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उत्तर प्रदेश

राष्ट्र के नाम सन्देश

राष्ट्र के नाम सन्देश
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मेरे प्रिय देशवासियों!

कहते हैं कि लोकतंत्र में साधारण प्रजा ही वास्तविक राजा होती है, सो स्वयं को राजा समझते हुए मैं आपको सम्बोधित कर रहा हूँ।

मितरों! हमारी धरती एक पुण्यभूमि है, वीरो की भूमि है। यह धरा सदैव विश्व को मार्ग दिखाती रही है। आज सुबह ही मुख्य सड़क के किनारे शौच करते दो महानुभावों को देख कर मैंने मन ही मन इस धरा को प्रणाम किया। धन्य है वह देश, जहाँ का राजा सड़क किनारे शौच करता है। विश्व के अन्य देशों के राजा ऊँची ऊँची अट्टालिकाओं के वातानुकूलित शौचालय में जाते हैं, पर हमारी सहजता देखिये कि हमारे राजा ग्रामीण पथ पर शौच करने में तनिक भी नहीं झिझकते, बल्कि दिन में दो-दो, तीन-तीन बार शौच करते हैं। हमारी यही सहजता हमें विश्व मे सबसे आगे खड़ी करती है।

साथियों! कल हम अपनी स्वतंत्रता के इकहत्तर वर्ष पूरे कर रहे हैं।

इन इकहत्तर वर्षों में हमनें सिद्ध कर दिया है कि धरती गोल है, क्योंकि सन 1947 में हम जिस विभाजन से निकले थे, आज पुनः उसी विभाजन के द्वार पर खड़े हैं। देश के अनेक हिस्सों से अलग देश की उठती मांग हमारे अतुल्य साहस और सतत प्रयास की साक्षी है। मैं इकहत्तर वर्ष की इस अतुल्य यात्रा को नमन करता हूँ।

मितरों, क्या नहीं पाया हमने इन इकहत्तर वर्षों में! स्वतंत्रता के समय पूरे देश में मात्र एक ही गुट था, सब भारतीय थे। आज हम असंख्य गुटों में हैं। हमनें हर जाति का गुट बनाया, हमनें हर राज्य का गुट बनाया, हर भाषा का गुट बनाया, हमनें असंख्य गुट बनाये। यह हमारे कठिन परिश्रम और लगन का ही परिणाम है कि आज हम हजार टुकड़ो में हैं। आज एक जाति का व्यक्ति दूसरी जाति के व्यक्ति से घृणा करता है, तो यह हमारे कठिन परिश्रम का ही फल है। देश की प्रजा जितने अधिक खण्ड में विभाजित होगी राष्ट्र उतना ही यशस्वी होगा।

साथियों आज भले हर हाथ मे किताब न हो, पर हमनें हर युवक के हाथ मे एंड्रॉयड फोन पहुँचा दिया है ताकि वह ब्लू फिल्म देख सके। यह कोई छोटी उपलब्धि नहीं है मितरों, ब्लू फिल्म देख कर परिपक्व हुए युवक ही राष्ट्र का वैभवशाली भविष्य रचते हैं।

आज से दस वर्ष पूर्व तक खोजने पर भी भारतीय ब्लू फिल्में नहीं मिलती थीं, पर हमनें अपनी लगन के बल पर यह उपलब्धि भी प्राप्त कर ली। आज इंटरनेट पर लाखों भारतीय फिल्में हैं। भारत के हर राज्य और हर शहर के अलग अलग फोल्डर बने हुए हैं, आप अपनी पसंद के हिसाब से चयन कर सकते हैं। सबसे उत्साहित करने वाली बात यह है कि उन फिल्मों में अधिकांश को उन्हीं युवकों ने शूट किया है जो उसमें कार्य कर रहे हैं। अपनी ही कथित प्रेयसी की फ़िल्म बना कर उसे सर्वसाधारण के लिए परोसने वाले ये युवक नमन के योग्य हैं, और सबसे अच्छी बात यह है कि देश मे ऐसे युवकों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। अब वह दिन दूर नहीं जब हर शहर ही नहीं हर गाँव का अपना एक फोल्डर होगा जहाँ उस गाँव की युवतियों की ब्लू फिल्म होगी। इस कार्य के लिए हमारी फ़िल्म इंडस्ट्री बधाई की पात्र है। उसके सहयोग के बिना हम यह ऊँचाई प्राप्त नहीं कर सकते थे।

