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क्या शिवपाल के पास अब विकल्पहीनता की स्थिति है ?

क्या शिवपाल के पास अब विकल्पहीनता की स्थिति है ?
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आगरा : कभी मुगल सम्राट अकबर ने आगरा में दीन-ए-इलाही के माध्यम से सुलहकुल यानी मिल-जुलकर रहने का संदेश दिया था। शायद यही वजह थी कि एक जनवरी, 2017 को जब राजधानी में हुए सम्मेलन में अखिलेश को अध्यक्ष बनाया गया था तो पिता मुलायम और चाचा शिवपाल दोनों ने ही बाहें चढ़ा रखी थीं लेकिन, गुरुवार को ताजनगरी में एक का आशीर्वाद बरसा तो दूसरे की बधाई।

हालांकि इस बधाई में भी शिवपाल की मजबूरियां साफ दिखायी पड़ रही हैं। पारिवारिक विवाद में खुद को मुलायम के वफादार के रूप में ही प्रस्तुत करने वाले शिवपाल के पास अब विकल्पहीनता की स्थिति है और बेटे के लिए मुलायम के नरम हो जाने के बाद उनके पास फिलहाल कोई चारा भी नहीं है।

सूत्रों के अनुसार सुलह का फार्मूला मुलायम ने तैयार किया और उन्होंने इसकी पृष्ठभूमि 25 सितंबर को ही तैयार कर दी थी, जबकि सेक्युलर मोर्चा के गठन के लिए लोहिया ट्रस्ट में पत्रकार वार्ता बुलाने के बाद उन्होंने ऐन वक्त पर इसकी घोषणा से इन्कार कर दिया था। इससे पहले लोहिया ट्रस्ट से प्रो. राम गोपाल को बाहर कर शिवपाल को शामिल कर वह भाई के कुछ जख्मों पर मरहम लगा चुके थे।

सूत्रों के अनुसार मुलायम के कहने पर ही अखिलेश ने बुधवार को शिवपाल को फोन किया। ..और पार्टी का अध्यक्ष चुने जाने के बाद शिवपाल ने ट्वीट करके 'हृदय से शुभकामनाएं और आशीर्वाद' दिया है तो इसके पीछे भी नेताजी ही हैं।

सूत्रों के अनुसार पहले मुलायम खुद आगरा आना चाहते थे फिर अस्वस्थता की वजह से आना रद कर दिया और शिवपाल को बुला लिया। इसी के बाद उन्होंने ट्वीट भी किया। वैसे पार्टी के कई लोग इसे सहज स्थितियां नहीं मानते।

पूरे विवाद में जिस तरह शिवपाल को झुकना पड़ा है, वह उनके स्वभाव से मेल नहीं खाता। अब सब कुछ इस बात पर टिका है कि मुलायम ने उनके लिए क्या सोच रखा है। शिवपाल हमेशा कहते रहे हैं कि वह मुलायम के सम्मान की लड़ाई लड़ रहे हैं। अखिलेश की ताजपोशी के बाद अब सबकी निगाहें इस बात पर हैं कि शिवपाल का डैमेज कंट्रोल कैसे किया जाता है। जहां तक शिवपाल का पक्ष है तो फिलहाल एक ट्वीट से उन्हें कुछ समय के लिए वक्त जरूर हासिल हो गया है। यदि स्थितियां सम्मानजनक न हुईं तो समर्थकों के साथ अलग राह चलने का विकल्प उनकी मजबूरी होगी।

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