सूर्य देव को समर्पित छठ महापर्व

Update: 2021-11-10 09:45 GMT


डॉ प्रमोद कुमार शुक्ला

गोरखपुर

सूर्य इस त्योहार का केंद्र हैं। सूर्य जीव जगत के आधार हैं। सूर्य के बिना कोई भी भोग-उपभोग संभव नहीं है। सूर्य के बिना भारत की जैव विविधता,जीवन और स्वास्थ्य का मेल नहीं बन सकता।आधुनिक जीवन की मजबूरी में जब अक्षय ऊर्जा की बात होती है,तब लोगों की नजर सूर्य की ओर ही जाती है। मतलब किन्हीं अर्थों में सूर्य हमारे अतीत ही नहीं, भविष्य भी हैं।

ऐसे सूर्य की पूजा का व्रत छठ आधुनिक रूप से भी उपयोगी है।

हमारी सूर्य केंद्रित संस्कृति कहती है कि वही उगेगा,जो डूबेगा।अत: छठ में पहले डूबते और फिर अगले दिन उगते सूर्य की पूजा स्वाभाविक है।

छठ का एक संकल्प देखिए, हे सूर्य देव, आपने अन्न, सब्जियां, फल, फूल, जल, दूध दिए, आपने जो भी दिया, हम वे सब आपको अर्पित कर रहे हैं, आप हम पर आगे भी कृपा बनाए रखें। हे सूर्य, हमें सक्षम बनाना, अगली बार हम आएंगे ज्यादा सामग्री, तैयारी के साथ आपको अर्घ्य देने के लिए। एक और बड़ी बात, इस दिन घाट पर कोई भेद नहीं रहता, न जाति, न धर्म, न गरीब, न अमीर। सारे लोगों का लक्ष्य एक ही होता है। छठ सदियों से स्वच्छता-पवित्रता का संदेश देने वाला पर्व है।

सूर्य के प्रति आभार प्रदर्शन के लिए छठ या सूर्य षष्ठी व्रत मनाया जाता है, आभार प्रकट करते हुए हम प्रार्थना करते हैं ,हे सूर्य, शास्त्रों में बताए गए अनगिनत देवी-देवताओं को हमने नहीं देखा। उनकी कहानियां भर पढ़ी-सुनी हैं। उनमें से एक आप ही हैं, जो हमेशा हमारी आंखों के आगे हैं। उदय होकर भी और अस्त होकर भी। हमें आपका देवत्व स्वीकार करने के लिए किसी तर्क या प्रमाण की आवश्यकता नहीं है। हमारी यह शस्य-श्यामला पृथ्वी आप से ही जन्मी है। पृथ्वी पर जो भी जीवन है, उर्वरता है, हरीतिमा है, सौंदर्य है, वह आपकी देन हैं।

सूर्यदेव, आप न होते, तो न यह पृथ्वी संभव थी, न पृथ्वी का अपार सौंदर्य, न इसमें असंख्य रूपों में मौजूद जीवन और न इस जीवन के बहुरंगी रिश्ते। आपके उपकारों के बदले हम आपको क्या दे सकते हैं? आपको समर्पित छठ के चार दिनों में स्वयं को पवित्र कर आपके ही दिए कृषि उत्पादों, फल-फूल, अन्न-जल के साथ श्रद्धापूर्वक आपको अर्घ्य समर्पित करेंगे। हमारी असीम कृतज्ञता व प्रार्थना स्वीकार करें। हमें ऊर्जा दें, जीवन दें, स्वास्थ्य दें, जीवन को संचालित करने के लिए अन्न-जल दें, नदियां दें, सरोवर दें और जहां तक हमारी दृष्टि जाए, वहां तक हरीतिमा दें। हम सबको यह बुद्धि-बल-विवेक भी दें कि आपकी रची हुई पृथ्वी, प्रकृति और उसके पर्यावरण की न सिर्फ हम रक्षा कर सकें, बल्कि उन्हें अपनी आने वाली संतानों के लिए बेहतर बनाकर जाएं!

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