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भोजपुरी कहानिया

(कहानी) रिश्ता... : आशीष त्रिपाठी

(कहानी) रिश्ता... : आशीष त्रिपाठी
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राकेश की माता सुशीला जी की गायत्री देवी से पहली मुलाकात हनुमान मंदिर की सीढ़ियों पर हुई थी । दर्शन के पश्चात उतरते हुए उन्होंने एक सिक्का गायत्री देवी के पास भी फेंका था । पुराने कपड़े में लिपटी वो औरत मुस्कुराते हुए उनके पीछे दौड़ी - " भिखारिन नहीं हूँ बहन , चिंता ने कुछ यूँ घेरा है कि चक्कर आ गया और सीढ़ियों पर बैठ गई ।"

सुशीला देवी के लिए यह शर्मिंदा होने वाला क्षण था । उस दिन माफी मांगने के साथ वार्ता का जो सिलसिला शुरू हुआ , वो अगले दिन दोस्ती में तब्दील हो गया । बातों बातों में जब पता चला कि गायत्री देवी के पति बहुत पहले ही दुनिया से विदा हो गए तो एक विधवा की दूसरे विधवा के प्रति सहानुभूति में और बढ़ोत्तरी हुई । गायत्री देवी ने बताया कि उनकी एक लड़की भी है जो विवाह के योग्य हो गई है । पति के असामयिक निधन और उसके बाद जीवन में आई कठिनाइयों की गाथा सुन सुशीला देवी सद्भावना की सारी ग्रन्थियां खोल , आँसू बहाती घर लौटीं थी उस दिन ।

ड्यूटी से वापस आये राकेश ने माँ को यूँ गुमसुम देखा तो उसके हाथ खुद ब खुद उनके माथे पर चले गए , फिर किचन की तरफ जाता हुआ बोला - " खुशखबरी है माँ ! मूड ठीक कर लो "

सुशीला जी पीछे से चली आईं - " हट बनाती हूँ न चाय , तू कपड़े बदल "

-"चेहरा क्यों लटका है अम्मा ?" ....राकेश ने चाय का पानी रख दिया था ।

-"गायत्री की एक बेटी भी है , बता रही थी कि पढ़ी - लिखी और सुंदर है "

-"तो इसमें उदास होने जैसी क्या बात है ?"

-"मैं नहीं चाहती कि गरीबी के कारण वो लड़की किसी ऐसे घर में जाय जहाँ उसकी कद्र न हो "

-"मिल चुकी हो क्या उससे ?"

-"नहीं "

राकेश को हँसी आई - " बिन देखी - सुनी लड़की को कहीं बहू बनाने का इरादा तो नहीं कर लिया ?"

सुशीला देवी चाय की कमान खुद संभाल चुकी थीं , खौल रहे पानी में चाय डालकर गैस की आँच कम करके बोलीं - " शादी तो कहीं न कहीं करनी ही है , तो उस दुखियारी की लड़की अगर योग्य है तो उसी से क्यों नहीं ? "

राकेश पर बिजली सी गिरी - "हे भगवान ! आपको मैने अभी कुछ दिन पहले ही बताया था न कि नेहा मुझे पसंद है "

सुशीला देवी मुस्कुराईं - " वही लड़की न जो तुमसे बड़ी कंपनी में काम करती है ?"

राकेश को माँ की आँखें एक्सरे करती नजर आईं , थोड़ा झिझकते हुए बोला - " नेहा से रिश्ता होना मतलब बेहतर भविष्य की बुनियाद रखना है , वो मेरे लिए अपनी कंपनी में बात भी करने वाली है , आज मेरा रिज्यूम लेकर गई वो"

-" मतलब इस रिश्ते की बुनियाद तुम्हारी अच्छी नौकरी के स्वार्थ पर टिकी है ?"

राकेश के स्वर में झुंझलाहट थी - " तो आप क्या चाहती हैं ? उस भिखमंगी औरत की लड़की को ब्याह लाऊँ ? बेहतर भविष्य के लिए इससे बेहतर क्या होगा कि पति - पत्नी दोनों कमाते हों , दोनों की सोच और परिवेश एक समान हो ?"

सुशीला देवी ने चाय दी और चुपचाप अपने कमरे में चली आईं ।

उस दिन गायत्री देवी मंदिर में मिलीं तो अकेली न थीं । साथ में उनकी बेटी पलक भी थी । सुशीला देवी के आश्चर्य का ठिकाना न था । दोनों माँ बेटी की शक्ल तो काफी मिलती थी लेकिन पहनावे में जमीन - आसमान का अंतर था । जहाँ गायत्री देवी अपनी चिर - परिचित गरीबी ओढ़े हुई थीं , वहीं पलक न सिर्फ कपड़ों अपितु आत्मविश्वास से भी काफी समृद्ध लग रही थी । सुशीला देवी को देखते ही उनके पैर छूकर बोली - " अम्मा आपकी ही बातें करती रहती हैं , आज मैंने कहा चलो मिलवाओ अपनी दोस्त से तो साथ लेकर आ गईं । आजकल इन्हें खुश देखकर मुझे बहुत अच्छा लग रहा है , कभी हमारे घर आइये न ?"

