पठानकोट हमले के मास्टरमाइंड मसूद अजहर और उसके भाई को हिरासत में लेने, जैश के कुछ आतंकवादियों को गिरफ्तार करने तथा आतंकी संगठन के कई दफ्तरों को सील करने की पाकिस्तानी कार्रवाई से साफ है कि दबाव बनाने की भारत की रणनीति काम आई है। हमले की जांच को आगे बढ़ाने के लिए इस्लामाबाद ने अपने जांचकर्ताओं को भारत भेजने की जो बात कही है, उससे भी यह महसूस होता है कि इस मामले को उसकी निर्णायक परिणति तक पहुंचाने के अलावा नवाज सरकार के सामने ज्यादा विकल्प नहीं हैं। तब भी इतनी जल्दी किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सकता, क्योंकि मुंबई हमले के रणनीतिकार जकीउर रहमान लखवी को शुरुआती हीला-हवाली के बाद गिरफ्तार होते, फिर छूटते हमने देखा ही है। यह भी नहीं मान सकते कि इस बीच भारत के संबंध में पाक सेना के नजरिये में कोई बदलाव आया है। संभव है कि इस्लामाबाद में कल प्रस्तावित विदेश सचिवों की बैठक को सफलता से संपन्न होने देने का यह पाकिस्तानी पैंतरा हो, क्योंकि पठानकोट हमले का खाका बुनने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए उस पर सिर्फ भारत का नहीं, अंतरराष्ट्रीय दबाव भी है। केवल यही नहीं कि पठानकोट हमले से जुड़े सुबूतों की रोशनी में पाकिस्तान का मुकरना संभव नहीं है, यह भी कि बार-बार अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़कर वह अपना नुकसान ही करेगा। शुक्र है कि इस मुद्दे पर भारत का अब तक का रवैया भी बहुत परिपक्व रहा है। पाकिस्तान पर दबाव बनाने की रणनीति तो स्वाभाविक ही है, साथ ही, भारत ने विदेश सचिवों की वार्ता के बारे में अब तक सकारात्मक संदेश ही दिया है। इस संदर्भ में गृह मंत्री राजनाथ सिंह का बयान खास तौर पर ध्यान देने लायक है, जिसमें उन्होंने कहा कि पाकिस्तान पर फिलहाल अविश्वास करने का कोई कारण नहीं है, इसलिए भारत इंतजार करेगा। विदेश सचिवों की बातचीत तय समय पर होनी चाहिए, क्योंकि बातचीत रद्द करने से मसला हल नहीं होगा। यही नहीं, इस बातचीत को जारी रखकर हम पाकिस्तान के साथ-साथ पूरी दुनिया में यह संदेश भी दे सकेंगे कि भारत अपने पड़ोसी देश के साथ बेहतर रिश्तों का आग्रही है, इसलिए पठानकोट हमले के बावजूद वार्ता जारी रखने का जोखिम उठा रहा है। मसूद अजहर को हिरासत में लेने की पाकिस्तान की कार्रवाई अगर दिखावे के तौर पर है, तब भी फिलहाल भारत को इसे सकारात्मक ढंग से लेना चाहिए।