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व्यंग ही व्यंग

अथ श्रीआरक्षण कथा-४

अथ श्रीआरक्षण कथा-४
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"मिले मुलायम कांशीराम" के बल पर अयोध्या काण्ड के खलनायक के रूप में उभरे मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री तो बन गए पर उनका पाला मायावती से पड़ गया जो हर तरह की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं में मुलायम सिंह से कहीं ज्यादा बढ़ चढ़ कर दीं।
छः-छः महीने के मुख्यमंत्रित्व के जो समझौते हुए थे उसके बीतने के बाद भी जब मुलायम सिंह पद छोड़ने में आनाकानी करने लगे तो मायावती समर्थन वापस लेने में थोड़ी भी झिझक नहीं दिखाईं जिसका बदला सपा के बाहुबलियों ने गेस्ट हाउस कांड से लिया। ५ अप्रैल १९९५ की उस रात यदि समय रहते भाजपा विधायक ब्रह्मदत्त द्विवेदी गेस्ट हाउस में नहीं पहुंचे होते तो मायावती शायद आज जीवित नहीं रहतीं, ये अलग बात है कि उस घटना के एकमात्र गवाह उन ब्रह्मदत्त द्विवेदी को इसकी कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी जब उस घटना के कुछ महीने बाद उनकी हत्या कर दी गई।
मायावती एक तो कुमारी, उसपर कुरूप, उस पर विद्रुप, उस पर से दलित, उस पर से कर्कशा, उस पर से महत्वाकांक्षिणी, कुमारे अटलजी के ऐसी भायीं कि बेचारे उन्होंने उनको "दलित की बेटी" कह कर अपने सिर पर इस आशा में चढ़ा लिया कि आरक्षण की राजनीति में भाजपा पर लगे सवर्णों की पार्टी, इंदिरा गांधी को "दुर्गा" कहे जाने की परिपाटी का जो धब्बा उनपर लगा था, न केवल वह धुल जाए बल्कि १९९६ में होने वाले लोकसभा के चुनावों में भाजपा को उत्तरप्रदेश में एक बड़े जनाधार का समर्थन मिल जाए जो १९९२ के बाद सांप्रदायिकता और धर्मनिरपेक्षता की बहसबाजी में भाजपा से खिसका हुआ लग रहा था। अब मायावती को न केवल एक धर्मपिता अटलजी मिल गये थे बल्कि दो निकम्मे भाई भी मिले लालजी टंडन और कलराज मिश्र। बदले में मायावती ने भाजपा को क्या दिया? तो मायावती ने अटल, आडवाणी नहीं, अडवानी को 'सीरी' कह कर पहली बार जब संबोधित कर दिया तो अटलजी ऐसे गदगदाए जैसे रागदरबारी के 'वैद्य जी' ने अपने नौकर 'सनीचर' को 'श्री मंगल प्रसाद जी' कह कर संबोधित कर दिया हो, वह भी केवल इसलिए कि वैद्य जी के गांव शिवपालगंज के प्रधान की सीट पिछड़ी जाति के लिए आरक्षित हो गई थी और सबसे अहम सवाल यह था कि वैद्य जी का प्रत्याशी कौन होगा?
अटलजी ने मायावती को अपना आशीर्वाद दे दिया और वह मायावती जो आज हैसियत ओम प्रकाश राजभर की है इससे भी कम थी, भाजपा के समर्थन से उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री बन गयीं। यह भाजपा या अटलजी की सबसे बड़ी राजनीतिक भूल थी क्योंकि मायावती, कांशीराम, दीनानाथ भास्कर आदि अपनी सभाओं में सवर्णों के अपशब्दों की झड़ी लगाते आ रहे थे। उस आग में घी का काम कर रहे थे पिछड़े वर्ग के नेता और उसकी सामग्रियां उपलब्ध कराए जा रहे थे वामपंथी विचारक जो आर्यों के बाहरी और यहां तक कि हिंदू देवी-देवताओं और पौराणिक आख्यानों का उल्लेख कर इन सभी से गालियां बकवाए जा रहे थे जो अभी तक जारी है।
अटलजी की इस कूटनीति को यदि किसी ने सबसे अधिक समझा तो वह केवल और केवल नरेन्द्र मोदी ने। राजनीतिक निर्णय वही है जो त्रिकाल सत्य हो, अटलजी को मायावती से 'सीरी' के अलावा कुछ नहीं मिला पर मायावती की उस 'राजनीतिक धोखेबाजी' का जो इन्होंने अटलजी को तब दिया था जब १९९९ में, १३ महीने की अटल सरकार अविश्वास प्रस्ताव के भंवर में फंस गई और लाख गुणा-गणित के बाद भी २७२ का जादुई आंकड़ा १ वोट से फंसता दिखाई दे रहा था, तब मायावती यानी बसपा के लोकसभा में ५ सदस्य थे और भाजपा ने इस मुसीबत की घड़ी में मायावती को याद किया तो वह यह कह कर मुकर गयीं कि वह सांप्रदायिकता का समर्थन नहीं करेंगी, तब भाजपा ने कहा कि 'वाक आउट' ही कर जाइए तो वह बोलीं कि यह भी तो समर्थन ही होगा उनका दल हर हाल में अटल सरकार के खिलाफ वोट करेगा। अविश्वास प्रस्ताव का गणित आकर अटक गया सरकार २७१, विपक्ष २७१। भाजपा, लोकसभा अध्यक्ष पी. ए. संगमा, जो उस समय कांग्रेस से लोकसभा सदस्य थे, को मनाने में सफल हो गयी कि बराबर की स्थिति में वह अपना निर्णायक मत सरकार के पक्ष में दान करेंगे तभी लालू यादव की पार्टी के लोकसभा सदस्य प्रभु नाथ यादव शायद, ने संविधान के एक अनुच्छेद का हवाला देकर कि वह व्यक्ति जो लोकसभा की सदस्यता से अभी इस्तीफा नहीं दिया हो, भले ही किसी राज्य का मुख्यमंत्री ही क्यों न हो, आवश्यकता पड़ने पर वह लोकसभा में आकर मतदान कर सकता है। लालकृष्ण आडवाणी ने इसे स्वीकार किया और तत्कालीन उड़ीसा के कांग्रेसी मुख्यमंत्री गिरधर गोमांग को रातों-रात बुलवा लिया गया। भाजपा की अब सारी उम्मीदें बसपा पर टिक गई पर मायावती टस से मस नहीं हुईं और अटलजी की वह सरकार एक वोट से गिर गई, का बदला नरेन्द्र मोदी ने बसपा को २०१४ में लोकसभा में शून्य कर और २०१८ राज्य सभा में शून्य कर के ले लिया।
नरेन्द्र मोदी अच्छी तरह जानते हैं कि भाजपा के लिए आरक्षण का क्या महत्व है, वह अपने राजनीतिक विरोधियों को बहुत सफाई से साफ करते हैं।

अंतिम भाग ११ अप्रैल तक

नमस्कार!
आलोक पाण्डेय
बलिया उत्तरप्रदेश
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