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चुनौतियों पर कुछ लिखा जाना चाहिए.... श्वान कथा - 2

चुनौतियों पर कुछ लिखा जाना चाहिए.... श्वान कथा - 2
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अब यह लिखना कि कुत्ता एक पालतू जानवर है, उसकी चार टांगे, दो कान और एक लम्बी या जलेबी की तरह गोल पूंछ होती है। कुत्ता एक समझदार और स्वामिभक्त जानवर है..ऐसा लगता है मानो कक्षा छह में कुत्ते पर निबंध लिख रहा हूँ।

बात, जब कुत्ते पर चलेगी तो सिर्फ उसके वफ़ादारी का ही ज़िक्र न होगा। बातें और भी उठेंगी। बात, उनके जीवन में आने वाली चुनौतियों की भी होगी, मनुष्यों के बीच उनके समायोजन का भी होगा, संघर्ष की उत्तरजीविता का होगा, मुश्किलों को भी लिखेंगे हम। मादा साथी से संग संयोग श्रृंगार/परस्पर व्यवहार में प्रकृति द्वारा दी चुनौतियों को भी लिखा जायेगा।

कुत्ते पर गौर करने पर मुझे अधिक आश्चर्य इस बात पर है कि मनुष्य जहाँ लूटने-नोंचने में 'भेड़ियों' को गाली के रूप में प्रयोग करते हैं.. मानव जाति में उनको भेड़िया कहा जाता हैं जो अपने कुकृत्य से अचानक अखबार के प्रथम पृष्ठ पर छप जाते हैं। 'भूखा भेड़िया' शब्द ही पर्याप्त है किसी वयक्ति के चरित्र के पोस्टमार्टम करने के लिए लेकिन क्या यह आश्चर्यजनक नहीं कि भेड़िया प्रजाति से ही निकले इस जीव को मनुष्य की सुरक्षा का जिम्मा सौंपा जाता है। रखवाली पर तैनात किया जाता है। मतलब यह कि, अपने अच्छे आचरण के बलबूते,समाज के पूर्वाग्रह को तोड़कर समाज में अपने लिए एक सम्मानित एवं अनुकूल जगह बनाई जा सकती है।

घरों में बड़े शौक से कुत्ते का पाला जाना....जिनके गले पट्टा चढ़ जाये उसे सिर आँखों पर बिठाना। उनके खाने, रहने और सोने का एक बढ़िया इंतजाम, यह तो..सबकी देखी-सुनी है लेकिन कुत्तों की एक बड़ी आबादी.. आवारों की तरह सड़कों पर, घरों से निकलने वाले कूड़ों पर जिंदा हैं। वैसे बहुत से जीवजंतु, खेत खलिहान में घास या चरी खाकर जी लेते हैं..यहाँ तक कि बिल्लियां, घरों में घुसकर चुपके से अपने लिए इंतजाम कर लेती है...लेकिन आवारा कुत्ते न तो घर में प्रवेश पाते हैं और न ही खेत खलिहान उनके किसी काम के हैं... फिर भी वे मनुष्यों से इतना जुड़े हैं कि खाने को भले न मिले फिर भी रहेंगे घूमफिर कर मनुष्यों के ही बीच ही, पूंछ हिलाकर तलवे चाटकर.. वैसे इसमें कोई दो राय नहीं कि कुत्ते मनुष्य जाति के बेहद करीब और और इनके प्रति वफ़ादार हैं किन्तु मनुष्यों का इनके प्रति व्यवहार हमेशा ही संदेहास्पद रहा। आदमी, कुत्ते के रखवाली के बल पर पूरी रात खर्राटे भरता है.. किन्तु कुत्ते अपने दो मिनट के अंतरंग पलों में खतरों से गुजरते हैं या यूं कहें कि कुत्तों को अपने साथी के साथ का मिलन, चुनौतियों की सेज़ है. उसके लिए मुश्किल या तो उसका नर प्रतिस्पर्धी पैदा करता है या हमारे बीच से लाठी लिये कोई नर।

मिलन उपरांत कुत्तों में जननांगों के बीच की तालाबंदी का अभिशाप और उससे भी दर्दनाक, जनता जनार्दन द्वारा ताला तोड़ने की व्यग्रता और ललक... कुत्तों के एक नाजुक पलों में मनुष्य जाति द्वारा किया गया सबसे बड़ा अत्याचार है यह। समझ में नहीं आता कि पांच मिनट में ऐसी कौन सी नैतिकता आड़े आ जाती है इनकी कि लाठी ढूंढने लग जाते हैं। यह आचरण ईर्ष्याजनित है या प्रतिस्पर्धा का कोई भाव कि लोग इस जादुई गठबंधन को तोड़ने के लिए लाठी लेकर दौड़ पड़ते हैं।

