सत्ता की मलाई : छोटे बड़े नेताओं ने जीभ लप्लपाई

Update: 2020-07-28 14:39 GMT


21 वीं सदी आते आते राजनीति का स्वरूप पूरी तरह बदल गया है। अब राष्ट्र सेवा और जन सेवा के लिए कोई भी राजनीति में नही आता। पिछले दिनों कई राज्यों में जो घटनाक्रम हुए, उसकी जो परिणीति हुई, उससे तो यही कहा जा सकता है । यही नही, जिस दल के प्रत्याशी बन वे चुनाव लड़े, जीते और माननीय कहलाये । उसके प्रति भी उनकी कोई निष्ठा नही होती । सिद्धांत और राजनीतिक दर्शन तो बड़ी दूर की बात है । पिछले दिनों कई प्रदेश के जो नेता इधर से उधर गए । अगर हम उनके द्वारा दिये गए भाषणों को सुन कर ऐसा प्रतीत होता है कि यह नेता तो बड़ा ही सिद्धांतवादी है। इसकी पार्टी का दर्शन इसके रोम रोम में बसा हुआ है। लेकिन सत्ता की मलाई की लालच में वह एक क्षण में ही दूसरे दल में शामिल हो जाता है और उसके गुणगान करने लगता है। सत्ता की मलाई का असर इन दिनों इतना असर देखा जा रहा है कि सत्ता की सरकारें गिरा दी जा रही है। या सत्ता के प्रभाव में दूसरे दल के विधायक अपना दल छोड़ तीसरे के साथ जाने में कोई गुरेज नही कर रहे है।

सबसे पहले हम मध्यप्रदेश की राजनीतिक घटना को ले लेते हैं । वहां कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार चल रही थी। और उसका सपोर्ट सपा, बसपा और कुछ निर्दलीय के विधायक भी कर रहे थे । मध्यप्रदेश में दो गुट माने जाते रहे हैं । और इन दोनों गुटों में टिकट बंटवारे से लेकर सरकार बनने पर सत्ता में अपने अधिक से अधिक मंत्री और उन्हें मलाईदार मंत्रिमंडल मिले, इसे लेकर सिंधिया और कमलनाथ गुट में रस्साकस्सी चलती रहती थी। चाहे कमलनाथ हों, या ज्योतिरादित्य सिंधिया, दोनो की केंद्रीय नेतृत्व में धमक थी। इसी कारण ऐसे मसलों पर निर्णायक भूमिका राहुल गांधी और सोनिया गांधी के दरबार मे ही होता था। जब तक कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व सबल था, तब तक ऊपर से जो निर्णय होता था, उसे दोनों नेता मान लेते। इस बार भी जब सरकार बनी, तब भी मंत्रिमंडल में अपने अपने समर्थक विधायकों को मंत्रिमंडल में शामिल कराने की दोनो के बीच रस्साकशी हुई, पर कमलनाथ भारी पड़े। मुख्यमंत्री के साथ अपने समर्थक विधायकों को उन्होंने मलाईदार पद दिए । इसकी वजह से ज्योतिरादित्य सिंधिया नाराज हो गए। हालांकि सरकार चलती रही। लेकिन उनकी नाराजगी को भारतीय जनता पार्टी भांप गई। मध्य प्रदेश की सत्ता पर पुनः काबिज होने के उसे सपने दिखाई देने लगे। पहले उन्होंने ज्योतिरादित्य सिंधिया पर टेस्ट किये। जब वे टेस्ट में पास हो गए। तब सिंधिया को भाजपा में शामिल कराने और उनके समर्थक विधायकों को लाकर सरकार बनाने की गोपनीय रणनीति बनाई गई । इसके बाद क्या हुआ ? मीडिया पर सभी ने देखा। किस तरह से ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थक विधायको द्वारा भाजपा की सदस्यता ग्रहण करने के कारण कांग्रेस सरकार अल्पमत में आई । इस कारण उसे सत्ता से हटना पड़ा और शिवराज सिंह के नेतृत्व में एक बार फिर भाजपा को सरकार मध्यप्रदेश में बन गई । कहने वाले तो यह भी कहने लगे कि अपनी अकूत संपत्ति बचाने के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण की। लेकिन जैसी की चर्चा थी भाजपा प्रत्याशी के रूप में ज्योतिरादित्य सिंधिया मध्यप्रदेश कोटे से राज्यसभा सदस्य चुने गए और सरकार में लगभग आधी भागीदारी भी उनके विधायकों को मिली ।

