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भोजपुरी कहानिया

गाँव, मनोहर- संगीता की शादी और कोरोना माई

गाँव, मनोहर- संगीता की शादी और कोरोना माई
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नैसर्ग भले महाराष्ट्र को तबाह कर रही हो, पर गाँव घर के किसानों के जीवन पर मोती बरसा रही है। पछुआ हवा के साथ बारिश की छोटी बूँदें जब किसान की भाग्य रेखा पर गिरती है तो लगता है जैसे मजदूर के माथे पर पसीने की फसल उग आई हो।

कोई खेतों में है तो कोई रास्तों में। कोई मक्के की कटाई में व्यस्त है, तो कोई धान की बुआई में। कोई खेत में पानी रोकना चाह रहा है तो कोई खेत से निकालना। किसी ने बीज खरीद लिये तो किसी ने खाद।

ये सिर्फ किसानों के जीवन में ही संभव है कि खाद, पानी और मेहनत का संयुक्त निकासी और प्रवेश द्वार है। वरना शहर के आधुनिक हाथों में तो हर चीज को मात्र स्टॉक कर लेने का ही सौंदर्य प्राप्त है।

इधर कोरोना में लगभग सारे मजदूर गाँव लौट आये हैं। भीड़ की एकजुटता और सामाजिक मनोभाव को देख लें तो लगेगा कि अपने ही गाँव के पूरब टोला के मनोहर का शादी पश्चिम टोला के किसी संगीता से हो रही है।

स्कूलों में ठहरे मजदूर बारातियों की तरह लग रहे हैं। सड़क, चौराहों पर उग आये हरे नये पेड़ बारातियों की सेवा में टयूबलाइट की तरह चमक रहे हैं। स्कूल के मास्टर और आंगनवाड़ी सेविका क्वारीनटीन मेहमानों के लिए तकिया, बेडशीट, नाश्ता, पानी, मास्क और सेनेटाइजर उपलब्ध करवा रहे हैं।

कोई जनरेटर में डीजल डाल रहा है। तो कोई ड्रम में पानी भर रहा है। किसी ने आलू खरीद ले आया है। तो कोई कह रहा है गरम मसाला तो अइबे नहीं किया। कहीं बत्ती जल रही है कहीं अंधेरा है।

मेहमान सुखभोगी होते हैं चाहे उनकी मौसी का बरियाती हो या सरकारी सुख का आवंटन। एक मजदूर मेहमान ने तो सरकारी बेडशीट पर गोड़ फैलाते यह भी कह दिया कि हम तो नीतीश जी के साली के बियाह में आये हैं और बेबस्था तो देखिये साला इससे अच्छा बेबस्था तो चनेसर दास के बेटा के बरियाती में था।

एकदम कोई कमी नहीं होने दिया था। क्या मान सम्मान मिला था, दिल गदगद हो गया था। पर साला रसगुल्ला एक्के ठो चलाया था, काला वाला देबे नहीं किया। कितनो माँगे पर नहीं दिया कहा कि लड़की के पिताजी एक्के ठो देने बोले हैं।

अब चर्चा बियाह, बरियाती पर जोड़ पकड़ लिया है। सबने अपने अपने जीवन में हासिल रसगुल्ले पर चर्चा छेड़ दिया। किसी को साली पसंद आयी तो किसी को दुल्हन। किसी को बुनिया पसंद आया तो किसी ने कहा साला पूड़ी भी सही से नहीं छाना था हो लगता था बिस्कुट खा रहे हैं। साला बोलिये तो पूड़ी हेतना टाइट होता है जी। जगनाथ बाबा के तो दाँते टूट गया था।

गाँव में वैसे भी कोरोना जैसे बरियार विषाणु पर मजदूर आदमी क्या बात करे ? सब काम मजदूरे करेगा ? WHO और AIIMS किसलिए है ? एक दो ने गलती से कमान संभाला भी तो देवी देवताओं से भरे देश को एक और देवी देवता दे दिया। कोरोना माई।

अभी कुछ दिन पहले कोरोना के माय, मौसी जिंदाबाद करने वालों ने कब कोरोना को देवी-देवता बना लिया ये न तो वुहान के नागरिकों को पता चला, न ही भोजपुरी के अश्लील गायकों और महानायकों को।

किसी ने तो ये भी कह दिया कि कोरोना माई को शुकर और सोमार को सेनुर चढ़ाने से फट से कोरोना भाग जाएगा। कोई नदी में जाकर स्नान कर रही है, कोरोना का छठ पूजा मना रही है। किसी ने कहा कि हे कोरोना माई हमर बाल बुतरू के नय पकड़ीहा नौ किसिम के खाना चढ़इबो।

पूरा विश्व जिसे वायरस मान रहा है, उसे भारत में देवी-देवता मान लिया गया है। जिससे लड़ने की जरूरत है उसे पूजा जा रहा है। अब देखते हैं कोरोना का कोई टीका निकलता है या वुहान भी इसे पूजना शुरू करता है।

जय हो।

जय कोरोना माई।

अभिषेक आर्यन।

चित्र- मोहन संजू

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