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राजनीती

जनमंच : विरोध के स्वर तेज,'राज' के कान बजने लगे!!

जनमंच : विरोध के स्वर तेज,राज के कान बजने लगे!!
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अजमेर। अगस्त का क्रांति माह अपने उफान पर है। महात्मा गाँधी के इसी आजाद भारत ने न जाने कितने संघर्ष देखे और झेले हैं। बावजूद, राजनीति की कुत्सित आत्माओं के, देश को लूटने खसोटने और आपस में किसी भी आधार को लेकर जनता को बाँट देने के बावजूद यहां 'लोकतन्त्र' टस से मस नहीं हो पाया है। नेता जनता की जागरूकता देखकर , हैरान हैं।

राजस्थान, वीरों की भूमि कहलाता है। अब, यहाँ,पुलिस के डण्डे खाने वाले किसान हों, अथवा, पानी की त्राहि त्राहि पर, अजमेर के ही घरने पर अड़े कानून के पैरोकार हो । या फिर रोडवेज के कर्मी, सरकारी शिक्षक अथवा पानी की किल्लत पर मटके फोड़ती महिलाएं व बिजली के बिलों से, करन्ट खाते लोग। लगता यहि कि, सभी अपने अपने अधिकारों की रक्षा और कर्तव्य बोध से जागकर,एकता की, मौन स्वीकृति दे रहे हैं। वाकई, शहर ने, स्मार्ट सिटी की ओर कदम बढ़ा दिये हैं।

मोदी महाशय की यात्रा को चौबीस घन्टे बचे हैं।प्रशासन, हर तरह मुस्तैद है। जनता किसी भी हालत में, काले कपड़े, काले झण्डे बैनर अथवा रूमाल तक लेकर सभा स्थली तक नहीं जा सकती। और तो और एक दैनिक के ताजा कार्टून के अनुसार तो, काला चश्मा भी बैन है, चाहे कोई हो। डर है, कि, काली करतूतों पर, मोदी महाशय कहीं सरकार के कान ना खींच दें। बस! उधर प्रदेश के 23 दिनों के 6 दौरों के बाद, यह कहते,एक्सपोज हो लिये हैं, कि, पार्टीगत कार्यकर्ताऔं के साथ, सारे गिले शिकवे, मेरे खाते में

डाल दो, चुनाव बाद सब सैटल कर देंगे। देखा आपने, वाहहह ! क्या दमदार बोल हैं !!

लोकतन्त्र मे, विरोध होना कोई, नई प्रथा नहीं है। फिर यह देश तो,दुनिया का सबसे महान लोकतन्त्र कहलाता है। इसमें नया कुछ भी नहीं है।

नया है, तो बस ,यहि की, जनता की मौन स्वीकृति ने अपनी आन बान और शान के मुताबिक 'एकता के सूत्र' मे बँधने की घन्टी बजादी है। वैसे भी चुनाव सिर पर आ लिये हैं। विपक्ष तो पहले ही यहाँ सरकार बदलने की ताल ठोके बैठा है। सरकर बैकफुट पर आगई है, और मोदी महाशय के सामने विरोध घटाने की गरज से, पैट्रोल, डीजल के भावों सहित सरकारी नुमाइन्दों सहित पानी की मांगों पर ठण्डे छींटे छिड़कने के प्रयास तेज कर दिये हैं।

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* शमेन्द्र जड़वाल.

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