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भोजपुरी कहानिया

सुन रहे हैं??.........हाँ, बताओ न...: सौरभ चतुर्वेदी

सुन रहे हैं??.........हाँ, बताओ न...: सौरभ चतुर्वेदी
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आज बाबू के स्कूल की छुट्टी ग्यारह बजे ही हो जाएगी..आपकी छुट्टी है ही..वैन के ड्राइवर को फोन करके आप खुद ही स्कूल चले जाइए..बच्चा खुश हो जाएगा कि पापा लेने आए हैं..

बच्चा खुश हो न हो, बच्चे की माँ नाराज नहीं होनी चाहिए....बैंकों में जबसे शनिवार को छुट्टी होनी शुरू हुई है, ऐसा लगता है जैसे किसी पूर्वजन्म का फल उदय हो गया है..या इस जन्म में किए हुए पापों का दंड माफ हो गया हो....परन्तु, यदि बैंककर्मी विवाहित है तो उसके लिए यह ध्यान रखना आवश्यक हो जाता है कि उसकी यह छुट्टी निश्चित शर्तों के अधीन है

ख़ैर, मैं इसक्षेत्र में बैंक की एक शाखा का प्रबंधक हूँ.. घर के भीतर दिनभर तौलिया लपेट के मज़े में पड़े रहने वाले आदमी को बाहर जाने से पहले अपने बाल ठीक करने पड़ते हैं, कपड़े सलीके से पहनने पड़ते हैं..और चेहरे पर एक आर्टिफिशियल मुस्कान लेकर तो निकलना ही पड़ता है...

मेरे बेटा कस्बे के ही एक छोटे से स्कूल में पढ़ता है...पहली बार बच्चे को स्कूल से लेने जाने का काम वहाँ जाने के बाद इतना अच्छा भी हो सकता है, ये मुझे पता ही नहीं था...छोटे छोटे सैकड़ो बच्चों का हाथ पकड़े हुए उनकी सैकड़ो मम्मियां..वाह! क्या दृश्य है..सावन के महीने में सुबह सुबह भगवान की पूजा करके जल्दी जल्दी में थोड़ा सा टिपटॉप होकर निकली ये महिलाएँ हरी जमीन और स्याह आसमान के बीच के सुंदर माहौल को और सुंदर बना देती हैं...सही बात है कि आज भी मेकअप के बाजारी चकाचौंध के बीच धुले हुए बालों के साथ लिपिस्टिक, सिन्दूर और बिंदी वाला मेकअप ही शाश्वत है, सार्थक है और बड़ा अच्छा भी लगता है...कुछ पापा लोग भी थे..जिन्हें देखकर ये बोध भी होने लगा कि सिनेमा और टीवी के बाहर के पापा लोग मेरी ही तरह होतें हैं..रोजी रोटी और तोंद के साथ संघर्षरत....

मेरे भीतर का श्रृंगारबोध किसी सृजन तक पहुंचे, इससे पहले ही नवल की क्लासटीचर महोदया ने मुझे एक कम्प्लेन थमाई...

"नवल ने आज क्लास में व्हिसलिंग की है..."

मेरा सीना गर्व से छप्पन इंच का होने ही वाला था कि समझ के आया कि 'व्हिसलिंग' का मतलब ' सीटी मारना' होता है..

मैं नवल को लेकर बाहर आया और समझाया कि "बेटा! मम्मा से मत कहना कि तूने सीटी बजाई है, नहीं तो दिनभर कहेगी कि ये आदत भी तू मुझसे ही सीख रहा है..तू खूब सीटी बजा लेक़िन, माँ तक ये बात मत पहुँचने देना मेरे लाल...

नवल की अच्छी बात ये है कि एक समोसे में ही बाते मान जाते हैं...

स्कूल से घर के लिए निकलने ही वाला था कि तेज बारिश होने लगी..कार सड़क के किनारे थोड़ी दूर लगी थी..इसीलिए स्कूल के पास ही एक चाय की दूकान के नीचे बाप बेटे दोनों अपने अपने मज़े लेने लगे....तेज बारिश अब मूसलाधार होने लगी थी..चाय की दूकान के छत वाले टिन के शेड से एक क्रम में अनेक पंक्तियों में पानी की मोटी धार जमीन पर अपने होने का निशान बनाने लगीं...

बारिश कुछ इतनी तेज हुई कि आसपास दिखना बन्द हो गया...नवल का समोसा खत्म होने लगा..एक समोसा और बोलकर अब मैंने थोड़ा बैठ जाना चाहा.. तब तक बारिश को लगभग धकियाते हुए दो चेहरे दूकान के भीतर घुस आए....

एक छोटी बच्ची थी..छोटी ही थी लेकिन नवल से थोड़ी बड़ी थी..साथ वाली महिला मुझे उसकी माँ लगी..क्योंकि वो शेल्टर के भीतर आते ही अपनी बजाय बच्ची को पोंछने का काम करने लगी...