मितरों कितना कहें, हमारी उपलब्धियां असंख्य हैं। पर कहते हैं कि सुधार की आवश्यकता कभी समाप्त नहीं होती। हमें अभी भी कई दिशाओं में सुधार की आवश्यकता है। हमारे देश में लगभग चार पाँच करोड़ बंगलादेशी अतिथि हैं। मैं देख रहा हूँ कि देश के असंख्य लोग हमारे इन पूज्य अतिथियों के बारे में गलत बोलते हैं। यह सुन कर दुख होता है मित्रों। अतिथि सत्कार हमारे देश की परंपरा रही है, इसी देश में राजा मोरध्वज ने अतिथि के लिए अपने पुत्र को काट कर मांस पकाया था। इसी देश में अंगराज कर्ण ने अतिथि को अपना कवच कुंडल दान कर दिया था। उसी देश में बंग्लादेशी ओर रोहिंग्या अतिथियों को भगाने की बात हो रही है, इससे दुखद बात और क्या हो सकती है? चलिये माना कि उनमें कुछ आतंकवादी हैं, माना कि उनके मूल देश से उन्हें बलात्कार और हत्या जैसे कुकर्मों के कारण निकाला गया है, पर क्या इसके कारण हम अपना संस्कार छोड़ देंगे? नहीं साथियों! क्या हुआ जो वे कुछ देशवासियों की हत्या कर देंगे, क्या हुआ जो वे कुछ लड़कियों की आबरू लूटेंगे, इस सवा अरब की जनसंख्या वाले देश में कुछ हजार पुरुषों की हत्या और कुछ हजार बलात्कार से क्या बिगड़ जाएगा? हमें इस भय के कारण अतिथि सत्कार की परंपरा नहीं छोड़नी चाहिए। मैं स्वतन्त्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र से अपील करता हूँ कि रोहिंग्याओं का सम्मान किया जाय। उन्हें उनकी रुचि के अनुसार कार्य के अवसर प्रदान किये जांय।

मितरों कुछ ही दिन पहले एक फ़िल्म आयी थी 'मुल्क'। इस फ़िल्म ने देश के सामने एक प्रश्न छोड़ा था कि यदि कोई आरती मल्होत्रा विवाह के बाद आरती मोहम्मद बन जाय तो उसके साथ लोगों के व्यवहार क्यों बदल जाते हैं। क्यों उसे एयरपोर्ट पर, रेलवे स्टेशन पर या अन्य स्थानों पर शक की दृष्टि से देखा जाता है?

मुझे यह देख कर अच्छा लगा कि अब फिल्में भी समाज से प्रश्न कर रही हैं। किसी भी लोकतंत्र की सफलता इसी में है कि उस देश के अंधे भी आँख में काजल लगाएं, चोर भी ईमानदारी पर प्रवचन दें, गदहियां भी राग भैरवी में ठुमरी गाएँ। मुझे उस तारिका का प्रश्न प्रशंसनीय लगा। देह उसकी है तो इच्छा भी उसी की रहे, वह आरती मल्होत्रा से आरती फर्नांडिस बने या आरती मोहम्मद, उसपर शक नहीं करना चाहिए। मुझे लगता है कि इस देश की बहुसंख्यक प्रजा को हर आरती मोहम्मद के साथ खड़ा होना चाहिए, और हर आरती मल्होत्रा को आरती मोहम्मद बनने के लिए प्रेरित करना चाहिए। इतना ही नहीं देश के बाहर भी यदि अमेरिका फ्रांस इंग्लैंड आदि देशों में कोई उसे शक की निगाह से देखे तो भारत को उस देश से युद्ध छेड़ देना चाहिए।

मेरे प्यारे भाइयों और भौजाइयों! जब भी स्वतन्त्रता दिवस आता है तो मेरे अंदर जाने कहाँ से राष्ट्रप्रेम का सोता बहने लगता है। मैं आशा करता हूँ कि आपके अंदर भी यह सोता अवश्य उपटता होगा, आपके अंदर से भी हर बात पर "भारत माता की जय" के नारे अवश्य निकलते होंगे।

मित्रों! भले आप सड़क किनारे शौच करते हों, भले भ्रष्टाचारी हों, भले रोज यातायात के नियम तोड़ते हों, भले जाली नोट को रात के अंधेरे में चला देते हों, भले सरकार का टेक्स चुराते हों, भले पाकिस्तान के जीतने पर पटाखे छोड़ते हों, भले आपने अपनी माँ को विधवाश्रम में पहुँचा दिया हो, पर कल आप हर बात पर भारत माता की जय के नारे अवश्य लगाएं। हमारा राष्ट्र तभी प्रगति के पथ पर आगे बढ़ेगा।

तो आइए एक साथ कहें-

भारत माता की जय

भारत माता की जय

भारत माता की जय

सर्वेश तिवारी श्रीमुख

गोपालगंज, बिहार।

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