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भाषाविद् डॉ.योगेन्द्र व्यास ने बीमारी से तंग आकर की आत्महत्या, अपने पत्र में आत्महत्या न मानने की किया आग्रह

भाषाविद् डॉ.योगेन्द्र व्यास ने बीमारी से तंग आकर की आत्महत्या, अपने पत्र में आत्महत्या न मानने की किया आग्रह
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ओमप्रकाश यादव।

अहमदाबाद गुजरात। प्रसिद्ध भाषाविद् योगेन्द्र व्यास ने बीमारी से तंग आकर आत्महत्या कर लिया है। व्यास किडनी की बीमारी और उनकी पत्नी कैंसर की बीमारी से परेशान थे। लगभग 27 पुस्तक लिखने वाले डॉक्टर व्यास ने मृत्यु से पहले अपनी लिखी हुई चिट्ठी में कहा है कि पृथ्वी पर अपनी सभी भूमिका जिम्मेदारी पूर्वक निभाया है। अब इस धरती पर अनावश्यक भीड़ करने की जरूरत नहीं है जब योग - प्राणायाम और दवा के बाद भी शरीर साथ नहीं दे रहा। उनके इस कृत्य को आत्महत्या न माना जाए।अब समय आ गया है कि उनके जैसे मरीजों के लिए युथेनेशिया (इच्छा मृत्यु) के अधिकार पर चर्चा होनी चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति को सम्मान पूर्वक जीवन जीने और उसका अंत करने का अधिकार है। महाभारत काल से ही इच्छा मृत्यु की घटना भारत से जुड़ी हुई है जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण भीष्म पितामह है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार माणेकबाग में अपने पुत्र के साथ रहने वाले डॉक्टर व्यास ने अपनी पत्नी के साथ सेटेलाइट एरिया में स्थित अपने मकान में फांसी लगा कर आत्महत्या कर लिया। वर्ष 1940 में जन्मे व्यास गुजरात के विविध कॉलेजों में प्राध्यापक, प्रिन्सिपल, गुजरात विश्वविद्यालय में भाषाभवन रीडर के पद को सुशोभित कर चुके थे। इसके अलावा उन्होंने भाषा संस्थान में केन्द्र सरकार के सलाह कार के रुप में, अमरीका की संस्था में सलाह कार के रुप में और और विदेशी छात्रों को गुजराती भाषा भी सिखाया है। उनकी लिखी पांच पुस्तकों को श्रेष्ठ पुस्तक के रुप में गुजरात साहित्य अकादमी से पुरस्कार भी मिला है।

डॉक्टर व्यास ने अपनी पत्नी के साथ जीवन का अन्त करने से पहले एक पत्र लिखा था जिसमें उन्होंने स्पष्ट रुप से लिखा है कि वे बीमारी से तंग आ चुके हैं दवा और योग के बाद भी परिस्थिति में कोई सुधार नहीं हो रहा। उनके इस कार्य के लिए कोई जिम्मेदार नहीं है। वे पारिवारिक, सामाजिक और आर्थिक रुप से पूरी तरह समृद्ध है। उनकी संतान भी सद्गुणी और संस्कारी है। पौष्टिक आहार, अच्छी नींद, प्रतिदिन तीन किलोमीटर चलना इसके बावजूद पति -पत्नी बीपी, प्रोस्टेस्ट, दमा, बहरा पन, आँखों से कम दिखना और पाव में लगी प्लेट असह्य पीड़ा देती है। यह सारी बीमारियां एक्सपायरी डेट का अनुभव करा रही हैं। सारी जिम्मेदारीयों का इमानदारी पूर्वक वहन करने के बाद अब पेन्शन लेना देश पर बोझ के समान है। इसी लिए 80 वर्ष पूरा होने पर 20 प्रतिशत बढी हुई पेन्शन को लेने से इंकार कर दिया था। अब भी परिवार और समाज के साथ लगे रहना अशोभनीय है। जीवन का सारा सुख भोगने का अवसर मिला। हमारा पुत्र, पुत्रबधु या पौत्री ने कभी हमें हमारे कार्य में हस्तक्षेप नहीं किया। उनके मृत्युपरान्त शोक सभा या अन्य कोई कर्मकांड करने की ज़रुरत नहीं है। देहदान संभव न हो तो इलैक्ट्रिक भट्ठी में भी शरीर समर्पित किया जा सकता है। पांडवों ने हिमालय में और श्रीराम ने सरयू नदी में स्वयं को समर्पित कर दिया था।

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