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व्यंग ही व्यंग

फुदकन चाचा.... : आशीष त्रिपाठी

फुदकन चाचा.... : आशीष त्रिपाठी
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फुदकन अपनी साइकिल नहर के पुल के पास , पान की दुकान पर रख दिया करते थे । बस आती और सवार होकर शहर अपने ऑफिस के लिए निकल लेते । शाम को वापस वहीं पुल पर उतरते और साइकिल लेकर घर आ जाते । छुट्टी के दिनों को छोड़ दें तो जब तक रिटायर नहीं हो गए तब तक उनकी यह रोज की दिनचर्या रही ।

उसी दौरान की एक घटना है । एक बार लौटती बस में चढ़े तो टू सीटर खाली मिला । खिड़की के किनारे सट कर बैठे और मगही पान मुँह में धर लिया । सुहाना मौसम था , इधर खिड़की से वायु का शीतल झोंका आ ही रहा था तब तक बगल में बसंत का भी आगमन हो गया । यह एक नवयुवती थी । सुर्ख लाल साड़ी में लाल बिंदी लगाए वो महिला मुस्कुरा कर बोली तो लगा कि लाल गुलाब की दो पंखुड़ियां आपस में अठखेलियाँ कर रही हों - " सीट खाली है क्या च ....?"

सौंदर्य के परम उपासक फुदकन चाचा किसी युवती के मुख से चाचा सुनना पाप समझते थे । अतः जैसे ही उसने च कहने के लिए जिह्वा को तालू की तरफ उठाया फुदकन बोल पड़े - " खाली है मैडम जी ! आइये बैठिए न "

हालाँकि इस त्वरित प्रतिक्रिया के चक्कर में युवती की लाली से प्रभावित मगही पान की लाली और चटक हो चली थी और उसकी एक पतली धार होंठों की सीमा लाँघ फुदकन की दाढ़ी को अभिसिंचित करते हुए सफेद गमछे पर अपना छाप छोड़ विलुप्त हो गई । वही गमछा निकाल कर सीट झाड़ते हुए चाचा बस की बॉडी से थोड़ा और चिपक गए ।

महिला ने थैंक्स कहा और बैठ गई । बस और फुदकन चाचा के दिल की धड़कन एक साथ बढ़ी । शरीर में अजीब झनझनाहट पैदा हो गई , सामने वाली सीट पर रखे उनके हाथ काँपते महसूस हुए तो वहाँ से हटाकर गमछे में छिपा लिया । अपनी असहजता को परास्त करने का तरीका ढूंढ ही रहे थे कि महिला ने पूछा - " मठरी खाएंगे आप ?"

हालाँकि पान अभी थूकने लायक नहीं हुआ था लेकिन उसकी कुर्बानी देते हुए खिड़की के बाहर पिच्च से थूककर बोले - " हाँ हाँ क्यों नहीं ?"

महिला ने दो मठरियां दीं । एक तुरन्त मुँह के हवाले किया और आह्लादित नेत्रों से महिला की ओर देखते रहे । उसने बुरा सा मुँह बनाया - " छी ! मुँह में तम्बाकू था आपके । बिना कुल्ला किये ही खा लिए ?"

इम्प्रेसन की वाट लग गई । खिड़की से थूकने के बाद बोले - " मैं सोच ही रहा था कि कुछ मिस हो रहा है मुझसे ,अच्छा याद दिलाया आपने । मगर यहाँ पानी भी तो नहीं है । दूसरा वाला घर जाकर खाऊंगा ।"

महिला ने पानी का बोतल बढ़ाया - " लीजिये कर लीजिए कुल्ला !"

फुदकन चाचा बोतल से पानी नहीं पी पाते थे । यहाँ अस्वीकार करते तो युवती की अवहेलना होती । साँस रोककर मुँह को लक्ष्य करते हुए बोतल से पानी की धार गिराई । मुँह में तो एक बूंद भी न गया , हाँ नाक और आँख जरूर तृप्त हो लिए । महिला के साथ - साथ अगल - बगल के पैसेंजरों की भी हँसी नहीं रुक रही थी ।

- "असल में बस हचक रहा है न इसीलिए मिस फायर हो गया ।"....फुदकन ने सफाई दी ।

महिला ने हँसी रोकते हुए पूछा - " क्या करते हैं आप ?"

