अथ श्रीआरक्षण कथा-२
BY Anonymous9 April 2018 1:59 PM GMT
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Anonymous9 April 2018 1:59 PM GMT
वीपी सिंह ने इस्तीफा देने से मना कर दिया और कहा कि वह सदन में अपना बहुमत सिद्ध कर देंगे लेकिन हुआ वही जो सबको पता था वीपी का विश्वास प्रस्ताव लोकसभा में गिर गया। आम जनता को इससे कोई बहुत राहत या खुशी नहीं हुई, पूरा देश आरक्षण विरोधी आंदोलन और अयोध्या में कारसेवकों पर मुलायम सिंह और सुरक्षा बलों द्वारा गोली चलाने की घटनाओं को लेकर आंदोलित था और जल रहा था।
एकतरफ जहां आरक्षण को लेकर सामान्य वर्ग के युवक अपनी डिग्रियां और आत्मदाह कर खुद को जलाए जा रहे थे तो दूसरी ओर अयोध्या में हुई घटनाओं के विडियो लुकछिप कर पूरे देश में चलाए जा रहे थे। मुलायम सिंह जो जनता दल से उतरप्रदेश में मुख्यमंत्री बने थे, की भी सरकार भाजपा के समर्थन वापसी से गिर चुकी थी, को कांग्रेस ने समर्थन इसलिए दे दिया ताकि वह अयोध्या मामले को लेकर भाजपा की बढ़ती ताकत को दबा सकें और उन्होंने किया भी वही " जय श्रीराम " जो हनुमान जी का प्रिय मंत्र है, अब वह भाजपा की पहचान बन चुका था, तक को बोलने वालों पर उतरप्रदेश प्रशासन प्रताड़ित किए जा रहा था। एक ओर साध्वी ऋतांभरा और उमा भारती के हिंदू एकता और मुसलमान विरोधी आग उगलते भाषणों के कैसेट तो दूसरी ओर मुलायम सिंह, लालू यादव, कांसीराम आदि नेताओं के आरक्षण के समर्थन में, मुसलमानों के पक्ष में और राममंदिर को लेकर जहरीले बयानबाज़ी के दौर पूरे देश के माहौल को गरमाए जा रहे थे।
अक्टूबर १९९० में, उत्तरप्रदेश में कांग्रेस ने जब मुलायम सरकार को बिना शर्त समर्थन दे दिया तब नवंबर १९९० में थर्ड फ्रंट और चंद्रशेखर जी को गिरी हुई वीपी की जनता दल सरकार के सांसदों को तोड़ कर एक नये गठबंधन को बनाकर सरकार बनाने के आसार दिखाई देने लगे और चंद्रशेखर जी जनता दल के उन ५४ सांसदों को तोड़ ही लिया जो बेचारे अभी-अभी तो हाल ही में १४-१५ महीने पहले मंत्री बने थे।
वास्तव में जब जैसे तैसे वीपी की सरकार बनी तो कांग्रेस को उतनी चिंता नहीं हुई जितनी आरक्षण को लेकर क्षेत्रीय दलों और राम मंदिर मुद्दे को लेकर भाजपा के एकाएक अद्भुत उभार से हुई। कांग्रेस की कमान राजीव गांधी के हाथों में थी जो राजनीतिक सूझबूझ में बिल्कुल राहुल गांधी के पापा ही थे। कांग्रेस थिंक टैंक ने अपने लायक अभी चुनाव का वातावरण न भांप कर, प्रधानमंत्री बनने के लिए आतुर चंद्रशेखर जी को बाहर से समर्थन देने की घोषणा कर दिया। थर्ड फ्रंट ने भी चंद्रशेखर जी को बाहर से समर्थन दे दिया और इसप्रकार इनके चउवनों सांसद मंत्री और यह प्रधानमंत्री बन गए।
हम बलिया वालों के लिए यह गौरव की बात थी, है और सदा रहेगी। बलिया सहित देश के अधिकांश सामान्य वर्ग के लोगों को लगा कि शायद चंद्रशेखर जी मंडल आयोग नियमों को हटा देंगे पर वह बेचारे कांग्रेस के ऊपर बुरी तरह आश्रित थे, पर चंद्रशेखर जी को भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में तीन बातों को लेकर सदा सम्मान के साथ याद किया जाएगा एक- वह आरक्षण की आग में जल रहे देश को शांत कराने में भारी सफल रहे। २- उन्होंने अपने वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा का आर्थिक सलाहकार डॉ मनमोहन सिंह को बनाया और तीसरा चुनाव आयुक्त के रूप टी एन शेषन की नियुक्ति किया हालांकि तिरुनल्लई नारायण शेषन, राजीव गांधी के चहेतों में से एक थे।
