भारत में त्योहार केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं होते, बल्कि वे समाज और प्रकृति के साथ हमारे संबंधों को भी दर्शाते हैं। गंगा दशहरा एक ऐसा पर्व है जो धार्मिक श्रद्धा के साथ-साथ पर्यावरणीय चेतना से भी गहराई से जुड़ा हुआ है। यह पर्व गंगा नदी के पृथ्वी पर अवतरण की स्मृति में मनाया जाता है, पर यदि इसे आधुनिक संदर्भ में देखा जाए, तो यह जल और पर्यावरण संरक्षण का सशक्त संदेश देता है। भारत एक सांस्कृतिक और धार्मिक विविधताओं वाला देश है जहाँ हर त्योहार न केवल श्रद्धा का प्रतीक होता है, बल्कि उसके पीछे गहरी ऐतिहासिक, सामाजिक और पर्यावरणीय चेतना भी छुपी होती है।
ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को स्वर्ग से उतरकर सूर्यवंशी राजा भगीरथ के पुरखों का उद्धार करने के लिए गंगा देवाधिदेव शिव की जटाओं से होती हुई धराधाम में अवतरित हुईं। गंगा पृथ्वीवासियों को देवलोक का दिव्य प्रसाद है। स्कंद पुराण के अनुसार जिस दिन पृथ्वी पर गंगावतरण हुआ,उस दिन दस योग थे। ज्येष्ठ मास,शुक्ल पक्ष,दशमी तिथि,बुध का दिन,हस्त नक्षत्र,व्यतिपात,गर और आनंद योग और कन्या राशि मे चन्द्रमा तथा वृष राशि मे सूर्य। इसी कारण इस दिन किया गया गंगास्नान 'दशहरा' अर्थात दश पापों का हरण करने वाला माना जाता है। धरती पर अवतरण के बाद गंगा भारतीय जन मानस के मन-प्राण मे बस गयी। हम गंगा को माँ का दर्जा देते है। मान्यता है कि गंगा पतितपावनी है,उसके निर्मल जल से हमारे सारे पाप धुल जाते है। गंगा न सिर्फ जगत को पाप-ताप से मुक्ति देतीं है बल्कि लोगों की भूख-प्यास भी मिटाती है। गोमुख से गंगासागर तक गंगा देश की लगभग आधी आबादी की आजीविका गंगा पर निर्भर है। कृषि,पर्यटन,साहसिक खेलों,उद्योगों के विकास एवं पुरोहितों की रोजी-रोटी में गंगा की अहम भूमिका है।
देश को एक सूत्र में बांधने का श्रेय गंगा नदी को है। गंगा हमारे लिए पवित्र नदी है। गंगा सभी भारत वंशियों के लिए प्रेरक भी है और प्रेरणा भी। शहनाई के शहंशाह उस्ताद विस्मिल्लाह खां का वह प्रसंग सर्व विदित है कि जब उन्हें अमेरिका में बसने का प्रस्ताव दिया गया तो उनका जवाब था यहां गंगा को ले आओ तो मैं भी आ जाऊंगा यानी गंगा के बगैर समूचा वैभव व्यर्थ है।
एक बार अमेरिका में कुछ पत्रकारों ने स्वामी विवेकानंद से प्रश्न किया था- आपके देश में किस नदी का पानी सबसे अच्छा है? स्वामी जी मुस्कुरा कर बोले- यमुना! इस पर एक पत्रकार ने आश्चर्य जताते हुए कहा,पर आपके देश में तो गंगा नदी का पानी सबसे शुद्ध माना जाता है। इस पर स्वामी जी ने उत्तर दिया- कौन कहता है गंगा नदी है? वो तो हमारी मां हैं, जो जन्म देने वाली मां की तरह भारत भूमि के सभी जड़-चेतन प्राणियों एवं वृक्ष-वनस्पतियों का भरण पोषण करती हैं। यदि हम तार्किक दृष्टिकोण से देखें तो गंगा दशहरा एक ऐसा पर्व है, जो समाज को जल संरक्षण और स्वच्छता का संदेश भी देता है। गंगा जैसी नदी, जो करोड़ों लोगों के जीवन का आधार है, उसके प्रति श्रद्धा जताकर हम जल स्रोतों की महत्ता को स्वीकारते हैं। गंगा दशहरा हमें यह सोचने को प्रेरित करता है कि यदि हम धार्मिक भावनाओं से प्रेरित होकर गंगा की सफाई और संरक्षण के लिए कार्य करें, तो यह एक सतत विकास का मार्ग बन सकता है।इस दिन स्नान, दान, और व्रत का विशेष महत्व है, जिसे पापों से मुक्ति का मार्ग बताया गया है। किंतु तार्किक दृष्टिकोण से देखें तो यह आत्मनियंत्रण, संयम और सामाजिक सेवा के प्रतीक हैं – जो एक स्वस्थ और संतुलित समाज के लिए आवश्यक हैं। आज जब गंगा जैसी नदियाँ प्रदूषण की मार झेल रही हैं, तो गंगा दशहरा की सार्थकता और बढ़ जाती है। यह पर्व हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या गंगा केवल एक धार्मिक प्रतीक है या हमारे जीवन और अस्तित्व का आवश्यक आधार भी?
केवल पर्वों पर गंगा की पूजा करना पर्याप्त नहीं, बल्कि उसके संरक्षण के लिए निरंतर प्रयास करना भी हमारी जिम्मेदारी है।गंगा के प्रति स्वामी जी के यह श्रद्धा भरे उद्गार आज भी सनातन जीवन मूल्यों में आस्था रखने वाले हर भावनाशील भारतीय को अनुप्राणित करते हैं। गोस्वामी तुलसीदास जी ने मानस में कहा है धन्य देश सो जहँ सुरसरी अर्थात वह देश धन्य है, जहां श्री गंगा जी विद्यमान है। भारत भूमि का स्वाभिमान है माँ गंगा।भारतीय संस्कृति की प्राण है,भक्तो की मान है,ज्ञानियों के लिए ज्ञान का आधार है माँ गंगा। नि:संदेह गंगा हिंदू सभ्यता और संस्कृति की सबसे अनमोल धरोहर है। नदी नहीं, मां हैं गंगा, जो हमें राष्ट्रीय एकता के सूत्र में पिरोती हैं। लोक आस्था के अनुसार जीवन में एक बार भी गंगा में स्नान न कर पाना जीवन की अपूर्णता का द्योतक माना जाता है। मगर बहुआयामी उपयोगिता व गहन धार्मिक आस्था के बावजूद हम मनुष्यों के पापपूर्ण कृत्यों के चलते मां गंगा प्रदूषण की मार से बुरी तरह कराह रही है।
मां गंगा हम भारतीयों को राष्ट्रीय एकता के सूत्र में पिरोती हैं। लाखों भारतीयों का पेट भरती हैं। आर्य-अनार्य, वैष्णव-शैव, साहित्यकार-वैज्ञानिक सभी ने एकस्वर में इसके महत्व को स्वीकार किया है। आइए हम सब मां गंगा की शुद्धि व सुरक्षा के लिए संकल्पबद्ध होकर पूरे मन से प्रयास करें, तभी इस देवनदी का अवतरण दिवस मनाना सार्थक होगा।
राजेन्द्र वैश्य, अध्यक्ष, पृथ्वी संरक्षण