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राजस्थान बीजेपी में अध्यक्ष पद पर घमासान, दिल्ली पहुंचे कई विधायक

राजस्थान बीजेपी में अध्यक्ष पद पर घमासान, दिल्ली पहुंचे कई विधायक
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राजस्थान में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले प्रदेश अध्यक्ष को लेकर मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया और केंद्रीय बीजेपी के बीच सियासी जंग शुरू हो गई है. इस सियासी जंग में प्रदेश अध्यक्ष कौन बने इसके लिए राजे सरकार के 20 से ज्यादा मंत्रियों और 20 विधायकों ने बीजेपी अध्यक्ष और केंद्रीय नेतृत्व पर दवाब बनाने के लिए दिल्ली में डेरा डाला हुआ है.
सूत्रों के मुताबिक अमित शाह चाहते हैं मोदी सरकार में कृषि राज्यमंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत को प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाए, जबकि राजे सरकार के 20 से ज्यादा मंत्री और सभी जाट विधायकों शेखावत को प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के खिलाफ हैं.
जाट हो जाएंगे नाराज
राजे से लेकर दिल्ली आए सभी मंत्रियों और विधायकों का मत है कि गजेंद्र सिंह शेखावत को प्रदेश बनाए जाने से राजस्थान में जाटों की नाराजगी बढ़ जाएगी. राज्य में राजपूत मुख्यमंत्री के बाद इसी समुदाय का प्रदेश अध्यक्ष होने से जाटों में अच्छा संदेश नहीं जायेगा. इस फैसले की कीमत पार्टी को आगामी विधानसभा में चुकानी पड़ सकती है.
असल में वसुंधरा राजे सिंधिया को गजेंद्र सिंह शेखावत के प्रदेश अध्यक्ष बनने से दिक्कत ये है कि प्रदेश में राजपूतों में एक उनके समकश का एक नेता खड़ा हो जाएगा.
सोमवार को जिन मंत्रियों ने संगठन महासचिव रामलाल से मुलाक़ात कर गजेंद्र सिंह शेखावत के खिलाफ अपनी नाराजगी बता दी उनमें राज्यसभा सांसद रामनारायण डूढी, यूनुस खान, राजेंद्र सिंह राठौर, राम प्रताप, प्रभुलाल सैनी, अजय किलक, सुरेंद्रपाल सिंह शामिल हैं. इसके अलावा भी कई अन्य विधायक दिल्ली पहुंच चुके हैं.
पार्टी महासचिव रामलाल ने राजस्थान से आये सभी मंत्रियों और विधायकों को भरोसा दिया और कहा कि प्रदेश अध्यक्ष फैसला सबकी सहमति से होगा. सभी जानते हैं कि अंतिम फैसला पीएम नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को ही लेना है.
अध्यक्ष पर जल्द होगा फैसला
सूत्रों की मानें तो अगले एक दो-दिन में राजस्थान बीजेपी के नए प्रदेश अध्यक्ष के नाम की घोषणा हो सकती है. राजस्थान बीजेपी से संबंध रखने वाले बीजेपी के नेता का मानना है कि जिस तरह से लोकसभा की 2 और विधानसभा की एक सीट पर उपचुनाव के नतीजे आए थे उससे तो लगता है कि जनता संगठन और सरकार से नाराज है. ऐसे में संगठन और प्रदेश सरकार में बदलाव करना चाहिए.
विधानसभा चुनाव से ठीक 6 महीने पहले प्रदेश अध्यक्ष को लेकर जिस तरह से अमित शाह और वसुंधरा राजे के बीच सियासी जंग शुरू हुई हैं वो 2009 की याद दिलाती हैं. तब बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने राजे को विपक्ष की नेता के पद से इस्तीफ़ा देने को कहा था. लेकिन तीन महीने तक वसुंधरा राजे ने इस्तीफ़ा नहीं दिया और तब राजनाथ सिंह समेत पूरी पार्टी को नाकों चने चाबने पड़े थे.
राजे के लिए नाक का सवाल
सीएम राजे को भी पता है अब की उनकी लड़ाई राजनाथ सिंह से बल्कि पीएम मोदी के सेनापति और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह से है. पिछली बार उन्हें पीछे से समर्थन देने वालों की लम्बी फ़ेहरिस्त थी जिसमें लालकृष्ण आडवाणी, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली, वेंकैया नायडू जैसे नेता थे. लेकिन इस बार उन्हें लड़ाई अकेले अपने दम पर लड़नी है.
वसुंधरा अगर इस बार शेखावत को प्रदेश अध्यक्ष बनने से रोकने में कामयाब रहती हैं तो फिर अगला प्रदेश अध्यक्ष ना राजपूत होगा और ना ही जाट होगा. सूत्रों की मानें तो राजे अपना दांव पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी, लक्ष्मीनारायण दवे, श्रीचंद कृपलानी पर लगा रही हैं. दूसरी तरह अमित शाह गजेंद्र सिंह शेखावत के अलावा अर्जुनराम मेघवाल, मदनलाल सैनी और सतीश पुनिया को राजस्थान के अध्यक्ष पद देखना चाहते हैं.
अमित शाह को पिछले हफ़्ते मध्यप्रदेश में नए प्रदेश अध्यक्ष के लिए जबलपुर से सांसद राकेश सिंह के नाम की घोषणा करने में कोई दिक्कत नहीं आई. लेकिन राजस्थान में जिस तरह प्रदेश अध्यक्ष को लेकर विरोधी सुर सुनाई दे रहे हैं इससे विधानसभा चुनाव के साथ-साथ 2019 में भी पार्टी को नुकसान हो सकता हैं.
अमित शाह जानते हैं कि संगठन को मज़बूत करते-करते चुनाव हाथ से नहीं निकल जाये. यही वजह कि वो राजस्थान के मामले में हर कदम फूंक-फूंक कर रख रहे हैं.
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