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अनंत यात्रा पर चल पड़े पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली, एक नजर उनके सफर पर

अनंत यात्रा पर चल पड़े पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली, एक नजर उनके सफर पर
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नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली का लंबी बीमारी के बाद शनिवार को निधन हो गया।उन्हें शुक्रवार (9 अगस्त) सुबह 11 बजे चेकअप के लिए एम्स में भर्ती कराया गया था। जेटली लंबे समय से बीमार थे और इसी वजह से उन्होंने मोदी सरकार 2.0 में शामिल होने से मना कर दिया था। केंद्र में जब मंत्रीमंडल की शपथ होनी थी, उसके पहले ही जेटली ने पत्र लिखकर पीएम मोदी से मंत्रीपरिषद में न शामिल करने की अपील की थी।

पैर में था सॉफ्ट टिशू कैंसर

पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली का इलाज एम्स में एंडोक्रिनोलोजिस्ट, नेफ्रोलॉजिस्ट और कार्डियोलॉजिस्ट डॉक्टरों की निगरानी में चल रहा था। वहीं इससे पहले पिछले साल ही जेटली का किडनी प्रत्यारोपण हुआ था। इसके बाद उन्हें बाएं पैर में सॉफ्ट टिशू कैंसर हो गया था। जेटली इसकी सर्जरी के लिए इसी साल जनवरी में अमेरिका गए। इस दौरान रेल मंत्री पीयूष गोयल को वित्त मंत्रालय की अतिरिक्त जिम्मेदारी सौंपी गई थी।

अरुण जेटली का जन्म 28 दिंसबर 1952 को महाराज किशन जेटली और रतन प्रभा जेटली के घर में हुआ था। अरुण जेटली ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा सेंट जेवियर्स स्कूल नई दिल्ली से पूरी की और इसके बाद वह स्नातक करने दिल्ली विश्वविद्यालय के श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स चले गए। अरुण जेटली ने 24 मई 1982 को संगीता जेटली से शादी कर ली। उनके दो बच्चे है, बेटे का नाम रोहन और बेटी का नाम सोनाली है।

पिता के नक्शेकदम पर चले जेटली

अरुण जेटली के पिता एक वकील थे। जेटली ने भी पिता के पदचिन्हों पर चलते हुए स्नातक करने के बाद 1977 में दिल्ली विश्वविद्यालय के विधि संकाय से कानून की पढ़ाई की। पढ़ाई करने के बाद अरुण जेटली ने सुप्रीम कोर्ट में वकालत करना शुरू कर दिया। इसके बाद जेटली देश प्रसिद्ध वकीलों की सूची में शामिल में हो गए। जनवरी 1990 में उन्हें दिल्ली उच्च न्यायलय ने वरिष्ठ अधिवक्ता नामित कर दिया। इससे पहले 1989 में वीपी सिंह के प्रधानमंत्रीकाल में अरुण जेटली को अपर सॉलिसिटर जनरल बनाया गया था। इसके बाद अरुण जेटली कई बड़े मुकदमों में पेश हुए।

छात्र जीवन में राजनीति में शामिल हुए

अरुण जेटली ने बहुत ही कम उम्र में ही राजीति की पाठशाल में दाखिला ले लिया था। 22 साल की उम्र में जब वह स्नातक कर रहे थे, उस दौरान उन्हें 1974 में दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र संगठन का अध्यक्ष चुन लिया गया था। इसके बाद वह विभिन्न युवा मोर्चा के संघठनों से जुड़े रहे। जेटली को बाद में दिल्ली एबीवीपी का अध्यक्ष और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का राष्ट्रीय सचिव बना दिया गया था।

कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा

जेटली 1991 में भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य बनें और फिर 1999 के आम चुनाव से पहले बीजेपी ने उन्हें पार्टी का प्रवक्ता बना दिया। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। समय बीतता गया और जेटली की पकड़ बीजेपी में मजबूत होती गई। वह लगातार अपने कुशल कार्यशैली की वजह से बीजेपी संघठन में उच्च पदों पर बढ़ते चले गए।

वाजपेयी सरकार में मंत्रीपरिषद में हुए शामिल

अरुण जेटली को पहली बार मंत्रीपरिषद में शामिल होने का मौका अटल बिहारी वाजपेयी के तीसरे शासनकाल में मिला। उन्हें पहली बार एनडीए सरकार में 13 अक्टूबर 1999 को सूचना और प्रसारण राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) नियुक्त किया गया। इसके साथ ही जेटली को विनिवेश राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) की भी जिम्मेदारी सौंपी गई।

समय गुजरने के साथ ही जेटली राजनीतिक तौर पर मजबूत होते गए। 2000 में उन्हें राज्यमंत्री से पदौन्नति करके कैबिनेट मंत्री की जिम्मेदारी सौंपी गई। इस दौरान उन्हें कानून, न्याय और कंपनी मामलों के साथ जहाजरानी मंत्रालय का कैबिनेट मंत्री बनाया। जेटली को बाद में , वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय का भी मंत्री बनाया गया। सरकार के साथ ही जेटली की पदौन्नति संगठन में भी होती गई। पहले उनहें राष्ट्रीय प्रवक्ता और फिर 2004 में महासचिव बना दिया गया।

विपक्ष के नेता के रूप में बनाई अलग पहचान

2004 से 2014 तक एनडीए केंद्र की सत्ता से बाहर रही। 2009 में जेटली को राज्यसभा में विपक्ष के नेता बनाया गया और इस दौरान वह बीजेपी का पक्ष राज्यसभा में मजबूती से रखते रहे। हालांकि, राज्यसभा में विपक्ष के नेता के पद पर रहते हुए जेटली ने महासचिव के पद से इस्तीफा दे दिया था।

राजनीतिक पंडितों की मानें तो अरुण जेटली ने नरेंद्र मोदी को दिल्ली की सियासत में दाखिल कराने में अहम भूमिका निभाई। गुजरात से लाकर और कैसे दिल्ली में मोदी बीजेपी के पीएम चेहरा बने, उसमे जेटली का अहम रोल रहा। इसका फायदा उन्हें सरकार आने के बाद 2014 में मिला,जब केंद्र में उन्हें वित्त के साथ कॉर्पोरेट मामलों का भी मंत्री बनाया गया। इसके बाद वह कुछ समय के लिए रक्षा मंत्री भी रहे। वन नेशन वन टैक्स यानी जीएसटी को लाने में भी जेटली ने अहम भूमिका निभाई।

संकटमोचक की भूमिका में जेटली

केंद्र की मोदी सरकार के फैसलों पर जब भी सवाल उठे, तो उस वक्त जेटली सबसे पहले आगे आकर बचाव करते थे। वह चाहे 'एक देश एक कर यानी वन नेशन वन टैक्स' (जीएसटी) की बात रही हो या फिर नोटबंदी के बाद सरकार की हो रही आलोचना। जेटली हर मोर्चे पर मोदी सरकार का बचाव करने के लिए आगे खड़े रहे है। वहीं जब कांग्रेस और समूचा विपक्ष राफैल सौदे में भ्रष्टाचार की बात कह रहा था और मोदी सरकार को घेरने की कोशिश कर रहा था, तो उस वक्त भी जेटली थे, जिन्होंने न सिर्फ मुखर होकर सरकार का बचाव किया बल्कि इसके फायदे भी देश को समझाए।

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