युवा तुर्क के नाम से जनता में लोकप्रिय पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर का समूचा व्यक्तित्व और जीवन दर्शन सामाजिक जीवन के लिए हमेशा आदर्श प्रस्तुत करता रहेगा.सैद्धांतिक राजनीति और जीवन पर्यंत अपने उसूलों से समझौता न करने का आत्मबल समेटे चंद्रशेखर आजीवन देश की राजनीति में एक अलग ही पंक्ति निर्मित करते रहे.बलिया के ग्रामीण परिवेश से कांग्रेस के सामान्य कार्यकर्ता के रूप में शुरू हुआ राजनैतिक सफ़र भारत के लोकतांत्रित व्यवस्था के शीर्ष पद प्रधानमंत्री तक पहुँचने के बाद भी पूरे आभामंडल के साथ जीवन के अंतिम समय तक अपना कद और औरा बनाये रखने में पूरी तरह सफल भी रहे.देश के सबसे बड़े पंचायत संसद में लोकसभा का बार-बार का वह विहंगम दृश्य भला कौन भूल सकता है जिसमें प्रधानमंत्री रहते हुए अटल बिहारी वाजपेयी ने पूरी जिम्मेदारी और गंभीरता के साथ चंद्रशेखर को अपना राजनैतिक गुरु बताते हुए नही अघाते थे.सदन के गलिआरों में उनके पीछे आधे संसद सदस्यों का चलना बहुत कुछ बयाँ कर देता था.जब वे सदन में बोलने के लिए उठते थे,पूरा वातावरण शान्तमय एकाग्र हो जाता था.जिसकी बड़ी वजह जमीन से जुड़ी बात का देश की अर्थव्यवस्था से समकालीन अंतर्संबंधो के साथ उम्दा विश्लेषण करने की उनकी शैली थी
लम्बे राजनैतिक जीवन में उतार-चढाव से उनका नाता बना रहा.स्वतंत्र भारत में शायद ही कोई इतने बड़े कद का नेता रहा हो जिसने जीवन में इतने उथल-पुथल देखे हो और अंत तक संघर्षशील जिद ही थी कि जब जनता दल के बाद दलों में बिखराव हुआ तब भी समाजवादी जनता पार्टी का उन्होंने अंतिम समय तक विलय नही किया.संसदीय राजनीति में बलिया का प्रतिनिधित्व अपने दल से ही करते रहे.जबकि उनके पास अनेक विकल्प खुले हुए थे.अस्सी के दशक में आपातकाल के दौरान कांग्रेस में रहते हुए इंदिरा गांधी से टकराने की कूवत केवल चंद्रशेखर में ही दिखी.जिसका परिणाम देश के नौजवान तबके ने उन्हें ‘युवा तुर्क’ के नाम से पहचान के रूप में लोकप्रिय बनाया.पूरब का ऑक्सफ़ोर्ड के रूप में ख्यातिप्राप्त इलाहाबाद विश्वविद्यालय में बतौर छात्र नेता के रूप में उनका महत्व न केवल छात्रों-नौजवानों के बीच ही विशेष था बल्कि अकादमिक बहस में भी उनके विचारों का पूरा सम्मान होता था.वे छात्र संघ अध्यक्ष तो नही रहे लेकिन कई दशक के छात्र नेताओं के विचार और व्यक्तित्व निर्माण पर उनका प्रभाव बखूबी झलकता रहा.
चंदशेखर ने अपनी राजनैतिक यात्रा डॉ राममनोहर लोहिया के सान्निध्य में शुरू किया और आचार्य नरेंद्र देव से गहरे तक प्रभावित रहे.देश की आजादी के बाद सोशलिस्ट आन्दोलन में सक्रिय भागीदारी करते हुए प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से होते हुए आपातकाल के बाद जनता पार्टी के अध्यक्ष भी बने.कांग्रेस से राज्यसभा और लोकसभा सदस्य चुने जाने के बाद मुद्दों का विरोध जारी रखे.बैंकों के राष्ट्रीयकरण और प्रिवी पर्स की समाप्ति की सफलता का श्रेय उन्ही को जाता है.पूरे देश को जानने और समझने के क्रम में 1983 की ऐतिहासिक पदयात्रा ने उन्हें पूरे देश का नेता बना दिया।
चन्द्रशेखर का जितना योगदान और संघर्ष समाज के लिए था।उसकी तुलना में समाज ने उन्हें कम ही दिया।समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव उनके कद और प्रतिष्ठा का सम्मान करते हुए कभी भी उनके खिलाफ अपना उम्मीदवार नही लड़ाया।युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उनके विचार संस्कृति पर संवाद करने के लिए सार्वजनिक अवकाश करके उनके व्यक्तित्व का बखूबी सम्मान किया।
विगत कुछ वर्षो से चंद्रशेखर के जयंती और पुण्यतिथि अवसर पर आयोजनों की संख्या बढ़ी है।निसंदेह यह एक अच्छी परंपरा की शुरुआत है।लेकिन जिस तरह उन्हें एक जाति/समुदाय विशेष के नेता के तौर पर प्रचारित और स्थापित किया जा रहा है,वह उचित नही है।
चंद्रशेखर आजीवन गरीबों, मजलूमों सहित समाज के सभी वंचित तबके के लिए लड़ते रहे।वह सभी जाति -धर्म-सम्प्रदाय के नेता के रूप में जाने गए।यही वजह है कि यूपी की सत्ताधारी समाजवादी पार्टी चंदशेखर के समाजवादी पार्टी के सदस्य न रहने के बाद भी उनकी समाजवादी सोच का सम्मान करते हुए अपनी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व परंपरा में उन्हें बखूबी शामिल किये हुए है।
मणेंद्र मिश्रा 'मशाल' (मीडिया प्रभारी, मा. माता प्रसाद पाण्डेय,विधानसभा अध्यक्ष,उ. प्र.)
(पूर्व निजी सचिव- स्व.बृजभूषण तिवारी, सांसद/राष्ट्रीय उपाध्यक्ष,समाजवादी पार्टी)