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व्यंग ही व्यंग

सावन के महीने में पवन का शोर न हो, युवाओं का मन मोर न हो, नेता चोर न हो और अधिकारी हरामखोर न हो, तो भारत भारत नहीं लगता

व्यंग्य को छोड़िये देव, इतने जोर से राम का नाम न लीजिये, यह सेकुलर हिंदुस्तान है। राम का नाम लेने पर आपके खिलाफ फतवा भी जारी हो सकता है। मैं सटक गया। एक बुद्धिजीवी पति को पत्नी के सामने सटक के ही रहना चाहिए, नहीं तो सटका गिरने का भय रहता हैं। मैंने कहा- आज सुबह में क्या खाया था देवी, जो धड़ाधड़ व्यंग्य के गोले दागे जा रही हैं?

सावन के महीने में पवन का शोर न हो, युवाओं का मन मोर न हो, नेता चोर न हो और अधिकारी हरामखोर न हो, तो भारत भारत नहीं लगता
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सावन के महीने में पवन का शोर न हो, युवाओं का मन मोर न हो, नेता चोर न हो और अधिकारी हरामखोर न हो, तो भारत भारत नहीं लगता। बारिस में भीगने के बाद मेरा मन भी मोर हो चूका था।मैंने पत्नी से कहा- देवी, आज लिट्टी चोखा बनातीं तो बड़ा आनंद आता।
पत्नी ने मुस्कुराते हुए कहा- देव, आर्यावर्त में पति के पसन्द का खाना और ईमानदारी का जमाना, दोनों कल्पना की चीज है, पर मुझे भी आज लिट्टी खाने का ही मन है, सो बना देती हूँ। सच पूछिये तो लिट्टी और लोकतंत्र दोनों एक जैसे होते हैं, दोनों के ऊपर कुछ और होता है और नीचे कुछ और।
देवी की बातें मुझे अचंभित कर गयीं। मैंने सर ठोक के कहा- हे राम! यह व्यंग्य की बीमारी तुम्हें भी लग गयी? अरे एक घर में दो दो व्यंग्यकार ठीक नहीं प्रिये....
उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा- व्यंग्य को छोड़िये देव, इतने जोर से राम का नाम न लीजिये, यह सेकुलर हिंदुस्तान है। राम का नाम लेने पर आपके खिलाफ फतवा भी जारी हो सकता है।
मैं सटक गया। एक बुद्धिजीवी पति को पत्नी के सामने सटक के ही रहना चाहिए, नहीं तो सटका गिरने का भय रहता हैं। मैंने कहा- आज सुबह में क्या खाया था देवी, जो धड़ाधड़ व्यंग्य के गोले दागे जा रही हैं?
उनकी मुस्कुराहट और बढ़ गयी। बोलीं- मैं क्या आपके शिक्षा विभाग की अधिकारी हूँ जो सुबह उठते ही घूस खाने लगूंगी? मैं एक अल्पवेतनभोगी शिक्षक की पत्नी हूँ, खाना से ज्यादा गम खाती हूँ और गहनों से ज्यादा "अभाव के चिन्ह" पहनती हूँ। मैंने आज सुबह भी भारत की करोड़ों स्त्रियों की तरह पति की सेवा का सौगन्ध खाया था।
मैं डर से थर थर कांपने लगा। पत्नी का यह तेवर मुझे कभी नहीं दिखा था। मैंने हाथ जोड़ कर कहा- हे देवी, यह कौन सा रूप धारण कर लिया? भले मुझे दो चार घूंसे मार लो, पर अपने पूर्व के रूप में आ जाओ। तुम्हारा बकवास घर को स्वर्ग बना कर रखता है, तुम्हारी बुद्धिजीविता घर को दोजख बना देगी। मुझ पर दया करो।
उनकी मुस्कान मायावती की सम्पत्ति की तरह बढ़ गयी। खिलखिलाते हुए बोलीं- अरे मुर्ख, भारत के लोकतंत्र में जन्म लेने के बाद भी आपको लगता है कि आपको मारा जा सकता है? अरे दुनिया के सबसे निरीह व्यक्ति, तुम्हें तो लोकतंत्र थूर चूका है; तुम्हें मार कर मैं अपने हाथ गंदे क्यों करूँ?
मैं समझ गया, यह मेरी किसी भूल का बदला लेना चाहती है। मैंने हाथ जोड़ कर कहा- हे झाड़ूधारिणी, कृपा कर मुझे मेरा वह अपराध बता दो जिसकी सजा तुम मुझे दे रही हो, ताकि मैं प्राश्चित कर सकूं?
देवी ने इस बार बिना मुस्कुराये कहा- आपके अपराध गिन दिए जांय, तो आपको कम से कम दस वर्षों तक संसद की कार्यवाही को लाइव देखने की सजा मिलेगी। जानना है तो सुनिये, आपका सबसे बड़ा अपराध है कि आप आम आदमी हैं। आपका दूसरा बड़ा अपराध यह है कि आप हर चुनाव में वोट दे कर किसी भ्रष्ट को ही नेता चुनते हैं। आपका तीसरा अपराध यह है कि आपने आज तक काला धंधा अपना कर अमीर बनने का प्रयास नहीं किया। आपका चौथा अपराध यह है कि आप जमीन से जुड़े आदमी हैं, जिन्हें लोग आजकल गधा कहते हैं। कितने गिनाऊँ? अंत में बस यह जानिए कि आपका सबसे बड़ा अपराध यह है कि आप काफिर हैं। और गिनाऊँ?
मैं त्राहि त्राहि कर उठा। मैंने तनिक कठोर हो कर कहा- सुनो देवी, कसम केजरीवाल की अगर तुमने मुझे और परेशान किया तो मैं कांग्रेस ज्वाइन कर लूंगा। मुझे सच सच बताओ, हुआ क्या है?
देवी मुस्कुरा उठीं। बोलीं- लिट्टी बनाने का मन नहीं, दलपीठवा खाएंगे?
मैंने कहा- अरे तो यही क्यों नहीं कह रही थी? अरे चार दिन बिना खाये रह सकता हूँ, पर तुम्हारा व्यंग्य नहीं झेल सकता।
उन्होंने कहा- जाइये जाइये, काम करने दीजिये। मैं एक आम गृहणी हूँ, मुझे हजारों काम होते हैं।
मैं भगा। मेरा मन अब मोर नहीं, मास्टर हो चूका था। साढ़े तेरह हजार की तनख्वाह वाला....
सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।
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