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उत्तर प्रदेश

इसरो के साथ नासा भी कर रहा लैंडर विक्रम से संपर्क की कोशिश

इसरो के साथ नासा भी कर रहा लैंडर विक्रम से संपर्क की कोशिश
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भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) चांद की सतह पर पड़े लैंडर विक्रम से दोबारा संपर्क साधने की कोशिश कर रहा है। सात सितंबर को हार्ड लैंडिंग के बाद इसरो का इससे संपर्क टूट गया था।यदि विक्रम से इसरो का संपर्क स्थापित हो जाता है तो लैंडर और रोवर अपना काम शुरू कर देंगे और भारत के इस अंतरिक्ष अभियान 100 प्रतिशत सफलता मिल जाएगी। फिलहाल यह मिशन 95 प्रतिशत सफल है।

इसी बीच दुनिया की सबसे बड़ी अंतरिक्ष एजेंसी राष्ट्रीय वैमानिकी एवं अंतरिक्ष प्रशासन (नासा) ने चांद की सतह पर गतिहीन पड़े विक्रम लैंडर से संपर्क स्थापित करने के लिए उसे हैलो का संदेश भेजा है। अपने गहरे अंतरिक्ष ग्राउंड स्टेशन नेटवर्क के जरिए नासा का जेट प्रोपल्सन लैबोरेटरी (जेपीएल) ने लैंडर के साथ संपर्क स्थापित करने के लिए विक्रम को एक रेडियो फ्रीक्वेंसी भेजी है। नासा के एक सूत्र ने इस बात की पुष्टि की।

सूत्र ने कहा, 'हां नासा/जेपीएल विक्रम से गहरे अंतरिक्ष नेटवर्क (डीप स्पेस नेटवर्क- डीएसएन) के जरिए संपर्क स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं। जिसके लिए इसरो सहमत है।' विक्रम से संपर्क स्थापित करने की उम्मीदें दिन-ब-दिन कम होती जा रही है। 14 पृथ्वी दिवस के बाद 20-21 सितंबर को जब चंद्रमा पर रात होगी तब विक्रम से दोबारा संपर्क स्थापित करने की सारी उम्मीदें खत्म हो जाएंगी।

एक अन्य अंतरिक्षयात्री स्कॉट टिल्ले ने भी इस बात की पुष्टि की है कि नासा के कैलिफोर्निया स्थित डीएसएन स्टेशन ने लैंडर को रेडियो फ्रीक्वेंसी भेजी है। टिल्ले उस समय चर्चा में आए थे जब उन्होंने 2005 में गुम हुए नासा के एक जासूसी उपग्रह का पता लगाया था। लैंडर को सिग्नल भेजने पर चांद रेडियो रिफ्लेक्टर के तौर पर कार्य करता है और उस सिग्नल के एक छोटे से हिस्से को वापस धरती पर भेजता है जिसे कि 8,00,000 किलोमीटर की यात्रा के बाद डिटेक्ट किया जा सकता है।

बुधवार को इसरो ने बताया था कि उसका लैंडर विक्रम से संपर्क चंद्र सतह से 2.1 किलोमीटर की ऊंचाई पर नहीं बल्कि 335 मीटर पर टूटा था। इसरो के मिशन ऑपरेशन कॉम्प्लेक्स से जारी तस्वीर से इस बात का खुलासा हुआ है। चंद्रमा की सतह से 4.2 किलोमीटर की ऊंचाई पर भी विक्रम लैंडर अपने पूर्व निर्धारित पथ से थोड़ा भटका लेकिन जल्द ही उसे सही कर दिया गया। इसके बाद जब चंद्रयान-2 का विक्रम लैंडर चंद्र सतह से 2.1 किलोमीटर की ऊंचाई पर पहुंचा तो वह अपने पथ से भटक कर दूसरे रास्ते पर चलने लगा।

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