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व्यंग ही व्यंग

बहन जी देखो ............ आँख रहीं तरेर : कृष्णेन्द्र राय

बहन जी देखो ............ आँख रहीं तरेर  :  कृष्णेन्द्र राय
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बहन जी देखो ।

आँख रहीं तरेर ।।

चुनाव मद्देनज़र ।

छवि रहीं उकेर ।।

दे डालीं धमकी ।

हो गया अमल ।।

खेलनी है पारी ।

उखाड़ना कमल ।।

डगर है कठिन ।

चल रहे सब दाव ।।

पर करेगी जनता ।

किससे अब जुड़ाव..?

व्यंग्यात्मक लेखक : कृष्णेन्द्र राय

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