-"जरूर बेटा ! आते हैं किसी दिन" ....सुशीला देवी मुस्कुराईं ।

पलक की नजर बार - बार घड़ी की तरफ जा रही थी । कुछ देर सुशीला देवी से इधर - उधर की बातें करती रही फिर विदा लेकर चलती बनी ।

उसके जाते ही गायत्री देवी बोल पड़ीं - " काम पर जाने में देर हो रही थी उसे वरना रुकती अभी "

- "वो नौकरी करती है ?"

गायत्री देवी ने हाँ में सिर हिलाया - " सत्तर हजार पाती है बहन जी "

सुशीला देवी को आश्चर्य हुआ - " फिर भी आप इस तरह से ...."

- " सारा जीवन अभाव में ही गुजरा है बहन ! इसके पिता ने जैसे रखा उसी तरह रहने की आदत पड़ चुकी है और ये आदत बुढापे में तो जाने से रही "....गायत्री देवी शांत भाव से बोलीं ।

-"फिर इसके लिए लड़कों की कौन सी कमी होगी ?"

गायत्री देवी मुस्कुराईं - " ये चाहती है कि शादी ऐसी जगह हो जहाँ ये रोज मुझसे मिल सके । इसके ऊँचे ओहदे के कारण रिश्ते भी ऊँचे ही आये आज तक , दिक्कत सिर्फ एक है कि सारे के सारे या तो शहर से दूर हैं या फिर देश से ही बाहर । "

-"आप उनके साथ भी तो रह सकती हैं ?"

-"ये नहीं होने वाला बहन जी ! ये घर मुझसे नहीं छूटने वाला "

सुशीला देवी मौन थीं । गायत्री देवी ने उनका हाथ पकड़ कर कहा - '' आपके लड़के को उस दिन देखा था मैंने , जब वो आपको मंदिर छोड़ने आया था । कितना अच्छा हो कि पलक आपके घर की बहू बने । पलक की जिद भी रह जायेगी और हमारी दोस्ती भी एक रिश्ते का रूप ले लेगी ।"

गायत्री देवी ने वही बात कही थी जो उनके कहे बिना ही सुशीला देवी के मन में थी । आर्थिक आधार पर गायत्री देवी कमजोर न थीं , उनकी ख्वाहिश अपनी जड़ों से जुड़े रहने की थी और इसी आधार पर उन्हें राकेश में एक अच्छा वर दिखाई दे रहा था । पलक ले साथ एक सेल्फी ले ली थी सुशीला देवी ने , नेहा के संग जीवन बिताने का इरादा कर चुके राकेश के पास तस्वीर भेजने की इच्छा तो नहीं हो रही थी फिर भी गायत्री देवी से बातें करते - करते ही वो तस्वीर राकेश को फॉरवर्ड कर दी ।

आज राकेश थोड़ा जल्दी घर आ गया था । घर में आते ही सुशीला देवी को बाहों में भर लिया - " आपका हुक्म सर आँखों पर "

-"मैं समझी नहीं बेटा !"

राकेश ने उन्हें सोफे पर बिठाया - " अरे माँ ! ये लड़की नेहा की हेड है , इसका रिकमंडेशन मिल जाय तो फिर कहने ही क्या , आप झट से इस रिश्ते के लिए हाँ कह दीजिये "

सुशीला देवी को ग्लानि हुई - " और नेहा ?"

-"उसे शादी के लिए अभी थोड़े ही कहा है "

सुशीला देवी को क्रोध आया - " रिश्तों के यही मायने हैं तुम्हारी नजर में ? कल तक नेहा की जिद थी और आज पलक से शादी की बात करने लगे ? क्योंकि वो तुम्हें तुम्हारी कामयाबी का बेहतर जरिया नजर आ रही है ?"

- " मगर माँ ...."

सुशीला देवी ने बोलने न दिया -"अगर मगर कुछ नहीं बेटा ! रिश्तों के मतलब होने चाहिए , मतलब के रिश्ते नहीं "

राकेश झेंप गया था । सुशीला देवी ने गायत्री देवी को फोन मिलाया - " बहन जी ! यह शादी तो नहीं हो सकती लेकिन हमारा दोस्ती का रिश्ता जीवन भर बना रहेगा , रही बात पलक की शादी की तो अब हम दोनों मिल कर कोई अच्छा सा लड़का ढूंढेंगे , इसी शहर में ।"

चित्र गूगल से ।

आशीष त्रिपाठी

गोरखपुर

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