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उत्तर प्रदेश

दलितों के नेता की भूमिका में अखिलेश

दलितों के नेता की भूमिका में अखिलेश
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2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने जो गठबंधन किया था, उसमें सीटों के बंटवारे में सपा एक कदम नीचे ही रही थी. यही नहीं, साल 2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को बहुजन समाज पार्टी की तुलना में भारी नुकसान उठाना पड़ा था. तमाम राजनीतिक जानकारों ने समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं और आम लोगों ने भी माना कि समाजवादी पार्टी ने आत्मघाती कदम उठाते हुए बहुजन समाज पार्टी को आगे बढ़ने और फलने का खूब मौका दिया.

समाजवादी पार्टी की तुलना में बहुजन समाज पार्टी को दोगुना सीटें लोकसभा चुनाव में मिली. लेकिन, अखिलेश यादव यही सोच कर के उस वक्त सब्र कर लिया हो कि 2019 का लोकसभा चुनाव उनकी किस्मत में नहीं था. डॉ राम मनोहर लोहिया के साथ डॉ भीमराव अंबेडकर की फोटो के साथ समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव इस बात को बताने की कोशिश कर रहे हैं कि वह दलितों के नेता भी हो सकते हैं.

अखिलेश लगातार इस बात को भी बताने की कोशिश कर रहे हैं कि दलित वर्ग से जुड़े चेहरों को मंच पर महत्व दी जाए. इसी दिशा में बढ़ते हुए पिछले दिनों में जिस तरह से समाजवादी पार्टी की कई सारे पदाधिकारियों का फेरबदल हुआ है तो उसमें भी सपा मुखिया ने दलित वर्ग से आने वाले लोगों को अच्छी खासी तरजीह दी.

सपा इन दिनों राम मनोहर लोहिया के संग डॉ भीमराव अंबेडकर की फोटो लगानी शुरू कर दी है. पार्टी में बड़ा परिवर्तन इस बात की तरफ इशारा है कि समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव चाहते हैं कि बहुजन समाज पार्टी (BSP) से असंतुष्ट या पार्टी से निकाले जाने वाले लोग इस बात को समझें कि बीएसपी के बाद उनका दूसरा ठिकाना कांग्रेस या बीजेपी नहीं, बल्कि समाजवादी पार्टी है.

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