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व्यंग ही व्यंग

हम असम को देश से काट देंगे...देश देख रहा है, पर चुप है

हम असम को देश से काट देंगे...देश देख रहा है, पर चुप है
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दिल्ली के शाहीन बाग में खड़ा हो कर वह कहता है कि हम असम को देश से काट देंगे। देश देख रहा है, पर चुप है।

वह कहता है कि मुर्गी का सर(पूर्वोत्तर भारत) हमारा है। शाहीन बाग में तिरंगा लेकर बैठी भीड़ उसका समर्थन करती है। बुद्धिजीविता के ठेकेदार उसका विरोध नहीं करते, वामपंथ का आधुनिक झंडाबरदार उसे अपने साथ ले कर घूमता है...

वे मीडिया के बड़े और स्थापित चेहरों को दौड़ा-दौड़ा कर मारते हैं, पर किसी को इसमें लोकतंत्र की हत्या नहीं दिखती। कोई मुँह नहीं खोलता, कहीं डिबेट नहीं होती, किसी को बुरा नहीं लगता।

फर्जी सेक्युलरिज्म के दावों के बीच आप इन दो विचारों में अंतर निहारिये, देश हमारे लिए माता है, उनके लिए मुर्गी। असम हमारे लिए कामाख्या भगवती की डीह है, उनके लिए मुर्गी का सर...

मोदी के एक विधेयक ने फर्जी सेक्युलरिज्म की पोल खोल दी है। मुनव्वर राणा जैसे सेक्युलरिज्म के स्थापित ब्रांड-अम्बेसडर एक झटके में नङ्गे हो गए हैं। उनका सेक्युलरिज्म यह है कि भारत में लाखों निर्दोष हिन्दुओं की हत्या कराने वाला, असँख्य मंदिरों को तोड़ने वाला औरंगजेब उन्हें केवल इसलिए पसन्द है क्योंकि वह स्वयं अपने लिए खिचड़ी बनाता था। मुनव्वर औरंगजेब के सारे अपराध माफ कर चुके! क्या हुआ, काफिर ही तो थे... ठीक किया मार कर...

इस देश की अस्मिता को खतरा ओवैशी से नहीं है, खतरा मुनव्वरों से है। ओवैसी साफ बोलते हैं, स्पष्ट दिखते हैं, पर मुनव्वर छिप के खेलते हैं। 1947 में विभाजन के लिए केवल जिन्ना ही दोषी नहीं थे, विभाजन की प्राथमिक परिकल्पना उस महान शायर इकबाल की थी जो 'कभी सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा' गाया करते थे।

शाहीन बाग जैसे देश-द्रोही आंदोलनों को ऊर्जा देश का आम अल्पसंख्यक नहीं दे रहा है, ऊर्जा मुनव्वर, सैफ, कन्हैया, रबिश, स्वरा, शबाना जैसे शातिर चेहरे दे रहे हैं। सबका एजेंडा साफ हो चुका, सबका लक्ष्य क्लियर दिख रहा है।

छह महीने पूर्व तक दलितों के हितैषी बनने वाले लोग खुल कर CAA के विरुद्ध आ चुके हैं, जबकि इस कानून से जिन पाकिस्तानियों को लाभ मिलना है वे सब दलित हैं। इनके दलित-चिंतन की पोल खुल चुकी...

मोदी ने सारे चेहरों की नकाब खींच दी है। स्वागत कीजिये नए भारत का... अब यहाँ हर व्यक्ति वैसा ही दिखता है, जैसा वह है... शायद सत्तर वर्षों में पहली बार लोकतंत्र सफल हुआ है।

जिन्दाबाद लोकतंत्र!

सर्वेश तिवारी श्रीमुख

गोपालगंज, बिहार।

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