इस राजनीतिक घटनाक्रम को महीने भर भी नही बीते कि राजस्थान की मजबूत सरकार को भी तोड़ने की कोशिश शुरू हो गई। कांग्रेस के उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के3 माध्यम से राजस्थान की कांग्रेस सरकार गिराने का खेल शुरू हुआ। हालांकि भाजपा प्रत्यक्ष रूप से इस खेल में शामिल नही है। लेकिन सचिन पायलट को वह परोक्ष रूप से सहयोग कर रही है, ऐसा प्रतीत होता है । उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट द्वारा अपने समर्थक विधायकों के साथ बगावत कर देने के बाद मुख्यमंत्री गहलौत अपनी सरकार को बचाने में लगे हुए हैं । उन्होंने अपने सहयोगी बसपा के विधायकों को अपनी पार्टी में शामिल कर लिया । बसपा के ये सभी विधायक राष्ट्र सेवा या जन सेवा के लिए तो आये नही है। मंत्री बन कर सत्ता की मलाई खाने को मिले, इसलिए इन लोगों ने मायावती से बगावत करके विधिवत कांग्रेस में शामिल हो गए हैं । हालांकि बसपा सुप्रीमो मायावती के निर्देश पर उनके इस निर्णय के खिलाफ याचिका दाखिल की गई, जिस पर आज ही सुनवाई होनी है । इसी तरह का वाकया मध्यप्रदेश में भी हुआ था। जब सपा और बसपा के विधायक भाजपा में शामिल हो गए थे। भाजपा की केंद्र में सरकार होने की वजह से कोई हो हल्ला नही हुआ।

सत्ता की मलाई का प्रभाव सबसे अधिक प्रभाव छोटे दलों पर पड़ रहा है । हर क्षेत्रीय दल की इच्छा होती है कि उसके संगठन का अन्य प्रदेशों में भी विस्तार हो। और उसके उम्मीदवार जीतें, और सत्ता में उसकी भी भागीदारी हो। और इस प्रकार धीरे धीरे प्रगति व विस्तार कर दूसरे प्रदेशों में भी वह सरकार बना सके । लेकिन सत्ता की मलाई खाने के चक्कर मे एक दो विधायक, जो बड़े प्रयास और मेहनत के बाद बनते हैं । दूसरे दल लालच और मंत्री बनने के चक्कर मे बिना अपन

आलाकमान की अनुमति के ही खुद का दूसरे दलों में विलय कर लेते हैं । मध्य प्रदेश में भी यही देखने की मिला । सपा और बसपा दोनों के विधायक सत्ता की मलाई खाने के कारण भाजपा में शामिल हो गए । यही हाल राजस्थानमें भी हुआ। बसपा के सभी विधायक सत्ता की मलाई खाने के चक्कर मे कांग्रेस में खुद का विलय कर लिए। और लखनऊ और नई दिल्ली में बैठे बसपा सुप्रीमों और अन्य दिग्गज नेता हाथ मलते रह गए। और अपने विधायकों को फिर से पार्टी में लाने के लिए हाई कोर्ट की शरण लेनी पड़ी ।

देश के नागरिकों को सबसे बड़ी चिंता इस बात की है कि अगर इसी तरह मलाई के चक्कर मे दल बदल करते रहेंगे। तो फिर लोकतंत्र तो मजाक वन कर राह जाएगा । इसलिए देश की जनता के साथ इस देश की विधायी संस्थाओं को भी इस दिशा में चिंतन करके कोई न कोई निर्णय लेना पड़ेगा। वरना चुनाव कोई भी जीते, सत्ता की मलाई खाने और सूद समेत अपना चुनावी खर्च निकालने के चक्कर मे लोकतंत्र का उपहास उड़ाते रहेंगे ।

प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव

पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट

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