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रजेश और पिंकी फून पर ... रिवेश प्रताप सिंह

रजेश और पिंकी फून पर ... रिवेश प्रताप सिंह
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पिंकी- आज बाबूजी,अम्मा से हमारी बिआह टालने की बात कर रहे थे.

रजेश- अरे बाप रे ! काहें भला .....

पिंकी- बाऊजी कह रहे थे कि हमरे बस का नहीं कि दू कुंटल पियाज खरीद कर देश भर के लफंगों में लुटा दें.

रजेश-देखो! हम मर जायेंगे पिंकी...लेकिन तुमरे बिन न रह पायेंगे.. बाऊजी से कहो कि हमरे बिआह में सब्जी भले बने न बने, पिआज कटे न कटे.. लेकिन बिआह का डेट खिसकना नहीं चाहिए.. अऊर हाँ! तूमरे बाऊजी, लफंगा किसको कहे?

पिंकी- अरे!आपको नाहीं कहें..आप तो झूट्ठे बात धर लेते हैं...ऊ बरातियों की बात कर रहे थे बाऊजी.

रजेश- अच्छा! हम समझे की हमको लफंगा समझ रहे हैं.

पिंकी- आप भी न ! आपको लफंगा समझते तो आपसे बिआह फिक्स करते हमरा.

रजेश- अम्मा से कहो कि बाऊजी को समझाएं कि बहुत पिआज के भाव के फेर में न पड़े. चुपचाप बिना पिआज की तरकारी बनवावें हम कुछ न कहेंगे उनसें.

पिंकी- देखिए! बात सिर्फ आप की नहीं. हमरो परिवार की कुछ इज्जत है. गांव, जवार- पट्टीदार का कहेगा! एक्के बिटिया के बिआह में पिआज न खिला पाये. बड़ी बदनामी होगी..

रमेश- तुमको हमारी चिंता है कि गाँव, जवार.. पट्टीदार की.. अरे पट्टीदार तो एही फेर में होंगे की कइसे इनकी इज्ज़त खायें-चबायें.. उनका चले तो एक प्लेट पियाज भकोस कर तुमरे घर-खानदान की इज़्ज़त खा-चबा जायें.. सुनो! बहुत इज्ज़त और पिआज का चक्कर में दिमाग़ न खराब करो सिर्फ बिआह के बारे में फिक्र करो.

पिंकी- हमरे चाहने से क्या होगा.. एक मुआ प्याज है जो इंगेजमेंट में साठ का था और बिआह के दो महीना पहिले ही एक सौ चालीस हो गया.. बताइए भला एतना तेज कोई दोगुना वजन थामता है भला... बाऊजी मुर्गा बनवा के फूल-पचक रहे थे ऊधर पिआज मुर्गे की कॉलर धर के उससे दस रूपैया बेसी हो गया. बताइऐ.. उसे 'मुर्गा दो प्याजा' कहें कि 'प्याज दो मुर्गा.' बाऊजी बहुत परेशान हैं रजेश....

अऊर हाँ! कौन गारंटी है कि इ एक सौ चालीस पर टिका रहेगा. ऐसा न हो कि ई हरजाई सोने का भाव हो जाये...घर में डकैती पड़ जाये.. हे राम! हमरे बाऊजी और परिवार के वश का नहीं एतना जहमत उठाना..पियाज खरीदना, रखाना, और लुटाना..

रजेश- अइसा है.. अब अपनी भी उमर चौंतीस हो गई है.. हम न सबर कर पायेंगे भले हमें ही पिआज की रखवाली करना पड़े.

पिंकी- चौंतीस????? अरे बाप! आप तो अपना उमर सत्ताइस बताये थे..

रजेश- तब पिआज भी तो साठ था.. पिआज चार महीने में दोगुना हो गया तो कोई बात नहीं और हम चार महिने में चवन्नी बढ़े तो गदर हो गया..

तुम बस पिआज और बिआह की डेट की बात करो हमरे उमर की फिकर न करो...

पिंकी-चौंतीस ज्यादे नहीं है..रजेश

रजेश- केतनो है लेकिन प्याज के चौथाई से तो कम्मे है..अच्छा इ बताओ पिआज चालीस हो जाये तो बाऊजी को कोई दिक्कत नहीं न होगी..

पिंकी-- तब कौन दिक्कत तब तो परिछावन पर पिआज उड़ाया जायेगा.

रजेश- हमरा तो अभी बस चौंतीसवाँ लगा है..पिआज चालीस हो जाये तो बल्ले- बल्ले. और हम चौंतीस के क्या हुए... हरे आलू.. जमें प्याज हो गये.

पिंकी- अब तुम प्याज से अपनी तुलना न ही करो तो ही बेहतर...बड़े आये प्याज बनने वाले.. तुम रोज़ पांच घंटे हमारा दिमाग़ चाटते हो और एक प्याज है जो चाटने को नहीं मिलता.

रजेश- ए पिंकी!

पिंकी- का

रजेश- एक बात मानोगी

पिंकी-बोलिए!

रजेश- ऊ हा है कि हम तुमरे मुंह दिखाई में माला देने के खातिर पच्चीस हजार जुटाए हैं.. सोचे थे कि घूंघट तभी खोलेंगे जब तुमरे गले में माला पहिरायेगे लेकिन इ पियजवा हमरी उमर चौंतीस से पैंतीस करने पर लगा है इसलिए हम फैसला कर लिए कि माला के बदले दू बोरा पिआज खरीद कर तुमरे घर भिजवा देंगे लेकिन न तो हम बिआह टलने देंगे न तोहरे बिन रह पायेंगे . पिंकी बाऊजी से कहो हम भिजभायेंगे दू बोरा पियाज लेकिन बिआह का डेट टलना नहीं चाहिए..

पिंकी सुन रही हो न तुम!

पिंकी( रोते हुए) - हां! लेकिन आप हमको मुंह दिखाई में क्या देंगे.

रजेश- एक प्लेट, कटे प्याज का सलाद.. चलेगा न!

पिंकी- दौड़ेगा.. उड़ेगा.. लेकिन शर्तें है कि आप उसमें हाथ नहीं लगायेंगे..😊😊

रिवेश प्रताप सिंह

गोरखपुर

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