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भोजपुरी कहानिया

गीलापन.....रिवेश प्रताप सिंह

गीलापन.....रिवेश प्रताप सिंह
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बरसना एक वेग है, प्रवाह और ऊर्जा है। लेकिन बरसने के बाद का गीलापन...एक ठहराव है, शिथिलता और जड़ता है! जवानी की धार को कुंद करने का षडयंत्र है। नोंक पर हथोड़े से किया गया प्रहार है।

भींग जाना तो मजे की बात है लेकिन गीलापन उतनी ही मुश्किल और बेलुत्फ़ी का भी नाम है। गीलापन शरीर के भीतर उठ रही लपट और तपिश को जमींदोज़ कर देता है। यह ठीक है कि तुम्हारा लगातार बरसना तन-बदन में उमंग भर देता है लेकिन बरसने के बाद का गीलापन उसी जोश में पानी भी भर जाता है। घरों में, हैंगरों पर लटके हुए गीले कपड़ों के कंधे, टंगे-टंगे उखड़ गये। तुमने आलमारियों के भीतर तक घुसकर उसके करारेपन पर पिचकारी चलाई। तुमने माचिस के जिस्म और बारूदों में पानी भरा है। नमकीन की जवानी में छींटे मारकर उसकी जवानी की नस मरोड़ी है, तुमने नोटों के खरखराने की आवाज़ बंद की है, तुमने खिड़की-दरवाजों को उनकी चौखट से तालमेल बिगाड़ा है,तुमने बिजली के तारों को खौफ़नाक बनाया और फंफूदों की हिमाकत तुमने बढ़वायी है।

तुमने अखबार की जवानी लूटी है, अचार के मर्तबान में घुसकर पर्दानशीनों से छेड़छाड़ की है, तुमनें किताबों के पन्नों को आलसी बनाया,तुमनें जोड़ो में घुसकर उनके बीच सरगोशी बढ़ाई है, तुमने चप्पलों से उसके स्वामी पर कीचड़ उछलवाया और तुमनें लोहे के खिलाफ जंग की साजिश रची है। यही नहीं तुमने दीवारों को झांककर शयनकक्ष तक में अपने गीलेपन से सेंधमारी की है। तुमने तौलिए में पनाह लेकर जिस्म और तौलिये के बीच सौत की भूमिका निभाई,तुमनें खटिये की टांग उठवाकर उसे सरेबाज़ार रुसवा करवाया है और तुमनें अन्डरवियर से मिलकर मुख्यालय पर खलबली मचवाई है।

पता नहीं तुम्हें कड़क मिजाजी से क्या रंज है कि जहाँ भी तुम्हें कुछ कड़क दिखता है कि पहुंच जाते हो छप्पन-छूरी लेकर! एक बिचारा सीमेंट का कट्टा हैै जो मुंह बंद करके छुपा रहता है, कि कब रेत-गिट्टी से संयोग बने और अपनी गृहस्थी बसाकर रहे अपने परिवार के साथ। लेकिन तुम! घुस जाते हो उसके अविवाहित जिस्म में उसके ब्रह्मचर्य से खेलने, उसकी जवानी को बर्बाद करने!. .और होता यूं है कि वो वक्त से पहले ही कड़क होकर जमाने के नजर में गिर जाता है..जमाना उसे किसी के साथ रहने की इजाज़त नहीं देता,और फिर अपनी तमाम जिन्दगी पत्थर बनकर खुद में सिमट कर अकेले ही गुजार देता...

सुनों! बरसना तुम्हारी जावानी है लेकिन गीलापन,तुम्हारी ढलान है, सुस्ती है, कुंठा है...वो जहाँ लिपटती है जवानी को चर जाती है.. हमें तुम्हारी जवानी का नशा है! तुम्हारी सुस्ती और नाकामी तुम्हें मुबारक! तुम बरसते हो मजा आता है,झूम के बरसो! टूट के बरसो!! लेकिन जाते वक्त अपना बोरिया-बिस्तर बांध के जाया करो... गीलेपन की चादर न पसारा करो यार!

रिवेश प्रताप सिंह

गोरखपुर

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