विगत चार-पाँच वर्षों से यह देखने को मिल रहा है कि क्षेत्रीय दल संगठनों के मकड़जाल में बुरी तरह उलझे हुए हैं । समर्थन के नाम पर ये संगठन क्षेत्रीय दलों पर एक तरह से कब्जा जमाये हुए हैं । इन संगठनों के पदाधिकारियों ने क्षेत्रीय दलों के नेताओं को अपनी लच्छेदार बातों से ऐसा सम्मोहित कर लिया है कि उनके इशारे पर ही क्षेत्रीय दलों की सारी राजनीतिक गतिविधियां संचालित होती प्रतीत होती हैं । इस कारण क्षेत्रीय दलों की राजनीतिक दखल में कमी आई। संगठनों के प्रमुखों के निर्देशों के अनुरूप ही इन क्षेत्रीय दलों के कार्य-कलाप होने लगे । इन सगठनों की निष्ठा क्षेत्रीय दल के साथ न होने कारण और उसके सदस्यों का विभिन्न राजनीतिक दलों के साथ संबंध होने के कारण उनकी निष्ठा के केंद्र ये क्षेत्रीय दल कभी नहीं बन पाते हैं । इनके सदस्यों की यही कोशिश रहती है कि यह क्षेत्रीय दल उस दल को समर्थन करे, जिसमें उनकी निष्ठा है । इसके लिए वे क्षेत्रीय दल के प्रमुख के सामने तमाम दलील प्रस्तुत करते हैं। क्योंकि इन सगठनों की सोच छोटी होती है, वे हर हाल में सत्ता के करीब रह कर आर्थिक और राजनीतिक लाभ लेना चाहते हैं ।
इतना ही नहीं, अभी कुछ संगठन ऐसे भी देखने को मिले। जो अपनी शुरुआत तो सामाजिक संगठन के नाम पर करना चाहते हैं, लेकिन आगे चल कर जब उनके संगठन का विस्तार हो जाए, तब वह उसे राजनीतिक दल के रूप में परिवर्तित कर देंगे । इस संबंध में ऐसे सामाजिक संगठनों के संस्थापक सदस्यों में एक गोपनीय मंत्रणा होती रहती है। उनका समाजसेवा का उद्देश्य नहीं होता है। उनका उद्देश्य तो संगठन के विस्तार से अपनी राजनीतिक लिप्सा पूरा करना होता है ।
इसका जीता – जागता उदाहरण प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के गठन और उसके प्रारम्भिक काल में देखने को मिला । अगर मैं उसके मूल में जाता हूँ, तो ऐसे तमाम सामाजिक संगठन मुझे दिखाई देते हैं, जो हर दिन शिवपाल सिंह यादव के सामने ऐसा प्रदर्शन करते रहे, जैसे उनके समर्थन के बाद प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया को जन समर्थन मिल जाएगा, और वह आने वाले चुनाव में सत्ता पर काबिज हो जाएगी। इसी कारण प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया की स्थापना के बाद आए दिन कोई न कोई संगठन उन्हें अपना समर्थन देता दिखाई दिया । प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवपाल सिंह से बातचीत हुई । इन संगठनो के पदाधिकारियों ने खुद का ऐसा महिमामंडन किया, जैसे प्रसपा के साथ उनके जुडने से पार्टी बहुत मजबूत और जनाधार वाली हो जाएगी। इस प्रकार कुछ दिन में शताधिक संगठनों ने शिवपाल सिंह को अपना समर्थन दे दिया। शिवपाल सिंह यादव को इन समस्त संगठनों और प्रसपा का संयोजक चुन लिया गया। उनके ही कहने पर 2017 में शिवपाल सिंह यादव ने टिकट भी बांटे और परिणाम जब आया, तो शिवपाल सिंह यादव के अलावा प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया का कहीं खाता नहीं खुला ।
