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उत्तर प्रदेश

वोटर्स मतदान केंद्र तक क्यों नहीं पहुंचे, 5 कारण

वोटर्स मतदान केंद्र तक क्यों नहीं पहुंचे, 5 कारण
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1. प्रचंड गर्मी

एक तरफ जहां कम मतदान ने राजनीतिक दलों के साथ निर्वाचन आयोग की चिंता बढ़ा दी है. वहीं दूसरी तरफ विशेषज्ञ प्रचंड गर्मी को मतदान प्रतिशत कम होने का एक कारण मान रहे है. दरअसल देश में अप्रैल की शुरुआत से ही कई राज्यों में लोगों को भीषण गर्मी का सामना करना पड़ रहा था. इस महीने की शुरुआत से ही उत्तर पश्चिम और दक्षिण भारत के कई इलाकों में लू की स्थिति बनी हुई थी. विशेषज्ञ ने तो चुनाव से पहले ही कई बार चेतावनी दे दी थी कि इस साल की गर्मी दुनिया भर में अब तक की सबसे गर्म होने वाली है.

वहीं मतदान केन्द्रों पर शेड, पेयजल आदि का पर्याप्त इंतजाम भी नहीं किया गया था. जिसके कारण मतदाता बूथ तक पहुंचने के लिए घरों से नहीं निकले. वोटिंग के दिन की बात करें तो शुक्रवार यानी 19 अप्रैल को छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल के कई इलाकों में पारा 42°C पार रहा था.

जागरूकता का अभाव

बिहार झारखंड छत्तीसगढ़ जैसे कई राज्यों में जागरूकता का अभाव भी कम वोटिंग का एक कारण बना. दरअसल कई गांवों में मतदान केंद्र की दूरी इतनी ज्यादा थी कि ज्यादातर वोटर्स को या तो सही केंद्र के बारे में जानकारी नहीं थी या दूरी के कारण उन्होंने मतदान नहीं करने का फैसला लिया.

मुद्दों का अभाव

इस चुनाव से पहले बार बालाकोट जैसा ऑपरेशन नहीं हुआ जिसकी वजह लोगों के मन में राष्ट्रवाद जैसी लहर नहीं है. इसे ऐसे समझें कि 2019 लोकसभा चुनाव से ठीक पहले पुलवामा अटैक हुआ, जिसके जवाब में हमारे देश के जवानों ने पाकिस्तान के बालाकोट में एयर स्ट्राइक किया था. इस एयर स्ट्राइक ने देश की जनता के मन में राष्ट्रवाद की भावना जगाई और ज्यादा से ज्यादा लोगों वोटिंग करने मतदान केंद्रों पर पहुंचे.

नेताओं की बातों से ऊबे लोग

जामिया मिल्लिया इस्लामिया के सामाजिक-राजनीतिक रिसर्चर पंकज चौरसिया ने कहा कि चुनाव एकतरफा होने के कारण भी मतदाताओं के अंदर इस चुनाव को लेकर उत्साह कम नजर आ रहा है. उन्होंने कहा कि देश का विपक्ष मजबूत नहीं है और जितने भी नेता मंच पर भाषण देने पहुंच रहे हैं वो धर्म, और एक दूसरे पर निशाना साधते ही नजर आ रहे है. प्रचार के दौरान रोजगार, फ्री बिजली-पानी के वादे तो किए जा रहे हैं लेकिन जनता इन वादों को पिछले कई चुनावों में सुन चुकी है.

ज्यादातर मतदाताओं को लग रहा है कि भारतीय जनता पार्टी ही एक बार फिर सत्ता में आने वाली है. इसके अलावा कोई मजबूत विकल्प नहीं है और जहां कम्पटीशन नहीं होता है तो लोगों में उत्साह अपने आप ही कम हो जाता है.

शादियों का मौसम

इन दिनों शादियों का सीजन चल रहा है जिसके कारण ज्यादातर लोग शादी की तैयारियों में व्यस्त हैं. इस व्यस्तता के कारण भी ज्यादातर लोग अपने अपने बूथों पर नहीं पहुंचे. इसके अलावा मजदूर तबके का पलायन भी मतदान प्रतिशत के कम होने का कारण माना जा रहा है.

क्या करेगा चुनाव आयोग

पिछले आम चुनाव से कम मतदान होने को लेकर चुनाव आयोग भी चिंतित है. यही कारण है कि वोटिंग के दूसरे फेज के लिए चुनाव आयोग ने मतदान बढ़ाने को लेकर कुछ नई रणनीतियों पर जोर दिया जा रहा है.

टीओआई की रिपोर्ट के अनुसार चुनाव आयोग से जुड़े एक सीनियर अधिकारी ने बताया कि हमने वोटिंग बढ़ाने के लिए कई सारी कोशिशें की थी लेकिन उनका बहुत हद तक नतीजा नहीं मिला. उन्होंने आगे कहा कि इलेक्शन कमीशन ने लोगों को मतदान के लिए प्रेरित करने के लेकर कई सारे प्लान बनाए थे. साथ ही अलग-अलग प्रोग्राम के जरिए लोगों को जागरूक किया गया था. यहां तक की जानी-मानी सेलिब्रिटी की ओर से अपील करवाई गई थी ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग अपने मत का इस्तेमाल कर सकें.

टीओआई की इसी रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से बताया गया कि चुनाव आयोग के अधिकारी फिलहाल उन कारणों पर विचार कर रहे हैं, जिनके चलते मतदान प्रतिशत नीचे आया है. इस शनिवार रविवार को इस मुद्दे को लेकर बैठक भी हुई और अलग-अलग कारणों पर चर्चा भी की गई.

सुस्त मतदान का असर किसपर पड़ता है

आम तौर पर अगर चुनाव के दौरान वोटिंग की संख्या बढ़ती है, तो इसका नुकसान सत्ताधारी पार्टी को माना जाता है, लेकिन वहीं अगर मतदान प्रतिशत कम होता है तो यह विपक्ष के लिए खतरे का सिग्नल माना जाता है.

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