पता नहीं क्यों फुदकन खुद को आबकारी महकमे का बाबू बताने में झेंप का अनुभव कर रहे थे । मित्रों से सुन रखा था कि महिलाएं कवियों पर विशेष स्नेह रखती हैं सो तपाक से बोल पड़े - " कवि हूँ जी !"

-"अरे वाह !"....महिला सच में प्रभावित दिखी ।

फुदकन भी मुस्कुराये दोनों भुजाएं ऊपर उठाकर कुर्ते की बाँह को कुहनी तक सरका लिया । महिला ने गुजारिश की - "कुछ सुनाइये ना !"

फुदकन ने नहीं सोचा था कि फरमाइश भी आ सकती है । कुछ देर तक बस में इधर - उधर इस प्रकार देखते रहे जैसे किसी ने बस की बॉडी पर इश्तेहार की जगह इनके लिए कविता छाप रखा हो । अंततः कुछ पंक्तियां सूझ गईं - " अर्ज किया है !!"

-"इरशाद!! इरशाद !!"

फुदकन ने फरमाया -

"सुन ओ रहमानी! तेरी पाक जवानी की कसम

रेती का पुल हो या हो पुराना बस अड्डा

कचहरी गेट हो चाहे हो पडरौना रोड खड्डा

दो खुराक इश्क की खातिर जहाँ कहो जाना

आ जाऊँगा छोड़ के मैं अपना मद्रासी दवाखाना

बांध सिर पर कफ़न मैं दौड़ा चला आऊँगा

अंग्रेजी सीखे सिर्फ चार दिन में

वाली किताब भी ले आऊँगा

एक तेरे बगैर ये मचलता दिल दूँ मैं किसको ?

दिल में मेरे है दर्दे डिस्को !!

दिल में मेरे है दर्दे डिस्को !! "

कविता समाप्त हो चुकी थी । महिला का गोरा मुख फुदकन चाचा के कविता की गर्मी से काला पड़ गया था । बस रुक चुकी थी । महिला उतरने लगी , फुदकन अपनी पहली रचना पर उस महिला की प्रतिक्रिया पाने को व्याकुल थे , पीछे - पीछे आते हुए बोले - "आपने बताया नहीं कैसी लगी मेरी रचना ? "

महिला ने बेरहमी से देखा - "निहायत ही कूड़ा टाइप के कवि हैं आप "

फुदकन के कलेजे पर बड़ी जोर की लगी । महिला बस से उतर कर ओझल हो चुकी थी । ये थोड़ा सम्हले तब तक दूसरी आफत आई । महिला से वार्ता और कविता के चक्कर में नहर की पुलिया छोड़ ,ये दो किलोमीटर आगे कस्बे में थाने पर आ गए थे ।

खुद को कोसते हुए वापस नहर की ओर चले । अंधेरा होने वाला था , उधर जा रहे बहुत से मोटरसाइकिल वालों को रुकने का इशारा किया लेकिन कोई न रुका । पैदल चलने की आदत थी नहीं , कुछ ही दूर चलने के बाद हाँफने लगे ।

तभी एक बुलेट की आवाज कान में पड़ी , पीछे घूम कर देखा , बुलेट उनके पास आकर रुकी । गाड़ी पर पुलिस लिखा था , सादी वर्दी में सवार पुलिसिये ने डपटकर पूछा - " अभी तुम्हीं बस से उतरे हो ?"

