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भोजपुरी कहानिया

एक कहानी .........रहस्य...

एक कहानी .........रहस्य...
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बिहार के बेगूसराय जिले का एक सामान्य गाँव, गाँव के जमींदार थे बाबू बटेसर सिंह। बाबू साहब कई सौ बीघे के काश्तकार थे, अगल बगल के दस से अधिक गाँव-टोलों में उनकी जमीनें थी। पूरे जिले में तो नहीं, पर अपनी सम्पन्नता और सहयोगी स्वभाव के कारण पूरे प्रखण्ड भर में प्रतिष्ठा पाते थे बाबुसाहेब। पर कहते हैं न, ईश्वर सबको सबकुछ नहीं देता, सो बाबुसाहेब के घर मे भी एक कमी थी। बाबुसाहेब को कोई पुत्र नहीं हुआ था। बस एक बेटी थी जिसे बड़े प्यार से पाला था उन्होंने...

युग बीता, बाबुसाहेब बुजुर्ग हुए। अब चिन्ता हुई कि आखिर इस अकूत सम्पति का करें क्या, सो उन्होंने अपने नवासे को बुलाया और अपनी सारी सम्पति उसके नाम कर दी। बेटी और उसका परिवार अब यहीं रहने लगा

गाँव के लोग जानते होंगे कि यदि कोई व्यक्ति अपनी सारी सम्पति बेटी को दे दे, तो उस व्यक्ति के पटीदार उससे जल जाते हैं और जीवन भर उस नवरसिहा(बेटी का परिवार) परिवार को परेशान करते रहते हैं। बाबुसाहेब ने तो करोड़ो नहीं अरबों की समाप्ति दी थी बेटी-नवासे को, सो उनके पटीदारों की पीड़ा का कहना ही क्या! पर कोई क्या करता? जब बाबुसाहेब ने ही सबकुछ लिख दिया था तो...

बाबुसाहेब के नवासे थे समरजीत सिंह। समरजीत सिंह पढ़े लिखे तो थे ही, ऊपर से अरबों की समाप्ति और पुस्तैनी प्रतिष्ठा के स्वामी थे, सो उन्हें भी राजनीति का चस्का लग गया। उनके लिए राजनीति की राह कठिन नहीं थी क्योंकि समाज में उनकी प्रतिष्ठा थी, पास में अकूत सम्पति थी, और उन्होंने स्वयं भी कभी किसी से साथ अभद्र व्यवहार नहीं किया था। चुनाव जीतने के लिए और क्या चाहिए, सो समरजीत सिंह मुखिया हो गए।

समरजीत सिंह के एक पटीदारी के मामा थे रामबहादुर सिंह। समरजीत से उनका सम्बन्ध कुछ ऐसा था कि यदि बाबू बटेसर सिंह ने अपनी सम्पति नाती समरजीत को न दे कर पटीदारों को दी होती तो तो उनके हिस्से में भी कई करोड़ की समाप्ति आती। रामबहादुर बाबू की कभी समरजीत से नहीं बनती थी, फिर भी सम्बन्ध ठीकठाक थे।

एकाएक कुछ यूँ हुआ कि रामबहादुर सिंह की उन्नीस वर्ष की लड़की गाँव के ही किसी लड़के के साथ भाग गई। यह भागने की घटना कुछ वैसी ही घटी जैसी सामान्यतः घटती है, लड़की अपने साथ लगभग लाख रुपये के गहने और कुछ नगद ले कर निकली थी। पर इस प्रेम कहानी का अंत भी वैसा ही हुआ जैसा कि सामान्यतः होता है। दो महीने में कुल पैसे खर्च हो गए और साथ ही साथ लड़के का मन भी भर गया, सो दोनों लौट आये। लड़का लड़की को गाँव तक पहुँचा कर फिर कहीं भाग गया।

