पूर्व आतंकियों की पत्नियों ने पीएम मोदी से लगाईं गुहार, मांगी भारत की नागरिकता
श्रीनगर, । आत्मसमर्पण कर चुके कश्मीरी आतंकियों की पाकिस्तानी पत्नियों ने शनिवार को केंद्र और जम्मू-कश्मीर सरकार से भारत की नागरिकता दिए जाने की अपील की। पुनर्वास योजना के तहत नियंत्रण रेखा के उस पार से लौटीं इन महिलाओं ने अपनी मांग को लेकर प्रदर्शन करते हुए कहा कि राज्य और केंद्र सरकार या तो भारत की नागरिकता दे या हमें प्रत्यर्पित करे।
महिलाओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक से मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की है। महिलाओं का कहना है कि राज्य की नागरिकता हासिल करना हमारा अधिकार है। जैसा कि दूसरे देशों में पुरुषों से शादी करने वाली महिलाओं के साथ होता है, उसी तरह हमें भारत की भी नागरिकता मिलनी चाहिए।
प्रदर्शन कर रही महिलाओं में शामिल जेबा ने संवाददाताओं से कहा कि हम सरकार से अपील करते हैं कि केंद्र और राज्य सरकार या तो हमें यहां की नागरिकता दे या हमें प्रत्यर्पित करे। वहीं साफिया नाम की महिला ने कहा कि हमारा एक मानवीय मुद्दा है। हमारे लिए कई वादे किए गए थे लेकिन एक भी पूरा नहीं किया गया। हमारी यहां कोई पहचान नहीं है। हममें से कई महिलाएं ड्रिपेशन में हैं।
बता दें कि ये पाकिस्तानी महिलाएं पिछले दशक में अपने पतियों के साथ कश्मीर पहुंची थीं। इनका आरोप है कि राज्य सरकार उन्हें पाकिस्तान और पीओके में उनके परिजनों से मिलने जाने के लिए यात्रा दस्तावेज नहीं उपलब्ध करा रही है। प्रदर्शनकारी महिलाओं का कहना है कि हमारे लिए भी कारवां-ए-अमन बस सेवा (श्रीनगर-मुजफ्फराबाद) जैसी पहल होनी चाहिए ताकि हम अपने परिवारों से मिल सकें।
उल्लेखनीय है कि करवां-ए-अमन बस सेवा श्रीनगर और पीओके में मुजफ्फराबाद के बीच चलती है। भारत और पाकिस्तान के बीच विश्वास बहाली के उपायों के तौर पर यह बस सेवा साल 2005 में शुरू की गई थी। परेशान हाल इन महिलाओं ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान और मानवाधिकार संगठनों से भी गुहार लगाई है कि वे उनकी समस्या पर संज्ञान लें।
गौरतलब है कि पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने साल 2010 में उन कश्मीरी आतंकियों के लिए पुनर्वास नीति की घोषणा की थी जो साल 1989 से 2009 के बीच में पाकिस्तान चले गए थे। हथियारों का प्रशिक्षण के लिए नियंत्रण रेखा (एलओसी) पार कर चुके सैकड़ों कश्मीरी अपने परिवार के साथ 2016 तक नेपाल की सीमा से होकर लौटे थे जिसके बाद केंद्र द्वारा यह नीति बंद कर दी गई थी।