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भोजपुरी कहानिया

मजाकिया : आशीष त्रिपाठी

मजाकिया : आशीष त्रिपाठी
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बड़े भाई हरिनाथ पढ़े - लिखे विद्वान आदमी थे , उनके पीछे लोगों का हुजूम और उनके द्वारा बड़े भाई की प्रशंसा देख रतिनाथ को कोफ्त होती । रतिनाथ के पास विद्या के नाम पर ऐसा कुछ नहीं था जिसके सहारे वो बड़े भाई को टक्कर दे पाएं लिहाजा उन्होंने एक नुस्खा निकाला , लोगों को हँसा - हँसा कर आकर्षित करने का , हास्य भी ऐसा जिसे सार्वजनिक रूप से कहने - सुनने में शर्म आ जाये । कुछ हद तक सफल भी हुए । छोटा ही सही एक वर्ग इनके बेहूदा मजाक पर पेट पकड़ कर हँसता था , रतिनाथ की तालियों और प्रशंसा की कुंठा को इस कृत्य से शान्ति मिलती थी । गाँव जवार के बड़के मजाकिया घोषित हो चुके थे ।

राह चलते लोगों से उनके चाल , पहनावे , बोली आदि को लक्ष्य करके ऐसा मजाक करते कि सामने वाला तिलमिला कर रह जाय । रतिनाथ बाबा को सबसे अधिक आकर्षित करते थे हाइड्रोसील के मरीज । उन्हें देखते ही इनकी बाछें खिल जातीं और ठहाका मारकर पूछ बैठते - " तुम्हारा बत्तख कितने सेर का हुआ ? उड़ना सीखा या नहीं ?"

एक तो व्यक्ति खुद ही रोग से ग्रसित ऊपर से रतिनाथ का चिढ़ाना , बड़ी ही दुःखद स्थिति हो जाती । लेकिन रतिनाथ को इन सबसे कोई मतलब नहीं था । उन्हें बस समाज को अपनी ओर आकर्षित करना होता था , उनकी तालियाँ सुननी होती थीं ।

उनका लड़का भी खूब प्रतिभावान था । पिता की वाक्पटुता और विनोदी स्वभाव देख देख कर बड़ा हुआ था , लिहाजा बाप सरपुतिया त बेटा परोरा वाली कहावत को चरितार्थ करने लगा । उसकी बाल मंडली में उसके पिता की मंडली से ज्यादा भीड़ जुटती , पिता बालक को समाज में प्रतिष्ठित देख भीतर ही भीतर खुश होते ।

एक बार रतिनाथ और उनके सुपुत्र किसी काम से एक साथ शहर पहुँचे । लड़के ने कहा - " बाबूजी ! वो देखिए चाय की दुकान पर बत्तख मामा बैठे हैं ! "

रतिनाथ के साले साहब भी इस बीमारी से ग्रसित थे और पिता पुत्र अक्सर उनकी बीमारी के कारण उनका मजाक उड़ाते रहते थे । साले को चाय की दुकान पर देखकर ये बड़े प्रसन्न हुए , बेटे को साथ लिए जा धमके । आँखें मटकाकर पूछा - " का बाबू ! बत्तख कितना बड़ा हुआ ?"

साले देवानंद ने मुस्कुरा कर पाँव छुआ - " बैठिए जीजा जी ! चाय मंगाए ?"

रतिनाथ कुछ बोलते तब तक बालक बोले - " पहले बत्तख उड़ा कर दिखाइए मामा !"

देवानंद अपने सामने बैठी लड़की को देखकर लज्जित हुए जा रहे थे । उस लड़की से अनजान इन पिता पुत्र की बत्तख चर्चा प्रगति पर थी ।

अंततः लड़की ने चुप्पी तोड़ी - " ये कैसी चर्चा चल रही है ?"

रतिनाथ और उनके बालक उस लड़की की ओर देखकर अट्टहास कर बैठे । देवानंद शर्माते हुए बोले - " अरे ये जीजा जी मजाक कर रहे हैं "

-"इसमें मजाक की क्या बात है ? अगर सच में बत्तख रखे हैं तो दिखा क्यों नही देते बच्चे को ? पशु पक्षियों से प्रेम तो अच्छी बात है ।"....लड़की ने कहा ।

देवानंद बेचारे क्या कहें ? इधर भांजे को मजा आ गया - " हाँ मामा ! अब तो ये भी कह दी हैं , उड़ाइये बत्तख "

देवानंद के बर्दाश्त के बाहर हो चुका था अब । शादी डॉट कॉम पर इस लड़की को उनकी प्रोफ़ाइल पसंद आई थी , आज पहली ही मुलाकात थी और इन बाप बेटों ने इसमें बत्तख पुराण छेड़ दिया । कई साल से कुंआरेपन का दंश झेल रहे देवानंद ने चाय की भट्ठी से एक लकड़ी निकाला और सारी इज्जत मर्यादा को ताख पर रखकर पिता - पुत्र को अच्छे से कूट दिया । देवानंद का यह आक्रामक रूप देख लड़की भाग खड़ी हुई , यह देख इन्होंने दो - चार प्रहार और कर दिए । भीड़ जुटी , पुलिस आई । दारोगा ने देवानंद का कॉलर धरा - " गुंडई !!!आयं ?"

देवानंद भोकार छोड़कर रोये , तब तक उनकी नजर सिपाही के दीर्घाकार बत्तख पर पड़ी । हाथ जोड़कर बोले - " सरकार ये दोनों मेरे रिश्तेदार हैं , मेरी हाइड्रोसील की बीमारी पर मेरा मजाक उड़ाते हैं , कहते हैं बत्तख उड़ा कर दिखाओ । आज लगा लगाया रिश्ता इनकी वजह से कट गया ।"

दारोगा भुक्तभोगी आदमी था । ऐसा लगा कि देवानन्द की सारी पीड़ा उससे होकर गुजर रही है ,ऊपर से चाय वाले कि शहादत भी काम आई । देवानंद का कॉलर छोड़ बाप बेटे की गर्दन पड़ी - " बत्तख उड़ते देखना है तुम ससुरों को न ? चलो बड़ी जेल सालों । वहाँ बहुत से बत्तख वाले हैं , छः महीने वहीं रहकर बत्तख उड़ाना "

रतिनाथ घिघियाये - " बच्चे को छोड़ दीजिये सरकार , जिंदगी खराब हो जाएगी "

दारोगा चिल्लाया - " बड़े चालू हो बुढ़ऊ , अकेले - अकेले बत्तख उड़ाओगे , लड़के को दीन दुनिया नहीं देखने दोगे ?"...कहकर दोनों को जीप में धकेल दिया ।

आशीष त्रिपाठी

गोरखपुर

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