों और मिलिटरी के उपयोग की भी स्वतन्त्रता दी। अपने अधिकारियों द्वारा स्पष्ट निर्देश मिलने के बाद इन बलों ने लॉक डाउन लागू कराने के लिए कहीं-कहीं बल भी प्रयोग किया। बेवजह घूम रहे लोगों को दंड बैठक भी करवाई । उत्तर प्रदेश की सरजमीं पर इस प्रकार की घटनाएँ अधिक घटी । पुलिस बल के इस आचरण पर विपक्षियों ने रोष प्रकट करते हुए आलोचना की। लेकिन देश और प्रदेश की जनता पर उनके इस विरोध का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। देश की जनता पुलिस और पैरा मिलिटरी बल के पक्ष में खड़ी रही ।

ऐसी आपातकालीन स्थिति में मनुष्य का क्या धर्म है ? आइये इस पर थोड़ी चर्चा कर लेते हैं। इस प्रकार की स्थिति में देश के प्रत्येक नागरिक का धर्म है कि वह देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अपने – अपने प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों, प्रशासनिक अधिकारियों के निर्देशों का पालन करें। अगर कोरेना से संक्रमित हो गए हों, तो इसकी सूचना तुरंत दें, और चिकित्सकों का सहयोग करते हुए अपना इलाज कराएं। यह न फैले, इसके लिए खुद लोगों से दूरी बना लें। क्योंकि यह संकट व्यक्ति विशेष पर नहीं, देश विशेष पर नहीं, सम्पूर्ण विश्व पर है । ऐसे समय में मनुष्य को अपने जीवन में तीनों पवित्रताओं को पालन करना चाहिए, ऐसा धर्म कहता है । जीवन में तीन तरह की पवित्रताएं होती हैं – शारीरिक पवित्रता, वाणी पवित्रता और मानसिक पवित्रता । शारीरिक पवित्रता के अंतर्गत मनुष्य हिंसा से विरत रहता है, वह मिथ्या आचरण से विरत रहता है । इसलिए शारीरिक पवित्रता कायम रखते हुए देश ही नहीं विश्व के प्रत्येक मनुष्य को शारीरिक पवित्रता के धर्म का पालन करना चाहिए । कोई भी ऐसा मिथ्या आचरण नहीं करना चाहिए, जिससे कोरेना की महामारी में इजाफा हो । दूसरे प्रकार की पवित्रता वाणी की पवित्रता होती है । इस आपातकालीन स्थिति में हमें उसका भी पालन करना चाहिए। हमें कोई भी ऐसा मिथ्या प्रचार नहीं करना चाहिए। जिसके स्रोत के बारे में जानकारी न हो । अपितु देश के प्रधानमंत्री द्वारा बनाई गई व्यवस्थाओं के अनुसार अधिकृत संस्थाओं द्वारा दी गई जानकारी के बारे में ही दूसरों से चर्चा करना चाहिए, जिससे लोग जागरूक हो सकें । आज कल सोशल मीडिया का युग है। हर कोई वहाँ पर अपने – अपने हिसाब से लोगों को सलाह दे रहा है। इसी प्रवुर्त्ति के कारण केंद्र सरकार को कड़े कदम उठाने पड़े। देश की सर्वोच्च न्यायालय को निर्देश देने पड़े कि विश्व स्वास्थ्य संगठन जो निर्देश दे, उसी निर्देश को माने । अगर कोई इससे इतर प्रचार करता पाया गया, तो उसके खिलाफ मुकदमा पंजीकृत कर जेल भेज दिया जाएगा । इस प्रकार राज धर्म का निर्वहन करते हुए देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कानून का सहारा लेकर लोगों की वाणी को पवित्र करना पड़ा यानि मनुष्य को ऐसी आपातकालीन स्थिति में धर्म पालन करने के लिए कहना पड़ा । तीसरी पवित्रता मन की पवित्रता होती है। आमतौर पर लोग ईर्ष्यालु होते हैं। इस कारण हम सुरक्षित रहें, दूसरा संक्रमित हो, तो हो। इस प्रकार की विचार रखते हैं। ऐसे लोग मनोरोगी होते हैं। ऐसे ही मनोरोगियों के लिए धर्म में यह तीसरी व्यवस्था दी गई कि ऐसी आपातकालीन स्थिति में वे मन से भी पवित्र रहें। उनके मन में मानव कल्याण की भवनाएं आए और वे अपना ही नही, सम्पूर्ण विश्व का कल्याण सोचे । अगर मन की पवित्रता नहीं होगी, तो लोग बदले की भावना से संक्रमित व्यक्ति को लोगों के बीच में भेज कर स्थिति को अनियंत्रित कर देंगे । इसलिए मन की पवित्रता अत्यंत आवश्यक है ।

पिछले एक महीने से पूरे विश्व में कोरेना वायरस को लेकर हाहाकार मचा हुआ है । मेडिकल साइंस में उल्लेखनीय सफलता हासिल कर चुके देशों ने इसे नजरंदाज किया। सोशल डिस्टेन्सिंग का पालन नहीं किया, जिसकी वजह से आज वहाँ ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है कि हर रोज हजारो लोगों की मौत हो रही है। जब तक वे सचेत होते, तब स्थिति उनके नियंत्रण से बाहर निकल गई थी। शेष लोगों को बचाने के सिवा उनके पास कोई चारा नहीं था। इसके बाद सोशल डिस्टेन्सिंग को कड़ाई से पालन कर और लोगों को संक्रमित करने से वे बचाने में सफल हो रहे है। इस प्रकार का विचार – भाव आना भी एक प्रकार से मानसिक विकार ही है, इस कारण ऐसे समय में स्वस्थ मन का होना जरूरी है। जिन देशों में कोरेना ने तबाही मचा रखी है, अगर वे पहले से सावधान हो जाते, तो आज यह दिन न देखने पड़ते । इस लिए मन की शुद्धि अत्यंत आवश्यक है । देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बात को समझा और जैसे ही उन्हें इसकी विकरालता का अनुभव हुआ, उन्होने बिना किसी पूर्व तैयारी के पूरे देश में लॉक डाउन लागू कर दिया । अपने राजधर्म का पालन किया । हालांकि उनके इस कदम की भी खूब आलोचना हुई। लेकिन जैसे जैसे आलोचकों को इस वायरस की भयंकरता मालूम हुई, उनकी आलोचना के स्वर धीमे पड़ गए ।