इस कांड से जवार में रामबहादुर बाबू की कैसी थू थू हुई यह बताने की आवश्यकता नहीं। उनकी सारी प्रतिष्ठा मिट्टी में मिल गयी थी। रामबहादुर बाबू भी कोई छोटे-मोटे व्यक्ति नहीं थे, उनकी गिनती भी गाँव के दबंगो में होती थी। उस लड़के को पकड़वा लेना उनके लिए कोई बड़ी बात नहीं थी, सो चार दिन में ही लड़का उनके खलिहान में बंधा पड़ा था। पर जाने कैसे बात मुखिया जी को पता चल गई और वे तुरंत खलिहान पहुँच गए। मुखिया जी पहुँचे तो बात पंचायत की हो गयी, और मुखिया जी ने पंचायत में यह कहा कि चुकी गलती लड़की और लड़के दोनों की है सो केवल लड़के को सजा देना ठीक नहीं। फल यह हुआ कि लड़के और उसके बाप को बस सौ-पचास लाठियां खानी पड़ीं, पर जान बच गयी।

विवाद तो समाप्त हो गया, पर लड़की का परिवार मुखिया जी का विरोधी हो गया। हालांकि सम्पत्ति को लेकर विवाद पहले से ही था पर अब विरोध खुल कर होने लगा।

एक वर्ष बीत गए। एक वर्ष बाद अचानक उस लड़की ने कोर्ट में जा कर यह आवेदन दिया कि जब मैं घर से भागी हुई थी तब मुखियाजी ने मेरा रेप किया था। यहाँ ध्यान देने लायक बात यह है कि आवेदन थाने में नहीं दिया गया, कोर्ट में दिया गया था। कोर्ट ने अपनी गति से ही काम किया और वहाँ से थाने में रिपोर्ट दर्ज करने का आदेश आने में महीनों लग गए। अब मुखिया जी चुकी राजनैतिक व्यक्ति थे, इसलिए इस एक महीने तक मीडिया में इसे ऐसे प्रचारित किया गया कि मुखिया जी के प्रभाव के कारण पुलिस केस दर्ज नहीं कर रही है, जबकि पुलिस ने केस उसी दिन दर्ज लिया जिसदिन कोर्ट से थाने में रिपोर्ट दर्ज करने का आदेश पहुँचा।

अब मुखिया जी विवादित व्यक्ति हो गए, बलात्कार के आरोपित। वर्ष भर के बाद हुए केस में मेडिकल जाँच से भी सच पता करना सम्भव नहीं था, अतः अब सब कुछ गवाह पर ही निर्भर था। गवाह यदि कह दे तो मुखिया जी बलात्कारी, और न कहे तो निर्दोष...

लड़की के पिता की सामाजिक प्रतिष्ठा तो उसके भागने के साथ ही समाप्त हो चुकी थी, अब वे चिड़चिड़े हो चुके थे। रोज थाने जाते और पुलिस से गाली गलौज करते, पुलिस पर मुखिया जी को गिरफ्तार करने का दबाव डालते। इधर पुलिस की भी मजबूरी थी। बात यदि किसी सामान्य व्यक्ति की होती तो घण्टे भर में ही गिरफ्तारी हो जाती, पर यहाँ बात एक रसूखदार व्यक्ति की थी सो पुलिस भी बिना जाँच किये और सच्चाई जाने गिरफ्तार करने से बच रही थी। इसी बीच एक दिन लड़की के पिता रामबहादुर सिंह पुलिस के साथ कुछ अधिक ही अभद्रता कर बैठे, सो पुलिस ने उन्ही को गिरफ्तार कर लिया। रामबहादुर बाबू थाने में भी प्रभारी से उलझ पड़े जिसके बाद पुलिस ने उनके साथ कुछ अधिक ही बर्बरता के साथ मारपीट की, और रामबहादुर बाबू उसी पिटाई के कारण चल बसे...

अब यह कहने की आवश्यकता नहीं कि सबको यही लगा कि हत्या मुखिया जी ने ही कराई है, और यदि लोगों को ऐसा लगा तो इसमें कुछ अजीब भी नहीं, क्योंकि यही लगना ही स्वाभाविक है।

आगे की कथा फिर कभी... अभी आप यह सोचिए कि क्या सचमुच मुखिया जी बलात्कारी थे? यदि थे तो केस एक वर्ष बाद क्यों दर्ज कराया गया? और यदि नहीं थे तो फिर रामबहादुर बाबू की हत्या क्यों हुई?

बताइये अवश्य...

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