पर कांग्रेस तो कांग्रेस थी, है और रहेगी अगर धोखेबाज, दगाबाज, कृतघ्न, नीच, पतित, धूर्त, क्रूर, मासूम हिटलर आदि के लिए एक शब्द लिखने को कहा जाय तो वह शब्द अभी तक तो 'कांग्रेस' ही है, कांग्रेस ही है, कांग्रेस ही है। इस कांग्रेस ने चंद्रशेखर सरकार को राजीव गांधी के फोन टैपिंग का आरोप लगाकर मात्र ढाई महीने के भीतर ही गिरा दिया। यह भोड़सी का संत लाख कहता रहा कि यह आरोप झूठ है पर कांग्रेस नहीं मानी तो चंद्रशेखर जी ने इस्तीफा दे दिया। अंतरिम प्रधानमंत्री के रूप में वह अपने पद पर बने रहे। भारत में १९९१ के आम चुनाव हुए और उसी चुनाव के चौथे चरण के दौरान २० मई १९९१ को तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में राजीव गांधी मानव बम विस्फोट में मारे गए। चुनाव परिणाम अब फिर भावुक हो उठा। मंडल-कमंडल किनारे हो गया और कांग्रेस को दूसरी बार लाश का इतना सहारा मिल गया कि वह बहुमत के काफी करीब पहुंच गई शायद २२१ सीटें। भाजपा भी आगे बढ़ने में सफल रही जब १०० के पार लगभग १२० सीटें जीतने में सफल रही साथ ही साथ उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकारें बनीं।
किंतु केंद्र में बहुमत इस बार भी किसी को नहीं मिला था और उससे भी बड़ा सवाल यह था कि यदि कांग्रेस सरकार बनाती है तो प्रधानमंत्री कौन होगा?
प्रधानमंत्री बनने का सपना आजतक अगर सबसे ज्यादा बार किसी का टूटा तो वह है श्री प्रणव मुखर्जी का। जब १९८४ में इंदिरा गांधी की हत्या हुई तो इनके अरमान के पर राजीव गांधी कतर दिए फिर जब राजीव गांधी की हत्या हो गई और सोनिया गांधी ने राजनीति में आने से साफ इंकार कर दीं तो प्रणब दा के फिर अरमान जगे लेकिन उसपर पामुलपति वेंकट नरसिम्हा राव ने पानी फेर दिया और वह प्रधानमंत्री बन गए। तीसरी बार थोड़ा सा विषयांतर, तीसरी बार २००४ में जब सोनिया गांधी और डा० ए पी जे अब्दुल कलाम में ऐसा न जाने क्या हुआ क्या सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री बनने से इन्कार कर दिया तो फिर प्रणव दा के अरमां जवां हुए तो डॉ मनमोहन सिंह के चलते सदा के लिए मौन हो गया। खैर १९९१ में पी वी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बन गए और उन्होंने डा० मनमोहन सिंह जो वित्त मंत्री के सलाहकार के पद पर थे, को सीधे वित्त मंत्री ही बना दिया। १९९२ में इन्होंने भारत के आर्थिक उदारीकरण की नीतियों को लागू किया जिससे प्राइवेटाइजेशन का एक ऐसा रोचक दौर आया जो आरक्षण की आग को समुद्र जैसी लहर से डूबो दिया। परंतु इससे घोटाले का एक भयानक प्रेत भी प्रकटा शेयर घोटाला, लालू का चारा घोटाला, लक्खू भाई पाठक की डायरी, हर्षद मेहता द्वारा प्रधानमंत्री को ही डायरेक्ट एक करोड़ रुपए के घूस दिए जाने के आरोप, बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा प्रधानमंत्री नरसिंह राव की सरकार बचाने के लिए उन सांसदों को जो तब २० हजार रूपए तक का वेतन पाते थे, ५-५ करोड़ रूपए तक के लेन देन के आरोप लगने लगे।
इन सभी घटनाओं ने आरक्षण के प्रेत को उलझनों में डाल दिया, और अटलजी के युग का उदय होने लगा।
नमस्कार!
आलोक पाण्डेय
बलिया उत्तरप्रदेश
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