अपने शक्ति, आकर्षण एवं कला से मुहल्ले के आठ-दस कुत्तों को पराजित कर मादा साथी को अपने लिए तैयार करने में नर द्वारा संघर्ष की कठिन यात्रा तय की जाती है। अपने वंश वृद्धि के लिए सैकड़ों घात-प्रतिघात एवं घावों को नजरअंदाज करके मिशन पर लगना पड़ता है। कुतिया का गर्भधारण एवं कुत्ते के मस्तक पर घाव दोनों एक दूसरे के पूरक हैं..यदि मुहल्ले की आठ कुतिया गर्भवती हैं तो यह मानकर चलिए की पांच कुत्ते अपना सिर झुकाये सिर पर घाव लिए पागल बने घूमते मिलते हैं। यह एक कठिन चुनौती है! अपने प्रजाति को बढ़ाने के लिए सृजन का बीज बोना, साथ ही साथ अपने नर प्रतिस्पर्धियों के आक्रमण, प्रहार एवं विरोध से लड़ना, सहना.. सभी चुनौतियों और मुश्किलों को पार करके अपने साथी के भीतर अपना प्रतिरूपण प्रेषित करके लौटते वक्त अपने ही दरवाजे में उलझ कर लाचार हो जाना फिर जालिम दुनिया द्वारा लाठी बरसाना.. बताइये! भला कौन! अपनी मादा साथी के सामने लाठी खाना चाहेगा वह भी तब जब उसकी मादा को यह घमंड हो कि मै उसके साथ हथकड़ी में गिरफ्तार हूँ जो दुनिया से लड़कर, जीतकर आया है जिसकी संतानें एक योद्धा के रूप में धरती पर आयेंगी लकिन यह क्या? आज वह मेरे सामने पिट रहा है...ज़लील हो रहा है.. घिसट रहा है.. कोकिया रहा है।

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आज जीवजंतु, पशुपक्षियों की एक लम्बी लिस्ट है जो धरती से विलुप्त होने की दिशा में खड़े हैं भले वह बाघ ही क्यों न हो। इसके पीछे एकमात्र कारण प्रकृति या परिस्थिति के साथ संघर्ष या समायोजन न कर पाना। भोजन, पानी, आवास, शहरीकरण, विज्ञान आदि बहुत से ऐसे कारण हैं जो जानवरों की संख्या में गिरावट के जिम्मेदार हैं। ये जीव-जन्तु अपने वंशवृद्धि में कमजोर साबित हो रहे हैं लेकिन कुत्तों ने ऐसी सभी चुनौतियाँ से लड़ा भी और कुचलकर अपने वंश को बरकरार रखा।

जिसके भोजन, प्रजनन एवं आवास तीनों में संकट और संघर्ष हो यदि वो अपनी संख्या बनाकर चल रहे हैं तो बेशक यह काबिलेगौर है।

कुतिये के भीतर खुद के अंश को प्रत्यारोपित करने की कठिन एवं संघर्षमय यात्रा में अधिंकाश कुत्ते चोटिल और कमजोर हो जाते हैं..कुछ बच जाते हैं कुछ सिर के घाव के कारण पिता बनने के पूर्व ही नगरनिगम के गाड़ी पर लाद दिये जाते हैं।

फिर दूसरी चुनौती शुरु होती है कुतिया के प्रसव पीड़ा के बीच, बच्चे जनने के लिए सुरक्षित एवं गोपनीय स्थान का चयन.. बीसियों घरों से खदेड़े जाने के बाद कहीं कोई जगह ढूंढॅ कर मिट्टी खोदकर अपने पिल्लों को जनना एक बेहद कठिन वक्त होता है। बच्चों की सुरक्षा एवं खुद के पोषण के बीच महीनों सजग रहने में कुतिये का वजन गिरकर आधा हो जाता है..आठ-आठ पिल्ले उसके हड्डियों से भी दूध निकालने के लिये उसके पीछे-पीछे भागते हैं। और उसकी मां आपके घर के कूड़े के भरोसे पर..अपने स्तनों में दूध उतारने के लिए, आपके कूड़े की पॉलीथीन में कुछ ढूंढ लेती है अपने भूख के लिए अपने बच्चों के लिए...

रिवेश प्रताप सिंह

गोरखपुर

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