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मंत्रियों की जुबान पर लगाम जरूरी :अनिल गलगली

मंत्रियों की जुबान पर लगाम जरूरी :अनिल गलगली
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महाराष्ट्र की ठाकरे सरकार के 100 दिन पूर्ण हो चुके हैं. सरकार आज गिरेगी, कल गिरेगी इस तरह की अफवाहें बाजार में गर्म थीं, लेकिन सरकार गिरी नहीं सरकार में जो मंत्री बने हैं।

उनके विवादित बयानबाजी से मुख्यमंत्री उद्धव बालासाहेब ठाकरे सहमत नहीं दिखते, 100 दिन पूरे करनेवाली सरकार को अगर पूरे 5 साल पूर्ण करने हैं, तो निश्चित तौर पर बयानबाजी करनेवाले उन मंत्रियों के जुबान पर लगाम कसने की आवश्यकता है।

महाराष्ट्र की राजनीति में शिवसेना को साथ में लेकर एनसीपी और कांग्रेस ने महाविकास आघाड़ी का गठन किया है, इस गठन के पहले ही पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने रणनीति के तहत एनसीपी के वर्तमान उपमुख्यमंत्री अजित पवार को अपने साथ लेकर कुछ घंटों वाली सरकार बनाने का प्रयास किया था।

यह प्रयास विफल हुआ और शरद पवार के मार्गदर्शन में महाविकास आघाड़ी की सरकार बन गई।

इस सरकार में तीन अलग-अलग दल हैं, इसमें शिवसेना हिंदुत्व पर जोर देती है, कांग्रेस का दारोमदार अधिकांश मुस्लिम वोटों पर है, वहीं एनसीपी बिखरे हुए वोटों पर राजनीति करती है. इसमें सबसे प्रमुख मुद्दा मराठी मानुष का है,

शिवसेना ने सत्ता संभालते ही मराठी और हिंदुत्व इन दोनों मुद्दों को और कसकर बांधने का काम किया. इसी रणनीति के तहत उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बनने के बाद दूसरी बार अयोध्या की यात्रा पर जा चुके हैं, उद्धव बालासाहेब ठाकरे का सौ दिन का परफार्मेंस कुछ बुरा नहीं है, उन्होंने आम आदमी को केंद्र में रखकर जो अलग-अलग निर्णय लिए उससे शिवसेना को तो बल मिला ही कांग्रेस और एनसीपी को भी मजबूती मिल गई है, शिवभोजन थाली से लेकर किसानों की कर्ज माफी, काफी अच्छे ढंग से ठाकरे सरकार ने कार्यान्वित किया, इन कामों को आम जनता में ले जाकर भुनाने की आवश्यकता है।

लेकिन दुर्भाग्य से महाविकास आघाड़ी सरकार के मंत्री विवादित बयानबाजी कर सरकार की छवि को कहीं न कहीं दाग लगाने की कोशिश कर रहे हैं।

ठाकरे सरकार के कई एेसे मंत्री हैं, जो अपने विभाग को छोड़कर राज्य के किसी भी मुद्दे में अपना तर्क देने से पीछे नहीं हटते, इससे उस मंत्री का मंत्रालय और बयानबाजी का मुद्दा एक दूसरे से मेल नहीं खाता दूसरी बात यह है, कि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे तक कोई बात पहुंचने के पहले ही मंत्रीगण सार्वजनिक सभाओं में उन बातों का जिक्र करते हैं, जिसका कोई प्रस्ताव बनाया ही नहीं गया. महाराष्ट्र सरकार के हर एक निर्णय में मुख्यमंत्री की भूमिका महत्वपूर्ण मानी जाती है, लेकिन दुर्भाग्य से अपनी शेखी हांकने के चक्कर में मंत्रीगण ऊलजुलूल बयान देकर खुद की तो किरकिरी करते ही हैं, साथ ही साथ महाविकास आघाड़ी को लक्ष्य करने का मौका विपक्ष को देते हैं, शायद इन्हीं वास्तविकता के चलते मुख्यमंत्री उद्धव बालासाहेब ठाकरे ने स्पष्ट किया है, कि हर एक मंत्री अपने-अपने विभाग तक सीमित रहें।

जिस तरह से महाराष्ट्र में महाविकास आघाड़ी का गठन हुआ, उससे सर्वाधिक जली-भुनी एक ही पार्टी है, भाजपा उस पार्टी के पास विधायकों की संख्या सौ के पार होने से विपक्ष के तौर पर मंत्रियों की शेखचिल्ली के चलते सरकार को शर्मिंदगी भी झेलनी पड़ सकती है विपक्ष मजबूत है, इसलिए शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस पार्टियों के नेताओं को अपनी सीमाओं में रहने की आवश्यकता है।

Lहै, तो उस निर्णय की जानकारी मुखिया के तौर पर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव बालासाहेब ठाकरे के जरिए ही सार्वजनिक होनी चाहिए यही नैतिकता और यही मंत्रियों के लिए आचार संहिता।

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