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डलबराइन चाची

डलबराइन चाची
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डलबराइन चाची बड़ी ही ऊर्जावान महिला हैं । रुप रंग तो विधाता की देन है और कभी - कभी गलती - सही भगवान के कारखाने में भी हो ही जाती है । जैसे डलबराइन चाची के मामले में ही देख लीजिए , उनकी दंतपंक्तिया क्रम के बंधन से मुक्त हैं ,यूँ लगता है कि नर्सरी के बच्चों को सुबह प्रार्थना हेतु अध्यापक लाइन में खड़ा कराने का जबरदस्ती प्रयास कर रहे हैं किंतु बच्चे अपने मर्जी के मुताबिक इधर - उधर छटक जा रहे हैं । उनकी अम्मा ने बचपन में ही कह दिया था "खिड़बिड़हा दांत भाग्यवान लोग का होता है।" उस बात को अब तक गांठ बांध , डलबराइन चाची किसी नई दुल्हन को देखते ही कह देती हैं - "नाक - नक्श तो ठीक है ,लेकिन दांत खिड़बिड़हा रहता तो खूब भाग्यशाली होती । " अर्थात आपका समस्त पुरुषार्थ निष्फल ही रहेगा , यदि दाँत डलबराइन चाची की तरह नहीं हैं ।

ससुराल की आर्थिक स्थिति सामान्य भी नहीं कही जा सकती लेकिन मायके का गुणगान कर नवागत महिलाओं को आते ही प्रभावित कर डालती हैं । उस दिन उजागिर पाँड़े के बहू की मुँह दिखाई में गईं तो दांतों के आधार पर उसकी सुंदरता को अपर्याप्त बता लेने के पश्चात पूछ पड़ीं - "नइहर में लोग क्या करते हैं ?"

- "बाबूजी तहसीलदार हैं चाची !"....दुल्हन ने धीमे से कहा।

डलबराइन चाची ने मुंह बिचकाया -"कम पढ़े लिखे होंगे तुम्हारे बाबूजी ! हमारे बाबूजी तो हवलदार थे, और तीनो भाई पेशकार हैं । "

दुल्हन ने हंसते हुए कहा - " तहसीलदार , हवलदार और पेशकार से बड़ा पद होता है चाची "

-"तुम्हारे छोटे से जिले में होता होगा , मेरे जिले में हवलदार बड़ा होता है ।"....जाते हुए कहा डलबराइन चाची ने ।

डलबराइन चाची , हर छोटी - बड़ी घटना की सूचना और उसका निष्कर्ष जन - जन को जबरदस्ती उपलब्ध कराने हेतु बावली सी रहती हैं । पूरे गांव को बता आईं कि "पाँड़े बाबा की पतोहू अभी से आस पड़ोस के लोगों से बकर - बकर बात करती है , नइहर का घमंड दिखा कर कह रही थी कि बाप तहसीलदार हैं तो घर का काम करूँगी क्या ? बहुत उड़ती थी उसकी सास , अब मजा चखायेगी नई बहुरिया । एक हम भी गवने आये रहे लेकिन किसी से नहीं कहे कि हमारे यहां चार सौ एकड़ खेती और खुद के तीस ट्रैक्टर हैं । लेकिन इसका तो आते ही यह हाल है "

उनके पति टैम्पो ड्राइवर हैं , इसीलिए इन्हें डलबराइन कहा जाता है , कोई संतान नहीं हुई । पतिदेव की जिस दिन अच्छी कमाई हो गई उस दिन पी लेते हैं । एक दिन पीकर आये तो उन्हें खाना परोस कर पड़ोस की कुंती के घर चली गईं । इनको रोटी चाहिए थी और चाची नदारद । एक - दो बार पुकारा , नहीं आईं तो हाथ में एक डंडा लिए घुस गए कुंती के घर में और बड़े मजे से दो - तीन लाठी बजा दी । नशे में थे तो निशाना कुछ ठीक नहीं बैठा , उल्टे डालबराइन चाची ने अपने तेज दांतों से उनकी कलाई पर इतना तेज काटा कि लाठी छूट गई और भागने लगे । लेकिन भाग कर जायें कहां ? पीछे से तौल - तौल कर कई लाठियां डालबराइन चाची ने बजा दीं । साथ मे चिल्लाते जा रही थीं - " हमारे नइहर में तुम जइसन पियक्कड़ों का सिर फोड़ दिया जाता है , तनिक ठहर तो जाओ !"

उनके पति उस दिन टैम्पो लेकर जो लापता हुए तो सालों गुजर जाने के बाद भी घर नहीं आये । लोगों ने कहा कि मर्द हो तो ऐसा! मेहरी के हाथ मार खाई तो फिर मुँह नहीं दिखाया । कुछ लोग यह भी कहते पाए गए कि इस औरत की नइहर की बहस सुन - सुन कर पागल हो गया था बेचारा , मौका मिला तो भाग निकला । बहरहाल ! डलबराइन चाची पर पति के भागने का कुछ विशेष प्रभाव नहीं पड़ा ,उल्टा अब तो देर रात तक गाल बजा सकती थीं , कोई टोकने वाला न था , गांव वाले भाग कर कहां जाएं ? झेल रहे थे बेचारे ।

वृद्धावस्था हो आई थी । एक बार बीमार पड़ीं तो गांव वालों ने शांति महसूस की । एक दिन पड़ोसन कुंती से रहा न गया तो सद्भावनावश उनके घर पहुँच गई । देखा तो यह बुखार से तप रही थीं । दवा लाकर दी और दो दिन खूब सेवा की , फलस्वरूप ये उठने - बैठने लायक हो गईं ।

एक दिन कुंती ने मिठाई लाकर दी - "लो चाची मुँह मीठा करो , हमारे बेटे को सरकारी नौकरी लगी है ।"

चाची ने मिठाई खाई । जब बीमार थीं तो कुंती के अलावा गांव का एक कुत्ता तक झांकने नहीं आया था , इसके बावजूद भी व्यवहार में जरा भी परिवर्तन नहीं आया । शेखी बघारे कई दिन बीत गए थे तो बुरा सा मुँह बनाते हुए कहा - " हुँह ! सस्ती मिठाई , हमारे नइहर में मंझले भैया को नौकरी मिली तो लाखों की एक से बढ़कर एक मिठाई बनवाई थी उन्होंने , गिनकर नहीं देते थे , पूरे का पूरा टोकरा थमा देते थे । "

कुंती ने बधाई की जगह बेइज्जती सुनी तो तुनक कर चल पड़ी , इनसे चला नहीं जा रहा था तो बोल पड़ीं - " अरे कुंती जरा एक गिलास पानी तो देती जा !"

कुंती जाते जाते बोल गई - " अपने नइहर से मंगवा लो चाची , गिलास की जगह मीठे पानी से भरा कुआँ लाकर देंगे तुम्हारे मंझले भैया ।"

कुछ दिन बाद डलबराइन चाची जब स्वस्थ हुईं तो गांव भर को बताया - "लड़के को नौकरी मिली तो मारे घमण्ड के अंधी हो गई है कुंती , सीधे मुँह बात तक नहीं करती । हमारे नइहर में नौकर - चाकर को उसके बेटे से ज्यादा तनख्वाह दिया जाता है , लेकिन मैंने कभी इसका घमंड किया है क्या बहन ?"

आशीष त्रिपाठी

गोरखपुर

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