रचनाकर्मियों के प्रोत्साहन की सार्थक पहल ‘यश भारती’

Update: 2016-03-21 04:29 GMT

1994 में अविभाजित उत्तर प्रदेश का नेतृत्व कर रहे तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने ‘यश भारती’ नाम से एक सम्मान की शुरुआत की थी. जिसके पीछे की सोच उस दौर में राजनीति और साहित्य के बहुत गहरे जुड़ाव की रिक्तता को कम करने की थी. संक्रमण के दौर से गुज़र रहे समकालीन समाज में धर्म एवं जाति को लेकर सामाजिक समरसता सहज नही थी. ऐसे में साहित्य,कला,संगीत,रंगकर्म जैसी तमाम विधाओं से जुड़े लोग या तो तत्कालीन राजनीति से दूर हो रहे थे या निष्क्रिय प्रतीत हो रहे थे. उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा सूबा था. यह मंडल-कमंडल को लेकर बड़ी राजनीति का केंद्र बना हुआ था. इस दौर में मुलायम सिंह यादव ने बेहद सूझ-बूझ भरा निर्णय लेकर समाज में मेल-जोल बढ़ाने वाले ताने-बाने पर बुनी गयी मधुशाला जैसी कालजयी रचना के सृजनकर्ता हरिवंश राय बच्चन को मुम्बई जाकर पहला यश भारती सम्मान से सम्मानित किया. इसी वर्ष उन्होंने अवधी के प्रसिद्द कवि जमुई खां ‘आज़ाद’,प्रतापगढ़ को भी विशेष सम्मान से सम्मानित किया.
साहित्य के प्रति अपने जुड़ाव और पड़ने वाले प्रभाव को लेकर मुलायम सिंह यादव ने यशभारती सम्मान के उद्घाटन समारोह में 1963 के साप्ताहिक पत्रिका रविवार में प्रकाशित लेख “युवाओं और छात्रों के बीच नयी चेतना को फैलाने का कार्य समाजवादी युवजन सभा द्वारा अद्वितीय तरीके से किया जा रहा था.जिससे युवा और प्रतिभाशाली लोग स्वाभाविक रूप से उसकी ओर जुड़ रहे थे.बहुत थोड़े ही समय में समाजवादी युवजन सभा दर्शन और वैचारिक उर्जा के केंद्र के रूप में फैल गयी.” का जिक्र किया और इसे ही स्वयं द्वारा रचनाकारों को व्यापक समर्थन एवं सहयोग देने का महत्वपूर्ण कारक बताया.इन कार्यों के साथ ही प्रदेश के विविध क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा और सामाजिक भूमिका से सूबे की गरिमा वृद्धि में संलग्न रचनाकारों को प्रति वर्ष यश भारती के अंतर्गत सम्मानित करने का कार्य होता रहा.2003 में पुनः तीसरी बार मुख्यमंत्री पद ग्रहण करने के बाद मुलायम सिंह यादव ने इस पुरस्कार को सरकार के लिए विशेष प्राथमिकता सूची में स्थान दिया. इसके अतिरिक्त विभिन्न माध्यमों से रचनाकारों को अनेक सार्थक उपायों से ना केवल आर्थिक सहायता सुनिश्चित करवाया बल्कि उनके सामाजिक सम्मान का भी विशेष कार्य करते रहे.
2010 में जब पूरे देश में लोहिया जन्मशताब्दी के आयोजन की बात सामने आयी तब सरकार में ना रहते हुए भी मस्तराम कपूर के संपादन में लोहिया समग्र पुस्तक के लिए सभी अपेक्षित सहयोग सहित सीमान्त लोहिया बृजभूषण तिवारी के सहसंयोजन में लोहिया आयोजन समिति के माध्यम से पूरे देश के कलमकारों को जोड़ने के लिए विशेष पहल किया. समाजवादी सरकार की साहित्यकारों के प्रति संवेदनशीलता का एक छोटा उदाहरण जनकवि अदम गोंडवी के असाध्य रोग होने पर मिला. 2011 दिसम्बर में इस अस्वस्थता की जानकारी मुलायम सिंह को होने पर तत्काल लखनऊ के पीजीआई हॉस्पिटल में गोंडवी के लिए विशेष सुविधाओं और पूरे इलाज की व्यवस्था करवाया. साथ ही खुद अदम को देखने भी गये.इतना ही नही उनके निधन पर उनके परिवार को वांछित सहायता देकर उनके पार्थिव शरीर की ससम्मान अंतिम विदाई प्रक्रिया करवाया.
