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कराह रही है वसुंधरा

कराह रही है वसुंधरा
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कराह रही है वसुंधरा।

कर रही है वो पुकार।।

काटो नही पेडों को।

बन्द करो अत्याचार।।

होती है पीड़ा मुझे।

जब काटते हो मुझको।।

सहती हूं हर विपत्ति।

अनगिनत थपेड़ों को।।

हवाएं हो रही दूषित।

पर्यावरण जहरीला।।

नगण्य होती हरियाली।

भू भाग हो रहा रेतीला।।

मत करो मुझे दोहन।

जीना हो जाए दुश्वार।।

करो कुछ ऐसा काम।

स्वर्ग सा हो जाऊं तैयार।।

पेड़ पौधे ये नदियां।

ये सब मुफ़्त का उपहार।।

बचा कर इसे रखो।

करो ना इसका दुर्व्यवहार।।

अभय सिंह। ...............

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