मैंने भी बच्ची को थोड़ा सा पुचकार किया...बड़ी प्यारी बच्ची थी..मैं बड़ा ही जिम्मेदार व्यक्ति हूँ... घनघोर बारिश, चाय की छोटी सी दुकान और दुकान के भीतर बहुत थोड़े से लोग और उन थोड़े से लोगों में से एक मैं और एक अभी अभी आई एक छोटी सी बच्ची की माँ...मैंने उनका कुशल पूछना अपना दायित्व समझा..आख़िर, मैं इस क्षेत्र में एक जिम्मेदार पद पर हूँ और ये भी हो सकता है कि मेरे व्यवहार से ये महिला प्रभावित होकर मेरे बैंक में एक खाता खुलवाले और इसके खाते में खूब सारे पैसे आ जाएँ... और उन पैसों से मैं इस महिला का बीमा करदूँ...बच्ची छोटी है तो इसकी पढ़ाई के लिए भी बैंक में इन्वेस्टमेंट प्लान है..ये महिला खुश हो जाए तो बिजनेस बहुत बढ़ जाएगा..और, बिज़नेस बढ़ जाएगा तो मेरा प्रमोशन भी हो जाएगा...

एक जिम्मेदार बैंकर होने के नाते मैंने चायवाले से मैडम के लिए भी एक चाय लाने को कहा...चाय आ गई थी और बारिश में भीगने पर चाय अमृत जैसी लगती है....उन्होंने बताया कि उनकी बेटी भी इसी स्कूल में ukg में पढ़ती है...इतनी बारिश का अंदाजा नहीं था अन्यथा बेटी के पापा को ही भेज देती...मैं खुश हुआ कि अच्छा हुआ इन्हें अंदाजा नहीं था...

मैंने बात आगे बढ़ाई और स्कूल में होने वाली पढ़ाई की गुणवत्ता के बारे में भी चर्चा की..महिला मेरी उम्र ही थी या मुझसे थोड़ी सी ही बड़ी हो..लेक़िन, बड़े अच्छे तरीके से बात कर रही थी..उसका आत्मविश्वास मुझे भी चकित कर रहा था..चाय खत्म होने लगी तो फिर उस बच्ची की माँ ने एक चाय और मंगाई और मुझे भी पीने के लिए रिक्वेस्ट किया...मैं वैसे चाय ज्यादा नहीं पीता लेक़िन, पता नहीं क्यों चाय अच्छी लग रही थी...

अब बारिश थोड़ी कम हो गई थी..इतनी कम कि दौड़कर कार की तरफ जाया जा सकता था... मैंने उन्हें घर तक छोड़ने का ऑफर किया क्योंकि रास्ते पर काफ़ी पानी जमा हो गया था...थोड़े ना नुकुर के बाद वो मान भी गईं..और मेरे सामने ही अपने घर फोन करके बताने भी लगीं कि "एक बहुत अच्छे भाईसाहब मिल गए हैं, उनकी गाड़ी से ही घर आ रहीं हूँ.."

भाईसाहब सुनके थोड़ा बुरा लगा लेक़िन मैंने दिलपे नहीं लिया...

मैं लंबे लंबे डग भरकर, छीटों से अपनी पैंट को बचाने के लिए दोनों हाथों से घुटने के ऊपर थोड़ा सा पैंट को खींचकर कार के पास गया और गाड़ी को बैक करके दुकान के पास ले आया...वो महिला अपनी बच्ची को लेकर कार की ओर आने लगी...तभी मेरी नजर नवल की ओर गई और मैंने लपककर उसे कार में बैठाया और बगैर उस महिला को बैठाए गाड़ी लेकर फुर्र से भाग गया....

आप सबकी तरह ही वो महिला भी यही सोंच रही होगी कि ये अचानक भाग क्यों निकला...

असल में भावनाओं में मुझे ये ध्यान ही नहीं आया कि उस महिला से बातचीत में नवल को डिस्टर्ब न करने के लिए मैंने अपने फोन में 'छोटा भीम' लगाकर उसे दिया था..और उसने छोटा भीम न देखकर अपनी माँ को वीडियो कॉल कर दिया था..और मेरे बिजनेस डिवेलपमेंट प्रोग्राम का लाइव टेलीकास्ट घर पर दिखा दिया था...

अब कल से ही नवल की माँ को समझा रहा हूँ हम बैंक वालों पर बिजनेस का बहुत दबाव है..हम हर समय बिजनेस मोड में ही रहते हैं..वहां भी मेरी एक बिजनेस स्ट्रैटजी ही चल रही थी...

फ़िलहाल बिजनेस के चक्कर में दो टाइम खाना बना चुका हूं...

और नवल, हर आधे घँटे पर आकर पूछ जा रहा है...

"पापा! चाय पीएंगे??

सौरभ चतुर्वेदी

बलिया

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