चार वर्ष पहले यूपी में जनमत से चुनी गयी पूर्ण बहुमत की सरकार का नेतृत्व कर रहे युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी समाजवादी सरकार की प्राथमिकताओं में समाजकर्मियो/रचनाकर्मियों को विशेष महत्व दिया. लोहिया जयंती के अवसर पर 23 मार्च 2013 को लखनऊ के लोहिया पार्क में पिछली सरकार द्वारा बंद कर दिए गए यश भारती सम्मान को नेता जी मुलायम सिंह यादव एवं विधान सभा अध्यक्ष माता प्रसाद पाण्डेय की विशेष उपस्थिति में पुनः विशेष गरिमा से शुरू किया गया. साथ ही इस सम्मान की पुरस्कार राशि बढाकर 11 लाख रुपये कर दिया गया. इस अवसर पर 15 विभूतियों को सम्मानित किया गया.जिसके उपरांत गत वर्ष 5 मार्च 2014 को फिर से प्रदेश सरकार की 23 विभूतियों को इस प्रतिष्ठित सम्मान के अंतर्गत चेक,अंगवस्त्रम ,प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया। इसी के तहत आज 21 मार्च को 46 महानुभाओं को लोहिया पार्क में यश भारती से सम्मानित किया जा रहा है. इस पुरस्कार के साथ पचास हजार मासिक पेंशन का प्रावधान उन सभी संस्थाओं के लिये प्रेरणा हो सकती जो एक बार सम्मानित कर विभूतियों को भूल जाते हैं।
अखिलेश सरकार ने सूबे की बागडोर सँभालते ही साहित्य समाज को विशेष महत्व प्रदान करने की दिशा में हिंदी संस्थान को पुनः मजबूत किया. बतौर अध्यक्ष मुख्यमंत्री ने ख्यातिलब्ध कवि,साहित्यकार,सांसद उदय प्रताप सिंह को इसका कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर इसके विकास में सक्रिय पहल की. ठीक इसी तरह उर्दू अकादमी की जिम्मेदारी नामचीन शायर मुनव्वर राणा को देकर उर्दू अदब को हौसला अफ़जाई किया.इसी क्रम में
पदम् श्री गोपाल दास नीरज के अनुभव और गौरवशाली अतीत को देखते हुए उनके मार्गदर्शन का लाभ लेने के लिए भाषा संस्थान के अध्यक्ष पद की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी भी दी गयी. हाल ही में जिस तरह हिंदी संस्थान ने अनेक महत्वपूर्ण साहित्यकारों और रचनाकारों को उत्तर प्रदेश शासन के अंतर्गंत सम्मानित किया वह देश में अन्यत्र दुर्लभ ही है. इससे इतर संस्कृत संस्थान के माध्यम से भाषा विशेष के रचनाकारों को सम्मानित करने की पहल भी प्रसंशनीय है.
स्थापित भाषाओँ के इतर भोजपुरी भाषा की क्षमता वृद्धि और इससे जुड़े साहित्यकारों के लिए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भोजपुरी अकादमी की स्थापना के दिशा में सार्थक और ठोस कार्य भी शुरू कर दिया. प्रवासी भारतीयों की भारी तादात में भोजपुरी मूल के लोगों के महत्व और भोजपुरी साहित्यिक रुझान को देखते हुए इस अकादमी का मुख्यमंत्री को पदेन अध्यक्ष की व्यवस्था बनायी गयी है.इतना ही नही साहित्यिक समाज में प्रशासनिक अधिकारियों के रूचि में वृद्धि हेतु सरकार द्वारा सरकारी कर्मचारियों के चयनित पुस्तक पर दिए जाने वाले अमृत लाल नागर पुरस्कार की राशि को बढ़ाकर 51 हजार कर दिया गया.
सूर,कबीर,तुलसी जैसे कवि हजारी प्रसाद दिवेदी,मैथलीशरण गुप्त,जयशंकर प्रसाद जैसे साहित्यकार और निराला,महादेवी,अज्ञेय जैसे अन्यानेक महान रचनाकारों ने उत्तर प्रदेश की उर्वर भूमि पर जन्म लेकर यहाँ के चिंतनशील और रचनात्मक परंपरा में सतत श्री वृद्धि की है. ऐसे में जनता द्वारा चुनी गयी सरकार का अपने साहित्य साधना सहित विभिन्न विधाओं में रमे रचनाकारों को सम्मानित करने की यह पहल बेहद प्रासंगिक और दूरगामी महत्व वाली है. लोहिया को आदर्श मानने वाली सरकार का साहित्योमुखी और जनमुखी होना बेहतर समाज निर्माण की दिशा में सकारात्मक कदम है. वहीं यश भारती सम्मान की विशिष्टता सही मायने में समाज की रचनाधर्मिता के सभी ज्ञात क्षेत्रों से उसका जुड़ाव होना ही है. उत्तर प्रदेश की गरिमा वृद्धि में सहायक योग्य लोगों को सम्मानित करने की इस परम्परा को यूँ ही सशक्त और गतिशील बनाये रखने की विशेष आवश्यकता है.

मणेन्द्र मिश्रा ‘मशाल’

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