फुदकन चाचा चालू आदमी थे , समझ गए कि कोई पॉकेटमार बस में हाथ साफ किया होगा और पीड़ित की शिकायत पर पुलिस चेक करने निकली है । बोले - " नहीं जनाब ! हम तो रेल से उतरे हैं , लेकिन बस से उतरे एक आदमी को तेजी से नहर पुल की तरफ भागते हुए जरूर देखा है "

पुलिसवाले ने इनको पीछे बैठाया - " पहचान लोगे "

-"जरूर जनाब ! "

मोटरसाइकिल चली । फुदकन के दिमाग ने उन्हें लिफ्ट दिला दिया था , सोचे कि पुल से कुछ दूर जाने के बाद पुलिसिया हार मान ही जायेगा ,जेबकतरे के पीछे कौन पुलिसवाला इतना भागता है , उसके बाद उससे वापस नहर के पुल तक छोड़ने की विनती कर देंगे ।

आगे भी फुदकन की किस्मत तेज ही थी । पुलिस वाला ज्यादा आगे न जाकर पुल पर ही रुक कर बोला - " छोड़ो जाने दो साले को , कभी तो मिलेगा !"

फुदकन प्रसन्न हुए -" हाँ जनाब छोड़िए ! सौ दिन चोर का तो एक दिन पुलिस का जरूर होता है , आइये पान खिलाते हैं आपको "

पुलिस वाला उतरा , पान की गुमटी में जल रही लाइट में उसने फुदकन का हुलिया ध्यान से देखा और फुदकन के हाथ से गमछा ले लिया , गमछे की शिनाख्त के बाद बोला - " बहुत पान खाते हो न ?"

-"पढ़ाई के जमाने से शौक है साहब !"..फुदकन मुस्कुराये ।

-" तो झूठ काहें बोला बे कि ट्रेन से आया है ?"...कहकर पुलिस वाले ने एक थप्पड़ धर दिया ।

पान वाले के पुराने परिचित थे फुदकन , उसने फुदकन को पिटते देखा तो फौरन गुमटी से निकल कर हाथ जोड़ा - " कुछ गलती हो गई क्या हुजूर ?"

- "गलती पूछ रहे हो ? पहले हमारा कपड़ा देखो ! आज बीबी को शौक चढा था बस से सफर का , कॉलेज का अनुभव ताजा करना चाह रही थी । उसे बस में चढ़ाकर मैं बाइक से ही आ रहा था कि इस कमीने ने पान खाकर मेरे ऊपर थूक दिया । थानेदार साहब का फोन न आया होता तो उसी दम बस रुकवा कर इसकी खाल खींच लेता । और तो और जाने कैसी बेहूदा कविता सुनाई इसने मेरी बीबी को , उसका सिर दर्द से फटा जा रहा है । वही इसका हुलिया और सारी कहानी मुझे बताई है ।"

फुदकन थरथर काँप रहे थे । पान वाले ने विनती की - " बुजुर्ग आदमी है साहब जाने दीजिए ! साथ में मिर्गी का मरीज भी है । अभी कुछ ऊँच - नीच हो जाएगा तो आप को बहुत पाप लगेगा ।"

पान वाला चुप हुआ इधर फुदकन ने मिर्गी का जबरदस्त नाटक किया । पुलिसवाले ने छोड़ दिया , जाते - जाते बोला - " इसे समझा देना! आइंदा से पान खाकर इधर - उधर थूकने और कविता की नौटंकी से बाज आये , वरना खैर नहीं ।"

पान वाले ने गारंटी ली - " आज के बाद इसका बाप भी न तो पान खायेगा और न ही कविता पाठ करेगा हुजूर ।"

पुलिसवाला चला गया , फुदकन झाड़ - पोंछ कर खड़े हुए , मुस्कुराते हुए बोले - " बचा लिया भाई ! इसी बात पर लगाओ एक ठो मगही !"

पान वाले पत्ते पर चूना लगाते हुए कहा - " तुम कब सुधरोगे बे ?"

फुदकन ने गले में गमछा लपेटते हुए कहा - " सुधरें तुम्हारे दुश्मन बे ! जिसके तुम्हारे जैसे यार हों उसे सुधरने की क्या जरूरत , अब कल से कविता सुनने के लिए कमर कस लो ससुर !"

आशीष त्रिपाठी

गोरखपुर

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