शिवपाल सिंह यादव की प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ मधुर संबंध और भाजपा के प्रति सकारात्मक सोच होने के कारण ये सभी संगठन विगत विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद भी प्रसपा और उसके नेता से जुड़े रहे। उन्हें लगा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से शिवपाल सिंह की नजदीकी और भाजपा के प्रति उनके सकारात्मक रूख से उन्हें भाजपा सरकार में शामिल कराया जा सकता है और अगर वे सरकार में शामिल हो गए, तो इसके बाद फिर सरकारी प्रभुत्व का पूरा आनंद उठाया जा सकता है । इसी कारण ऐसे संगठनों के नेताओं द्वारा दो शिगूफ़े छोड़े गए – पहला – प्रसपा के कारण ही समाजवादी पार्टी के अधिकांश प्रत्याशी हार गए । दूसरा – प्रसपा के कारण ही भाजपा को जीत मिली है। इस कारण शिवपाल सिंह को भाजपा सरकार में शामिल हो जाना चाहिए । इसके लिए वे शिवपाल सिंह को समझाने के साथ-साथ दबाव भी बनाने लगे । इस दौरान शिवपाल सिंह को कई बार मीडिया के सामने स्पष्टीकरण देना पड़ा । लेकिन इन संगठनों के नेता निराश नहीं हुए। वे लगातार प्रयास करते रहे। जब दाल गलती नहीं दिखी । शिवपाल सिंह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बीच रिश्ते सामान्य हो गए, तब इन संगठनों के प्रमुखों ने एक दूरी बनानी शुरू की । 30 दिन प्रसपा कार्यालय पर डेरा डालने वाले इन संगठनों के प्रमुखों का आना-जाना कम होते-होते बंद सा हो गया। अब वे तभी प्रकट होते, जब किसी समस्या के समाधान से किसी मंत्री या अधिकारी को शिवपाल सिंह से फोन कराना होता । इधर कोरेना महामारी भी एक बहाना बन गई। कोरेना और लॉक डाउन के दौरान शिवपाल सिंह को भी आत्मचिंतन करने का मौका मिला । इसी बीच प्रदूषण रहित समाजवादी राजनीति होने की वजह से शिवपाल और अखिलेश यादव के बीच जो मिस-अंडरस्टैंडिंग थी, वह भी दूर हो गई। शिवपाल सिंह और अखिलेश की हुई एक दो बैठकों में मन का मैल धूल गया। सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई । और समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की तरह से भी कई बार मीडिया में बयान दिये गए कि परिवार और पार्टी में सब कुछ ठीक है। जो मिसअंडरस्टैंडिंग थी, वह दूर कर ली गई है। आगामी विधानसभा में सपा प्रसपा के साथ सीटों का तालमेल बैठा कर चुनाव लड़ेगी । इस बयान के बाद प्रसपा प्रमुख शिवपाल सिंह यादव से जुड़े और समर्थन पत्र देने वाले संगठनो को यह आभास हो गया कि अब उनकी दाल नहीं गलने वाली है ।
इन सभी राजनीतिक दलों के प्रमुख जब इन क्षेत्रीय दलों के नेताओं से मिलते हैं, तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक का उदाहरण देते हैं। वे कहते हैं कि जिस तरह से राष्ट्रीय स्वयंसेवक भाजपा को मजबूत करने के लिए काम कर रहा है, वैसे ही वे भी उन्हें जनता के बीच में लोकप्रिय बनाने के लिए काम करेंगे । क्षेत्रीय दलों के नेताओं को भी उनकी यह बात अच्छी लगती है, और वे उनके झांसे में आ जाते हैं। जबकि वह यह नहीं जानते हैं कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक की एक विचारधारा है। उनके पास पर हर सुख-दुख सह कर काम करने स्वयंसेवी लोगों का एक समूह है। जो खुद ही त्याग और संयम का रास्ता चुनते हैं और हर कष्ट सह कर भाजपा के लिए काम करते हैं और कभी भी यह नहीं कहते कि वे भाजपा के लिए काम कर रहे हैं। और भाजपा भी ऐसे कार्यकर्ताओं की स्वप्रेरित होकर मदद करती है।
इसी तरह का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए कई संगठनो का उद्भव और विकास हो रहा है । ये सभी सामाजिक संगठन के रूप में रजिस्टर्ड हैं । पूरे प्रदेश में ही नहीं, देश में इंहोने अपने संगठन का विस्तार कर रखा है । जिन्हें अपना पदाधिकारी बनाया है, वे भी विचार के रूप में या सक्रिय रूप मे समाजवादी पार्टी या प्रसपा से ही जुड़े हुए हैं । कहने को ये सभी संगठन भी सपा और प्रसपा का ही प्रचार करते हैं । ऐसे संगठनों ने अपने बैनर पोस्टरों पर मुलायम सिंह यादव, शिवपाल सिंह यादव और अखिलेश यादव की बाकायदा फोटो भी लगा रखी है ।