ऐसी परिस्थियों में मानव का हर दृष्टिकोण से सबल होना जरूरी है। धर्म ग्रन्थों में मानव की पाँच प्रकार की दुर्बलताओं का जिक्र है, अगर यह दुर्बलताएं रही, तो ऐसी संक्रमणकालीन स्थिति से नहीं निपटा नहीं जा सकता है । वे दुर्बलताएं इस प्रकार की हैं – जीव हिंसा, चोरी, काम, मिथ्याचार, नशीली वस्तुओं का सेवन करना । ऐसे समय में धर्म ग्रन्थों द्वारा प्रतिपादित इन दुर्बलताओं को अपने में न आने देना हर नागरिक का कर्तव्य होता है। मानव की यह कमजोरी होती है कि वह ईर्ष्या भाव से आपूरित होता है। और दूसरे के बारे में अनिष्टकारक विचार रखता है। जबकि हमारे धर्म ग्रन्थों में सभी सुखी हों, सभी नीरोगी हों, सभी कल्याण देखें और कोई भी दुख का भागीदार न बने । आज जिस संकट काल से देश और समस्त विश्व गुजर रहा है। उसमें ऐसे ही विचार की जरूरत है। अगर विश्व रहेगा तो ही हम भी रहेंगे और अगर हम रहेंगे, तभी विश्व की कल्पना हो सकती है। इसलिए सभी को इसी प्रकार की भावना रखना चाहिए । देश के प्रधानमंत्री और नरेंद्र मोदी और समस्त मुख्यमंत्री सबसे पहले इसी प्रकार के विचार भाव से आप्लावित हुए और उन्होने केवल अपने कार्यकर्ताओं, समर्थकों के लिए योजनाएँ नहीं लाये, बल्कि हर जरूरतमन्द, चाहे वह किसी भी दल या जाति धर्म का हो, सबके बारे में सोचा और सबकी मदद हो रही है। ऐसे समय में अगर कोई संगठन, सरकारें और व्यक्ति एक भी नागरिक के बारे में भी बुरा सोचता है, तो वह अहिंसक नहीं कहा जा सकता है। वह उद्दात्त विचार वाला नहीं कहा जा सकता है । इसी प्रकार की अन्य योजनाएँ जो सरकार ने लागू की, उसमें भी शेष दृबलताओं के दर्शन नहीं होते। साथ ही देश के नागरिकों में शेष दुर्बलताएं नहीं दिखाई देती । जिसके पास दो दिन के भोजन की व्यवस्था थी, उसने अपने कल पर विचार किए बगैर अपने पड़ोसी को भोजन कराया, संग्रह नहीं किया कि वह एक दिन और जीवित रहेगा। इसी प्रकार की भावना के कारण के कारण लोगों ने उन्मुक्त होकर प्रधानमंत्री और अन्य संस्थाओं को दान दिया । संग्रह की दुर्बलता किसी ने नहीं प्रदर्शित की । स्वयंसेवी संस्थाओं ने अपनी सामर्थ्य से बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। यह भी उनकी सबलता का प्रमाण है। मानवता का उदाहरण है ।

इतनी सावधानी बरतने के बाद भी रोज सुबह जब टीवी खोलो, समाचारपत्र पढ़ो, कोरेना संक्रमित व्यक्तियों के मरने और उनकी संख्या में इजाफा की ही खबरे सुनने और पढ़ने को मिलती हैं। भारत में लॉक डाउन का आज उन्नीसवाँ दिन है। लेकिन संक्रमित व्यक्तियों की संख्या में कमी नहीं आई है। रोज पिछले दिन से अधिक मरीज प्रकाश में आ जाते हैं। साथ ही हर दिन संक्रमित व्यक्तियों के मरने की संख्या में भी इजाफा हो रहा है। ऐसा नहीं है कि लोग ठीक नहीं हो रहे हैं। ठीक होने वाले संक्रमित व्यक्तियों की संख्या में भी रोज इजाफा हो रहा है। ऐसे हम भारत के हर एक नागरिक का यह कर्तव्य बन जाता है कि मानव और मानव के प्रति उसका जो कर्तव्य है, उसका वह पालन करें। केंद्र सरकार द्वारा जो निर्देश दिये जा रहे हैं, उसका पालन किया जाए। लॉक डाउन का स्वेच्छा और सख्ती से पालन किया जाए । सभी के बारे में सदचिंतन किया जाए। सभी के कल्याण और शीघ्र स्वस्थ होने की प्रार्थना की जाए। ऐसी आपातकालीन स्थिति में यही मानव का मानव के प्रति धर्म है। यही मानव का अपने राष्ट्र के प्रति धर्म है। यही मानव का अपने जगत कल्याण के प्रति धर्म है।

प्रोफेसर डॉ योगेन्द्र यादव

पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट

Similar News