ऐसे संगठनों की भी अपनी कहानी है। दरअसल इन संगठनों के सभी पदाधिकारी इन दोनों दलों के ही कार्यकर्ता हैं। जिन्हें संगठन में पद नहीं मिला या जिन लोगों के मन में यह विचार पनपा कि इस संगठन के माध्यम से अपनी पहचान बनाएँगे, चुनाव में इनकी मदद करेंगे और जब सरकार बनेगी, तो सरकार में 350 से अधिक लाल बत्तियाँ जो बाँटी जाती हैं, उसमें से दो या दो से अधिक लाल बत्तियों वाले पदों पर काबिज होंगे । इस तरह से उनका सामाजिक रुतबा भी बढ़ेगा और सत्ता सुख भी उन्हें नसीब होगा ।
इन संगठनों की पूरी हकीकत मालूम होने के बाद शिवपाल सिंह यादव ने भी दो टूक निर्णय लिया और मीडिया को एक पत्र जारी कर कहा कि किसी संगठन से जुड़ा व्यक्ति पार्टी के किसी पद पर नहीं रखा जाएगा । साथ ही उन्होने यह भी कहा कि अगर वह किसी संगठन से जुड़ा हुआ है, तो उसका पद ही नहीं, उसकी सदस्यता भी स्वत: समाप्त मानी जाएगी। क्योंकि शिवपाल सिंह को इस बात की पुख्ता और प्रामाणिक जानकारी मिल गई थी कि इन संगठनों और उसके पदाधिकारियों ने पार्टी हित में कोई काम नहीं किया। पार्टी से लाभ प्राप्त कर अपने संगठन को मजबूत करते रहे और अपने स्वार्थ की सिद्धि करते रहे ।
इसके पूर्व प्रसपा प्रमुख ने इलेक्ट्रानिक्स मीडिया पर पार्टी का पक्ष प्रस्तुत करने के लिए जो पैनल बनाई थी, उसको भी भंग कर दिया और लिखित रूप में इसकी सूचना सभी इलेक्ट्रानिक्स हाउसों को पहुंचा दी गई। इसका एक प्रमुख कारण यह माना जाता है कि वे सपा और प्रसपा के बीच हो रही नजदीकियों पर अपने पार्टी के प्रवक्ता का कोई ऐसा बयान नहीं चाहते थे, जिससे उनके मधुर होते सम्बन्धों में किसी प्रकार की फिर गलतफहमी पैदा हो । साथ ही इसमें कुछ ऐसे प्रवक्ता थे, जिनकों पार्टी और उसकी विचारधारा से कोई लेना-देना नहीं था। वे मीडिया पर खुद का महिमामंडन करते हुए देखे जा सकते थे ।
प्रसपा प्रमुख शिवपाल सिंह यादव ने संगठनों से दूरी बनाने का जो निर्णय लिया है, वह इतना आसान नहीं था। इन संगठनों के तमाम नेताओं के साथ उनके मधुर संबंध बन गए थे। कितने संगठन प्रमुखों के साथ उनकी निरंतर बातचीत भी होती रहती है। कई संगठनों ने तो उनके लिए कई कार्यक्रमों का आयोजन भी कराया । इस सबसे ऊपर उठना और इनसे दूरी बनाने का निर्णय लेना निश्चित रूप से एक बड़ा निर्णय कहा जा सकता है ।
जिस कदम की शुरुआत प्रसपा प्रमुख शिवपाल सिंह ने की है। उसके दूरगामी परिणाम होने वाले हैं । आने वाले दिनों में ऐसे सभी क्षेत्रीय दल, जो सामाजिक संगठनों के मकड़जाल में बुरी तरह उलझे हुए हैं, उससे निकलने का प्रयास करेंगे । सोशल मीडिया पर ऐसे जो संगठन सक्रिय हैं, जो शिवपाल सिंह, अखिलेश और मुलायम सिंह की फोटो लगा कर अपने को प्रचारित कर रहे हैं, उनकी अहमियत कम होगी। सपा और प्रसपा कार्यालयों में ऐसे संगठनों के पदाधिकारियों को सम्मान तो दिया जाएगा। लेकिन उनसे किसी तरह का सौदा नहीं किया जाएगा । इस प्रकार एक बार फिर सामाजिक संगठन और राजनीतिक दल अलग – अलग अपने अपने तरीके से समाज और राष्ट्रसेवा करेंगे । इनकी नजदीकियों की वजह से एक स्वार्थपूर्ति और समाजदोहन की प्रवृत्ति बन रही थी, उस पर विराम लगेगा । राजनीतिक दल राजनीति के माध्यम से और सामाजिक संगठन अपने मिशन और विजन के माध्यम से समाजसेवा करेंगे ।
प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव
पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट